कुछ बच्चों का दिमाग इतना मजबूत नहीं होता है और धीरे-धीरे उनकी प्रेशर झेलने की क्षमता खत्म होती चली जाती है। ऐसे ही बच्चे, बचपन में या फिर बड़े होने के बाद भी नाकामयाबी के डर से ख़ुद को नुकसान तक पहुंचा देते हैं।
आजकल की कंपनियां भी अपनी एम्पलाईज को मोटिवेट करने की जगह प्रेशर में झोंक कर काम करवाती हैं, खासतौर पर सेल्स टारगेट वाली कंपनियां तो इंसानी जिंदगी के लिए नासूर की तरह हैं!
जबकि होना यह चाहिए कि जो हम करवाना चाहते हैं, हर बार उन्हें वो करने के लिए मोटिवेट करें, लॉजिक से समझाएं, कि फलां काम क्यों ज़रूरी है और उसके होने या नहीं होने के क्या फायदे और क्या नुकसान हैं। उन्हें नाकामयाबी से डराएं नहीं, बल्कि सिर्फ मार्गदर्शन करके उनके ऊपर छोड़ दें, उन्हें खुद से फेल या पास होने दें। और फेल होने पर समझाएं कि यही ज़िंदगी है, फेल होने का भी लुत्फ उठाओ और जिन वजहों फेल हुए हो, उनके ऊपर गौर करो।
वो अगर बार-बार भी फेल होते हैं, तब भी उन्हें मोटिवेट करना हैं। क्योंकि इससे उनके अंदर जो समझ पैदा होगी, हार का डर खत्म होगा, वो उन्हें स्थाई तौर पर मज़बूत और कामयाब बनाएगा।
यही काम सफलता पर भी करना है, सफलता इंसान को अपनी कमियों को देखने से रोकती है, जो कि लॉन्ग टर्म पर और भी ज़्यादा नुकसानदेह है।
मतलब फेलियर और सफलता दोनों इंसान के लिए उसके रब की तरफ से अवसर हैं!
0 comments:
Post a Comment