आज दादरी में किसी को गौ-मांस के नाम पर मारा है, कल एक को आतंकवादी बता कर मार दिया गया था... इलेक्शन आ रहा है और रोज़ाना गाहे-बगाहे ऐसी ख़बरें भी आती जा रही हैं। इस भुलावे में मत रहना कि यह सब किसी मांस के टुकड़े या आतंक के कारण हो रहा है, क्योंकि अगर यही कारण होता तो हमला इन निर्बल लोगों पर नहीं परन्तु दुनिया में गौमांस के सबसे बड़े निर्यातक हमारे देश की बड़ी-बड़ी मांस निर्यातक कंपनियों पर होता, या फिर विरोध उन्हें करों में बढ़चढ़ कर छूट और प्रोत्साहन देने वाली हमारी सरकार का होता, परन्तु कभी ऐसा नहीं हुआ क्योंकि इस हिंसक प्रवत्ति के पीछे कारण एक ही है और वोह है सत्ता की मलाई के लिए 'नफ़रत की खेती'।
ज़रा ग़ौर कीजिये कि क्या आप अपने-आसपास इस नफ़रत के बारूद को महसूस नहीं कर रहे हैं? हैरत की बात है कि आप महसूस कर भी रहे हैं फिर भी चुप हैं। यह धीरे-धीरे हर इक की नसों में बहता जा रहा है, बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि इस ज़हर को सुनियोजित तरीके से हमारी नसों में बहाया जा रहा है।
नफ़रत का तो यही नतीजा होना था, सो हो रहा है! पर अगर आज भी इस गंदगी के विरुद्ध खड़ा नहीं हुआ गया तो इन नफरतों का यूँ ही कई गुना तेज़ी से बढ़ना तय है।
अगर ज़िंदा रहना चाहते हो और इंसानियत को ज़िंदा रखना चाहते हो तो उठो और इन कट्टरपंथी विचारों वाले दलों और संगठनों को अपने जीवन से लात मार कर बाहर करो! और हाँ यह कट्टरपंथी हर इक धर्म, समाज में मौजूद हैं, कुछ बड़ी मछलियाँ हैं जो नज़र आ रही हैं, मगर इनके चक्कर में छोटी मछलियों को प्रश्रय मत दे देना!
या फिर आज खूब सारा अफ़सोस करना और अगले अफ़सोस के दिन का इंतज़ार करते रहना... नौटंकीबाज़ो!
हद्द तो तब हो जाती है, जब भारत में पैदा होने वालों से भारतीय होने का सुबूत माँगा जाता है
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कहाँ से चले थे, कहाँ आ गए हैं... (ब्लॉग बुलेटिन) में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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