आज 4th बटालियन, ग्रेनेडियर में तैनात हवालदार अब्दुल हमीद की शहादत दिन है। 1965 युद्ध में पाकिस्तानी सेना का सीना चीर कर उस समय के अपराजेय माने जाने वाले उसके "पैटन टैंकों" को तबाह कर देने वाले 32 वर्षीय वीर अब्दुल हमीद आज ही के दिन खेमकरण सेक्टर, तरन तारण में शहीद हुए थे और उन्हें देश के सर्वोच्च सेन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाज़ा गया था। उनकी बहादुरी पर यह पुरूस्कार युद्ध के समाप्त होने से भी एक सप्ताह पहले ही, 16 सितम्बर 1965 को घोषित कर दिया गया था। इसके अलावा इन्हें सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से भी अलंकृत किया गया।
पाकिस्तान द्वारा "अमेरिकन पैटन टैंकों" के साथ रात के समय पर हमला किया गया था। जबकि उन टैंकों का सामना करने के लिए हमारे सैनिकों के पास न तो टैंक थे और ना ही कोई बड़ा हथियार, केवल साधारण सी 'थ्री नॉट थ्री रायफल' और 'लाइट मशीन गन' (Light Machine Gun ही थी। मगर उनके पास एक असाधारण चीज़ थी और वोह था मज़बूत हौसला और देश पर मर मिटने का जज़्बा!
हवलदार वीर अब्दुल हमीद की "गन माउनटेड जीप" भी हालाँकि पैटन टैंकों के सामने एक खिलौने जैसी ही थी, मगर उन्होंने अपनी जीप में बैठकर गन से पैटन टैंकों के कमजोर अंगों पर सटीक निशाना लगाना शुरू किया, जिससे शक्तिशाली टैंक ध्वस्त होना शुरू हो गए। उनकी इस तरकीब और सफलता से बाकी सैनकों का भी हौसला बढ़ गया। फिर क्या था, पाकिस्तान फ़ौज में भगदड़ मच गई। जंग के मैदान से भागते हुए पाकिस्तानी फौजियों का पीछा करते "वीर अब्दुल हमीद" की जीप पर एक गोला गिरा, जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और दो दिन बाद यानी आज ही के दिन शहीद हो गए! ज्ञात रहे कि अकेले वीर अब्दुल हमीद ने ही सात "पाकिस्तानी पैटन टैंकों" को ध्वस्त किया था।
"खेम करन" सेक्टर के "असल उताड़" गाँव में 'पैटन नगर' नाम से मेमोरियल बनाया गया है, जो लड़ी गई इस लड़ाई में पैटन टैंकों की कब्रगाह बना था।
मज़े की बात यह है कि इस लड़ाई में शहीद अब्दुल हमीद के हौसले और उनकी साधारण "गन माउनटेड जीप" के हाथों हुई "पैटन टैंकों" की बर्बादी के कारण हैरान अमेरिकियों को पैटन टैंकों के डिजाइन की समीक्षा तक करनी पड़ी। मगर वोह शायद यह नहीं जानते थे कि 'पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।'
अमर शहीद वीर अब्दुल हमीद की शहादत और देश पर मर मिटने के जज़्बे को सलाम!
जय हिन्द!
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