औरंगज़ेब सिर्फ एक शासक था

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  • Shah Nawaz
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  • औरंगज़ेब भी दूसरे राजाओं की तरह एक शासक ही था, जिसके अंदर बहुत सारी खूबियाँ थीं और ऐसे ही बहुत सारी कमियाँ भी थीं, पर उन खूबियों और कमियों का देश के मुसलमानों से कोई ताल्लुक़ नहीं है। भले ही उसने किताबें लिखकर और रस्सियां बुनकर अपना खर्च चलाने जैसा बेहतरीन काम होगा, पर सत्ता की लड़ाई में अपने सगे भाइयों की हत्या करने वाला, अपने भाई दारा शिकोह की हत्या के बाद उसके पार्थिव शरीर को शहर में घुमाकर नुमाइश करने वाला और उसके सिर को तश्तरी में सजाकर अपने पिता के सामने पेश करने वाले से हमारा सम्बन्ध तो हरगिज़ नहीं हो सकता है। 


    कुछ कट्टरपंथी जरूर उसका महिमामंडन करते हो, पर आम मुसलमान उसे अपना आदर्श नहीं मानते हैं, किसी भी बच्चों का नाम औरंगज़ेब नहीं रखा जाता है। उसे सिर्फ एक ऐसे शासक के तौर पर याद किया जाता है, जो कि शासन में क्रूर होने के बावजूद जनता के पैसे की बर्बादी नहीं करता था। अपना खर्च अपनी मेहनत कमाई से चलाता था, जबकि नार्मल परसेप्शन है कि शासक वर्ग जनता को शोषित करके सत्ता सुख भोगते हैं। 

    हालाँकि राजनैतिक फ़ायदे के लिये अगर कोई नफ़रत फैलाने के मक़सद से झूठ गढ़ता है तो उसका विरोध करना और सही फैक्ट्स सामने रखना भी बिलकुल सही और ज़रूरी है। जैसे कि कहा जाता है कि "औरंगज़ेब रोज़ 40 मन जनेऊ जलाता था"। जबकि एक जनेऊ लगभग 50 ग्राम का होता है, तो 40 मन जनेऊ जलाने का मतलब हुआ प्रतिदिन 1600 किलो, अर्थात 32000 ब्राह्मणों की हत्या होना। और इस हिसाब से एक साल में मारे गए ब्राह्मणों की संख्या 1,16,48,000 हुई, मतलब पूरे शासन काल में 5,82,40,000 यानी लगभग 58 करोड़ ब्राह्मण मारे गए, जो कि असंभव फिगर है। हक़ीक़त यह है कि औरंगज़ेब के समय देश की जनसंख्या सिर्फ 15 करोड़ थी, इसमें वयस्क लगभग 8 करोड़ ही रहे होंगे जिसमें ब्राह्मण समुदाय की जनसँख्या लगभग 1 करोड़ ही होगी और उसमें से भी पुरुष 50-60 लाख ही रहे होंगे। यह बात ऐतिहासिक साक्ष्यों के तो विरुद्ध है ही, तर्क के भी पैमानों पर झूठी साबित होती है! 

    हालाँकि ऐतेहासिक साक्ष्यों के हिसाब से किसी भी शासक ने जो ग़लतियाँ की उन ग़लतियों की बुराई करना और जो अच्छे कदम उठाए उन कदमों की सराहना करने का भी सभी को अधिकार है। हर दौर के शासकों ने अपने राज्य को बढ़ाने के लिए आज के दौर के पैमाने के एतबार से अच्छे और बुरे काम किये हैं, ऐसे ही औरंगज़ेब ने भी कुछ क्रूर कदम भी उठाए और कुछ जनहितकारी और दूरदर्शिता वाले काम भी किये। औरंगज़ेब ने कुछ हिन्दू समुदाय के हित में तो कुछ विरोध में काम किये, ऐसे ही मुस्लिम समुदाय को लुभाने के लिए, तो कुछ विरोध में काम किये। विभिन्न शासकों के इतिहास में दर्ज अच्छे और बुरे कामों का मक़सद अपने शासन को मज़बूत और बड़ा बनाने के सिवा मुझे कुछ और नज़र नहीं आता है। 

    हालाँकि मैं शासकों को कभी कोई ख़ास विरोध नहीं करता हूँ और ना ही उन्हें रोल मॉडल या हीरो समझता हूँ। यक़ीन कीजिए कि जिस चंगेज़ ख़ान को मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है, जिसने करोड़ों मुसलमानों का क़त्ल किया, मैं उससे भी कभी नफ़रत नहीं करता हूँ। 

    इसकी एक वजह यह भी है कि शासकों के बारे में इतिहास में जो लिखा है वो भी ज़रूरी नहीं है कि शब्द दर शब्द सच ही हो। उस वक़्त की परिस्थितियों को आज के वक़्त समझना वैसे भी बेहद मुश्किल काम है और जो लिखा गया है उनकी सच्चाई को परखना मेरे जैसों के लिए असंभव सा है। जैसे कि आज गोदी मीडिया है वैसे भी तब भी किताबें चाटुकारों अथवा विरोधियों ने लिखी होंगी। जिसमें सच का कितना अंश होगा यह पता लगाना नामुमकिन जैसा ही है। हालाँकि हमारे पास उस समय को जानने के एकमात्र साधन ऐतिहासिक साक्ष्य ही हैं, इसलिए हम उनके ऊपर विश्वास करके चलते हैं। पर हमें इतिहास को इतिहास ही समझना चाहिए, उसे किसी धर्मग्रन्थ की तरह 100% सही समझ कर नहीं चलना चाहिए। 

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