नफ़रत की राजनीति के विरोध का मतलब देश की सहिष्णुता पर संदेह करना हरगिज़ नहीं है, बल्कि देश की सहिष्णुता पर ऊँगली उठाना देश की संप्रभुता पर ऊँगली उठाना है। यहाँ बात उन लोगों की हो रही है जिनका शगल रहा है चंद लोगों को गलत हरकतों को पूरी क़ौम के साथ जोड़ना और आज जब उनके खुद के चेहरे पर लगी परते खुलने लगी तो उसे भी उसी मक्कारी के साथ देश और क़ौम से जोड़ने लगे हैं!
जबकि हक़ीक़त यह है कि देश में कैसे भी हालात रहे हो, मगर सांझी संस्कृति हमेशा से हमारी पहचान रही है। देश में सभी वर्गों के अधिकतर लोग सहिष्णु / मेलजोल में विश्वास रखने वाले है और यही हमारी 'ताक़त' है। देश की इस अनूठी परंपरा को ही देश की गंगा-जमुनी संस्कृति कहा जाता रहा है।
यह अवश्य है कि कुछ लोग राजनैतिक फायदे के लिए सभी वर्गों में नफ़रत के तीर से वार करते रहे हैं और उनका मक़सद भेदभाव फैलाकर सत्ता प्राप्त करना और सत्ता प्राप्ति का मक़सद अपना एजेंडा लागू करना हैं। वोह चाहते हैं कि नफ़रत के बीज हमेशा के लिए बो दिए जाएं, जिससे उनकी सत्ता की फसल हमेशा लहलहाती रहे। मगर मेरे मुल्क़ की यह खासियत है कि हमेशा उन्ही में से कुछ लोगों ने उठकर नफ़रत का विरोध और मुहब्बत का पैग़ाम दिया है।
आज देश में ऐसी मुहीम की ज़रूरत है जो किसी एक की बात नहीं करे बल्कि सबकी बात करे। आज देश को इस तरह संगठित करने की ज़रूरत है कि किसी भी तरफ़ से उठने वाले संवेदनशील मुद्दे पर सहमति बनाई जा सके और विवादों को मुहब्बतों में तब्दील किया जासके। हर वर्ग के उन ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए जिन्हें मुल्क़ से मुहब्बत हो और उनके अंदर अपने हक़ की क़ुर्बानी का जज़्बा हो।
क्या आप #मुहब्बत की इस #मुहीम का हिस्सा बनना चाहेंगे? अगर हाँ तो फिर मुहब्बत की इस 'सदा' को पूरी शिद्दत के साथ लगाइये! क्योंकि आज वाकई 'नफ़रत की इस आंधी में मुहब्बत की शमाँ जलाने की ज़रूरत है'।
जबकि हक़ीक़त यह है कि देश में कैसे भी हालात रहे हो, मगर सांझी संस्कृति हमेशा से हमारी पहचान रही है। देश में सभी वर्गों के अधिकतर लोग सहिष्णु / मेलजोल में विश्वास रखने वाले है और यही हमारी 'ताक़त' है। देश की इस अनूठी परंपरा को ही देश की गंगा-जमुनी संस्कृति कहा जाता रहा है।
यह अवश्य है कि कुछ लोग राजनैतिक फायदे के लिए सभी वर्गों में नफ़रत के तीर से वार करते रहे हैं और उनका मक़सद भेदभाव फैलाकर सत्ता प्राप्त करना और सत्ता प्राप्ति का मक़सद अपना एजेंडा लागू करना हैं। वोह चाहते हैं कि नफ़रत के बीज हमेशा के लिए बो दिए जाएं, जिससे उनकी सत्ता की फसल हमेशा लहलहाती रहे। मगर मेरे मुल्क़ की यह खासियत है कि हमेशा उन्ही में से कुछ लोगों ने उठकर नफ़रत का विरोध और मुहब्बत का पैग़ाम दिया है।
आज देश में ऐसी मुहीम की ज़रूरत है जो किसी एक की बात नहीं करे बल्कि सबकी बात करे। आज देश को इस तरह संगठित करने की ज़रूरत है कि किसी भी तरफ़ से उठने वाले संवेदनशील मुद्दे पर सहमति बनाई जा सके और विवादों को मुहब्बतों में तब्दील किया जासके। हर वर्ग के उन ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए जिन्हें मुल्क़ से मुहब्बत हो और उनके अंदर अपने हक़ की क़ुर्बानी का जज़्बा हो।
क्या आप #मुहब्बत की इस #मुहीम का हिस्सा बनना चाहेंगे? अगर हाँ तो फिर मुहब्बत की इस 'सदा' को पूरी शिद्दत के साथ लगाइये! क्योंकि आज वाकई 'नफ़रत की इस आंधी में मुहब्बत की शमाँ जलाने की ज़रूरत है'।
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-10-2015) को "हमारा " प्यार " वापस दो" (चर्चा अंक-20345) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी
Deleteहाँ , यह देश की सबसे बड़ी विपत्ति है जो राजनीतिज्ञों द्वारा लायी गयी है इससे मिलकर लड़ना होगा ! परस्पर प्यार ही नफरत को काट सकता है !
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश भाई, आज समाज को ऐसे ही मैसेजों की ज़रूरत है!
Deleteशुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteधन्यवाद भाई!
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