मर्यादा पुरषोत्तम राम के अस्तित पर यहाँ कोई सवाल नहीं है, सवाल उनके आस्तित्व पर है भी नहीं... बल्कि देश के बुज़ुर्ग होने के नाते उनके लिए दिलों में मुहब्बत और सम्मान है!
सवाल सिर्फ यह है कि आखिर ऐसी क्या वजह रहीं कि हमारे रिश्ते इतने खराब हुए कि हम इस अविश्वसनीय कृत्य को अपने देश में होते हुए देखने पर मजबूर हुए? सवाल बाबरी मस्जिद के शहीद होने का नहीं है, बल्कि एक-दूसरे पर एतमाद के टूटने का है... सत्ता के लालचियों के द्वारा नफरत के ज़हर घोलने का है... पत्थर के चंद टुकड़ो के नाम पर दी गई इंसानी क़ुर्बानियों का है। सवाल दूसरों की भावनाओं को कुचल डालने की चाहत का है... सवाल अक्सिरियत के बल पर कानून को तार-तार कर देने का है...
और सवाल है हिंदुस्तान को 'पाकिस्तान' बना देने की कोशिशों का...
और यह सारे सवाल आज भी इसलिए प्रसांगिक हैं कि नफ़रत के बोये गए बीजों की फसल आज लहलहा रही है और बड़े जोशों-खरोश के साथ यह खेती आज भी जारी है।
हैरत की बात यह है कि जिस कट्टरपंथ और नफ़रत के कारण पाकिस्तान ने खुद को तबाह किया हम उसका परिणाम देखकर भी सुधरने की जगह एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने में व्यस्त हैं। क्यों हमें कट्टरपंथ फैलाने और नफ़रत की राजनीति करने वालों में बुराई नज़र नहीं आती? और हम कैसे एक के मुक़ाबले में दूसरे को जायज़ ठहरा देते हैं?
सवाल सिर्फ यह है कि आखिर ऐसी क्या वजह रहीं कि हमारे रिश्ते इतने खराब हुए कि हम इस अविश्वसनीय कृत्य को अपने देश में होते हुए देखने पर मजबूर हुए? सवाल बाबरी मस्जिद के शहीद होने का नहीं है, बल्कि एक-दूसरे पर एतमाद के टूटने का है... सत्ता के लालचियों के द्वारा नफरत के ज़हर घोलने का है... पत्थर के चंद टुकड़ो के नाम पर दी गई इंसानी क़ुर्बानियों का है। सवाल दूसरों की भावनाओं को कुचल डालने की चाहत का है... सवाल अक्सिरियत के बल पर कानून को तार-तार कर देने का है...
और सवाल है हिंदुस्तान को 'पाकिस्तान' बना देने की कोशिशों का...
और यह सारे सवाल आज भी इसलिए प्रसांगिक हैं कि नफ़रत के बोये गए बीजों की फसल आज लहलहा रही है और बड़े जोशों-खरोश के साथ यह खेती आज भी जारी है।
हैरत की बात यह है कि जिस कट्टरपंथ और नफ़रत के कारण पाकिस्तान ने खुद को तबाह किया हम उसका परिणाम देखकर भी सुधरने की जगह एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने में व्यस्त हैं। क्यों हमें कट्टरपंथ फैलाने और नफ़रत की राजनीति करने वालों में बुराई नज़र नहीं आती? और हम कैसे एक के मुक़ाबले में दूसरे को जायज़ ठहरा देते हैं?
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
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सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'