स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य पहले लंबे समय तक इस्लाम को आतंकवाद से जोड़कर देखते थे। दरअसल उन्होंने 'हिस्ट्री ऑफ इस्लामिक टेररिज्म' नाम की किताब भी लिखी थी जिसमें उन्होंने क़ुरआन की कुछ आयतों को हिंसा से जोड़ा था। परन्तु जब वह 'इस्लाम के कारण खतरे में अमेरिका' नामक किताब पर काम कर रहे थे, तब इस्लाम के बारे में उनकी धारणा में बुनियादी परिवर्तन आया।
वह कहते हैं कि उन्होंने कुरआन को एक बार फिर पढ़ा और पाया कि जिन आयतों को मैं हिंसा से जोड़ रहा था, उनका आतंक से कोई लेना-देना नहीं था। यही नहीं स्वामी कहते हैं कि इसके बाद उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब के बारे में बारीकियों से पढ़ा और पाया कि वह तो हमेशा शांति के लिए खड़े रहे शांति दूत थे।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 'इस्लाम' पर एक सेमिनार के दौरान उन्होंने यह बातें कहीं
और इस बात की चर्चा नहीं होती....
ReplyDeleteयही तो.....
Deleteसच बहुत गहराई में जाकर ही मिलता है....पैगंबर हो या कोई मसीहा वह शांति का दूत ही होता है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी
Deleteधन्यवाद शास्त्री जी :)
ReplyDeleteबिलकुल सही है , अक्सर परिभाषा करने वाले कुछ अधिक विद्वान होते हैं !
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