प्रेशर में काम करने के दुष्परिणाम

हम आमतौर पर अपने बच्चों पर प्रेशर डालकर काम करवाना चाहते हैं, जैसे कि पिटाई का डर दिखाकर, नाकामयाबी का डर दिखाकर, गरीबी का डर दिखाकर... जबकि इंसान प्रेशर में जबरदस्ती काम तो कर लेता है, पर उसका दिमाग प्रेशर को बहुत देर तक झेल नहीं पाता है।


कुछ बच्चों का दिमाग इतना मजबूत नहीं होता है और धीरे-धीरे उनकी प्रेशर झेलने की क्षमता खत्म होती चली जाती है। ऐसे ही बच्चे, बचपन में या फिर बड़े होने के बाद भी नाकामयाबी के डर से ख़ुद को नुकसान तक पहुंचा देते हैं। 


आजकल की कंपनियां भी अपनी एम्पलाईज को मोटिवेट करने की जगह प्रेशर में झोंक कर काम करवाती हैं, खासतौर पर सेल्स टारगेट वाली कंपनियां तो इंसानी जिंदगी के लिए नासूर की तरह हैं!


जबकि होना यह चाहिए कि जो हम करवाना चाहते हैं, हर बार उन्हें वो करने के लिए मोटिवेट करें, लॉजिक से समझाएं, कि फलां काम क्यों ज़रूरी है और उसके होने या नहीं होने के क्या फायदे और क्या नुकसान हैं। उन्हें नाकामयाबी से डराएं नहीं, बल्कि सिर्फ मार्गदर्शन करके उनके ऊपर छोड़ दें, उन्हें खुद से फेल या पास होने दें। और फेल होने पर समझाएं कि यही ज़िंदगी है, फेल होने का भी लुत्फ उठाओ और जिन वजहों फेल हुए हो, उनके ऊपर गौर करो। 


वो अगर बार-बार भी फेल होते हैं, तब भी उन्हें मोटिवेट करना हैं। क्योंकि इससे उनके अंदर जो समझ पैदा होगी, हार का डर खत्म होगा, वो उन्हें स्थाई तौर पर मज़बूत और कामयाब बनाएगा। 



यही काम सफलता पर भी करना है, सफलता इंसान को अपनी कमियों को देखने से रोकती है, जो कि लॉन्ग टर्म पर और भी ज़्यादा नुकसानदेह है।


मतलब फेलियर और सफलता दोनों इंसान के लिए उसके रब की तरफ से अवसर हैं!

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भावनात्मक रूप से मूर्ख लोग

इमोशनली बेवकूफ लोग चलते फिरते बारूद की तरह हैं, कोई भी कभी भी इनके ज़रिए किसी का भी कत्ल करवा सकता है, दंगा भड़का सकता है।


हमारे देश में ऐसे लोगों गोमांस या फिर धर्मविरोध के नाम पर मॉब लिंचिंग करते पाए जाते हैं। ठीक ऐसे ही पाकिस्तान में भी गली गली में ऐसे बारूद के ढेर घूम रहे हैं। बस उन्हे यह कहकर इमोशनल बेवकूफ बनाना होता है कि फलां ने अल्लाह या फिर अल्लाह के रसूल (स.) की शान में गुस्ताखी की है। 


फिर इमोशंस भड़कने पर शैतान बने यह लोग ना तो कोई फैक्ट्स चेक करते हैं, ना उन्हे किसी प्रूफ की ज़रूरत होती है और ना ही किसी अदालत में जुर्म साबित करना होता है। सज़ा भी थोड़ी बहुत नहीं, बल्कि शैतानों की भीड़ खुद ही सज़ा देते हुए सीधे लिंचिग कर देती है। 


पिछले दिनों पाकिस्तान से ऐसी ही एक दिल दुखाने वाली खबर आई थी, उमेरकोट के रहने वाले डॉ शाहनवाज खानबर के फेसबुक अकाउंट से एक पोस्ट हुई, जिसमे उनके ऊपर पैगंबर मुहम्मद (स.) की बेहुरमती करने का आरोप लगा। भीड़ इनके घर पहुंच गई, वह उस समय शहर में भी नही थे। इन्होंने कहा कि उनका फोन हैक हुआ है, पुलिस जांच कर ले, मैं जांच के लिए तैयार हूं। 

पर ख़ुद पुलिस ने ही उन्हें फर्जी एनकाउंटर में मार डाला और इसके बाद वहां के कट्टर मज़हबी पार्टी वालो ने उनकी लाश तक को जला डाला।


यह सिर्फ एक उदाहरण है, पर ऐसा वहां भी आए दिन होता रहता है। पाकिस्तान की आर्थिक और दिमागी बदहाली की ज़िम्मेदारी इन इमोशनल बेवकूफ कट्टरपंथियों पर भी आती है। 


उनकी इस बदहाली के बावजूद इस तरफ वाले इमोशनल बेवकूफ उनसे खूब रेस लगा रहे हैं!

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