चुनाव, सर्वेक्षण और रियेक्शन

पता नहीं लोग चुनावी सर्वों को लेकर इतने उत्साहित या फिर नाराज़ क्यों हैं? चुनावी प्रक्रिया समाप्त होने से पहले तो फिर भी इनकी विश्वसनीयता पर संदेह किया जा सकता है,  Paid Servey का आरोप भी ठीक हो सकता है, लेकिन एक्ज़िट पोल पर इतनी हाय-तौबा करना ठीक नहीं है। 

मानता हूँ कि सर्वेक्षण करने का जो तरीका देश में इस्तेमाल किया जाता है उसमें अनेक कमियाँ हैं, मगर यह कमियाँ ना भी हो तब भी इसकी अपनी एक सीमा है। सर्वेक्षण पूरी तरह से 'लिए गए सेम्पल और सर्वे के लिए गए अधिकारी' की काम के प्रति निष्ठा पर निर्भर करता है। गाँव, कस्बों और शहरों में एक ही विधि से किये गए सर्वेक्षण दोषपूर्ण हो सकते हैं, वहीँ अगर अलग-अलग समूहों अथवा सोच के हिसाब से गहन अध्यन ना किया जाए तो परिणामों से मिलान दूर की कौड़ी साबित होगा। इसी के साथ किसी एक तरह के क्षेत्र अथवा समूह में किया गया सर्वेक्षण दूसरी जगह अथवा समूह का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।

हमें यह समझना होगा कि सर्वेक्षण का काम केवल रुझान बताना ही होता है, इनको कभी भी शत-प्रतिशत सही नहीं समझा जाता है और ना ही समझा जाना चाहिए। ठीक ऐसे ही पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जाता और किया भी नहीं जाना चाहिए।





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