डेंगू, चिकन गुनिया जैसी बीमारियों से निपटने में हमारी उदासीनता और जीवन को जोखिम में डालने की हमारी आदतों पर दैनिक जनवाणी में मेरा कटाक्ष...
"हरियाली होने का भी बड़ा नुकसान है, सबसे पहला नुकसान तो यही है कि फिर इसे बचाए रखने की मेहनत करनी पड़ती है, अब आप ही बताईए कि इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में किसके पास समय है? यह कहावत नहीं बल्कि सच्चाई है कि आज के समय में हमारे पास सांस लेने का भी समय नहीं है। अब यह कोई भी पर्यावरणविद नहीं बताता कि भला जिस काम के लिए हमारे पास समय तक नहीं है, उसके लिए क्यों इतनी मेहनत की जाए?
असल बात यह है कि आज हमारे पास बाकी कामों के लिए तो फिर भी
समय है, लेकिन इस कमबख्त जीने के लिए ही नहीं है। जीवन जीना आज के समय की सबसे बेकार चीज़ हो गई है, अगर विश्वास नहीं होता है तो लोगों को अपने हाथ से पेड़ों को काटते हुए देख सकते है। सरकारी कर्मचारी इस पुन्य के काम में पूरी मदद करते हैं, ना सिर्फ मदद बल्कि अपना भी पूरा योगदान देते हैं। और यही कारण है कि अच्छा-खासा बजट होने के बावजूद सड़कों के इर्द-गिर्द हो सकने वाली ग्रीन बेल्ट अधिकारियों/कर्मचारियों की नामी-बेनामी आय की शोभा बढ़ा रही होती है।
हम में से अक्सर सभी को पता होता है कि डेंगू/चिकनगुनिया/मलेरिया इत्यादि को फैलाने वाले मच्छर साफ़ पानी में जमा होते हैं और यह बिमारी घर या फिर उसके आस-पास 200 मीटर क्षेत्रफल में 7 दिन तक जमा साफ पानी में पनपे मच्छर से ही लगती है। फिर भी हर साल लाखों लोग बुरी तरह बीमार पड़ते हैं, हज़ारों लोग मर जाते हैं, पर क्या कोई भी अपने घर या फिर आस-पास किसी बोतल, टूटे हुए या फिर प्साटिक के ग्लास, कूलर इत्यादि में जमा साफ पानी को हटाने का समय निकाल पाता है? नहीं ना? क्या करें जब किसी के पास इतना काम करना तो छोडो करने की सोचने का भी समय ही नहीं है! बीमार पड़ेंगे तब की तब देखेंगे, वैसे भी बीमार पड़ने के लिए तो समय निकल ही आएगा, आफिस से भी छुट्टी मिल जाएगी और अगर भगवान को प्यारे हो गए तब तो कईयों को कई दिन की छुट्टी मिल जाएगी।
वैसे अगर आप सड़क पार करते हुए या फिर गाड़ी चलाते हुए लोगों पर नज़र दौड़ाएंगे तो आपको विश्वास हो जाएगा कि आज के इंसान की नज़र में जीवन से ज़्यादा महत्त्व समय का है, हालांकि यह भी है कि हमारे देश के लोग बड़े जाबांज़ होते हैं, चंद मिनट बचाने के लिए जान पर खेलकर सड़क पास करते हैं, एक-दूसरी गाड़ी को तेज़ हार्न बजाते हुए पूरी जाबांज़ी से ओवरटेक करते हुए सबसे आगे निकल जाते हैं। चाहे राँग साईड से ही क्यों ना निकलना पड़े, पर सबसे आगे निकलकर ही दम लेते हैं। इसे लेकर हम इतने सजग हैं कि बच्चों को प्रतिदिन समय का सदुपयोग सीखाने के लिए स्कूल की वैन या फिर बस के ड्राईवर को नियुक्त किया हुआ है। वोह बचपन से ही बच्चों को जाबांज़ बनना और एक-एक पल बचाना सिखा देते हैं, क्या कहा जीवन? अगर वोह ज़्यादा महत्वपूर्ण होता तो हम मेहनत उसके विरुद्ध नहीं बल्कि उसके लिए कर रहे होते।"
उपयोगी विचारणीय लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद रविंद्र जी...
Deleteजीवन है तो सारा जहाँ है
ReplyDeleteसच तो यही है कि बहुत लोग जीवन मूल्य समझते हैं तभी तो काम चाहे बहुमूल्य हो न हो लेकिन जल्दी के चक्कर में जीवन गवां बैठते हैं
बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी....
Deleteशुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी....
ReplyDeleteविचारणीय
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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