ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए - अदम गोंडवी

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  • Shah Nawaz
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  • आज के मौजूं पर अदम गोंडवी साहब की कुछ मेरी पसंदीदा ग़ज़लें:

    आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
    अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
    तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
    आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे
    एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
    चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

    - अदम गोंडवी


    हिन्‍दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
    अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए
    हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
    दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
    ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
    ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
    हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
    मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
    छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
    दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

    - अदम गोंडवी


    काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
    उतरा है रामराज विधायक निवास में
    पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
    इतना असर है खादी के उजले लिबास में
    आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
    जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
    पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
    संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
    जनता के पास एक ही चारा है बगावत
    यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

    - अदम गोंडवी

    5 comments:

    1. सीधे सरल ढंग से कही गयी अनमोल बातें हैं गजल में
      बहुत सुन्दर प्रस्तुति हेतु धन्यवाद

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    2. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

      ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, 1956 - A Love story - १९०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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