हज़ारों साज़िशें कम हैं सियासत की अदावत की
हर इक चेहरे के ऊपर से नकाबों को हटाता चल
कभी सच को हरा पाई हैं क्या शैतान की चालें?
पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल
करो कुछ काम ऐसे भी अदावत 'इश्क़' हो जाएं
रहे इंसानियत ज़िंदा, मुहब्बत को निभाता चल
भले कैसा समाँ हो यह, बदल के रहने वाला है
कभी मायूस मत होना, यूँही खुशियाँ लुटाता चल
- शाहनवाज़ 'साहिल'
हर इक चेहरे के ऊपर से नकाबों को हटाता चल
कभी सच को हरा पाई हैं क्या शैतान की चालें?
पकड़ ले आइना हाथों में बस उनको दिखाता चल
करो कुछ काम ऐसे भी अदावत 'इश्क़' हो जाएं
रहे इंसानियत ज़िंदा, मुहब्बत को निभाता चल
भले कैसा समाँ हो यह, बदल के रहने वाला है
कभी मायूस मत होना, यूँही खुशियाँ लुटाता चल
- शाहनवाज़ 'साहिल'
आप की यह पोस्ट कल के बुधवारीय चर्चा मंच पर-
ReplyDeleteशुक्रिया रविकर जी!
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteगलती हो गई क्षमा याचना सहित आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 24फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी पोस्ट को मान देने का बहुत-बहुत शुक्रिया यशोदा जी....
Deleteराजनीति की बिरयानी साजिशों के मसालों से ही पकती हैं। ये मसालें जलन ही पैदा करते है।
ReplyDeleteबिलकुल सही अवलोकन किया आपने मनीषा जी....
DeleteBahut khoob!
ReplyDeleteशुक्रिया अमित जी...
Deleteप्यारी ग़ज़ल !
ReplyDeleteमतला भूल गए क्या साहिल मियां ? ये रहा ....
सभी सदबुद्धि पा जाएँ यही ढफली बजाता चल !
है माँ के पाक क़दमों में पड़ी ज़न्नत बताता चल !
शुक्रिया सतीश भाई, बस यह ऐसे ही लिखी थी :)
Deleteवाह !
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