ग़ज़ल: जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ

Posted on
  • by
  • Shah Nawaz
  • in
  • Labels: , ,
  • उल्फत में इस तरह से निखर जाएंगे एक दिन
    हम तेरी मौहब्बत में संवर जाएंगे एक दिन
    एक तेरा सहारा ही बहुत है मेरे लिए
    वर्ना तो मोतियों से बिखर जाएंगे एक दिन
    हमने बना लिया है मुश्किलों को ही मंज़िल
    यूँ ग़म की हर गली से गुज़र जाएंगे एक दिन
    जिनके लिए लड़ती है उनकी माँ की दुआएँ
    दुनिया भी डुबोये तो उभर जाएंगे एक दिन
    यह दिल रहेगा आशना तब तक ही बसर है
    वर्ना तेरे शहर से निकल जाएंगे एक दिन
    - शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'

    (बहर: हज़ज मुसम्मिन अख़रब मक़फूफ महज़ूफ)

    9 comments:

    1. वाह, बहुत सुंदर भाव की ग़ज़ल

      ReplyDelete
      Replies
      1. बहुत-बहुत धन्यवाद एम वर्मा जी... 🙏

        Delete
    2. बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन

      ReplyDelete
      Replies
      1. बहुत-बहुत धन्यवाद संजय भाई... 🙏

        Delete
    3. बहुत-बहुत धन्यवाद शिवम भाई... 🙏

      ReplyDelete
    4. बहुत उम्दा ग़ज़ल, बधाई.

      ReplyDelete
    5. आप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।

      ReplyDelete

     
    Copyright (c) 2010. प्रेमरस All Rights Reserved.