देश में चुनाव के मौसम में सर्वे कंपनियों का बोलबाला है। मिडिया चैनल्स के साथ मिलकर यह कम्पनियां अपने सर्वे को ऐसे पेश करती हैं, जैसे वोह कुल जनसँख्या के कुछ प्रतिशत लोगो पर किया गया सर्वे नहीं बल्कि चुनाव का नतीजा हो। सर्वे वाले प्रोग्राम की टेग लाइन कुछ इस तरह की होती हैं - "देश में अमुक पार्टी को इतनी सीटें मिलने जा रही हैं" या फिर "देश में फिलहाल अमुक पार्टी की ज़बरदस्त हवा चल रही है"
हालाँकि पिछले कई चुनाव से यह सर्वे का काम चल रहा है, मगर अक्सर चुनाव के नतीजे इन सर्वों के उलटे ही होते हैं, चैक करने के लिए देश में हुए पुराने चुनावों के नतीजों और सर्वे पर नज़र डाली जा सकती है। पिछले दिनों सर्वे एजेंसियों पर हुए स्टिंग ऑपरेशन से भी इस फिक्सिंग का खुलासा हो चूका है।
हालाँकि पिछले कई चुनाव से यह सर्वे का काम चल रहा है, मगर अक्सर चुनाव के नतीजे इन सर्वों के उलटे ही होते हैं, चैक करने के लिए देश में हुए पुराने चुनावों के नतीजों और सर्वे पर नज़र डाली जा सकती है। पिछले दिनों सर्वे एजेंसियों पर हुए स्टिंग ऑपरेशन से भी इस फिक्सिंग का खुलासा हो चूका है।
मेरे हिसाब से तो हमारे देश के चुनावी सर्वे हर इलेक्शन में किसी ना किसी पार्टी के द्वारा जनता का ब्रेनवाश करने की कोशिश से अधिक कुछ भी नहीं है।
क्या यह सर्वे भी Paid Media की तरह फिक्स होते हैं?
इस सवाल का जवाब खोजने के लिए जब मैंने कुछ प्रमुख सर्वे कम्पनियों की पड़ताल की तो पाया:
देश की चुनावी सर्वे करने वाली प्रमुख कंपनी सी-वोटर के संस्थापक और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं यशवंत देशमुख, जो कि जनसंघ के संस्थापक सदस्य नाना जी देशमुख के पुत्र हैं। गौरतलब रहे कि सी-वोटर इंडिया टुडे ग्रुप के साथ मिलकर सर्वे करता रहा है।
दूसरी बड़ी सर्वे कंपनी है हंसा ग्रुप, जिसने एनडीटीवी के साथ मिलकर एनडीए को फुल मेजोरिटी का सर्वे दिखाया था। इसके पूर्व सीईओ हैं तुषार पांचाल, और यह वही तुषार हैं जो अभी नरेन्द्र मोदी की पीआर मार्केटिंग संभाल रही अमेरिकन कम्पनी APCO Worldwide के सीनियर डायरेक्टर हैं।
क्या ऐसे में आपको लगता है कि इस तरह के सर्वे विश्वसनीय हो सकते है?
मिडिया पर जिस तरह भाजपा की लहर और कांग्रेस पर कहर को दिखाया जा रहा है, क्या किसी को याद है कि अभी दिसंबर में दिल्ली विधानसभा इलेक्शन में किसकी लहर और किसपर कहर दिखाया जा रहा था और जनता ने फैसला क्या दिया?
याद नहीं 'आप' को केवल 8 सीट और भाजपा को पूर्ण बहुमत वाली लहर मिडिया चैनल्स पर थी। जबकि दिल्ली से ज़्यादा कोई और शहर न्यूज़ चैनल क्या देखता होगा?
दरअसल यह और कुछ नहीं बल्कि पैसे के बल पर लोगो के दिलों में अपनी बात बैठा देने की धूर्तता से अधिक कुछ भी नहीं, और वोह भी केवल इसलिए कि वोटिंग के लिए आपकी सोच और असल मुद्दे इनकी मार्किटिंग के बल पर गौण बनाए जा सकें।
ऐसे में एक सर्वे कुछ ऐसा भी हुआ है, जो ज़्यादातर सोशल मिडिया पर घूम रहा है, जबकि मेनस्ट्रीम मिडिया ने इसे भाव ही नहीं दिया है।
"TRUE VOTERS" सर्वे के हिसाब से राज्य और बीजेपी की संभावित सीट्स इस प्रकार हैं:
उत्तर प्रदेश 80 -- बीजेपी - 16
महाराष्ट्र 48 -- बीजेपी - 09
आन्ध्र प्रदेश 42 -- बीजेपी - 03
पश्चिम बंगाल 42 -- बीजेपी - 01
बिहार 40 -- बीजेपी - 11
तमिल नाडु 39 -- बीजेपी - 00
मध्य प्रदेश 29 -- बीजेपी - 16
कर्नाटक 28 -- बीजेपी - 08
गुजरात 26 -- बीजेपी - 17
राजस्थान 25 -- बीजेपी - 16
उड़ीसा 21 -- बीजेपी - 02
केरल 20 -- बीजेपी - 00
असम 14 -- बीजेपी - 01
झारखंड 14 -- बीजेपी - 03
पंजाब 13 -- बीजेपी - 01
छत्तीसगढ़ 11 -- बीजेपी - 07
हरियाणा 10 -- बीजेपी - 03
दिल्ली 7 -- बीजेपी - 04
जम्मू और कश्मीर 6 -- बीजेपी - 01
उत्तराखंड 5 - बीजेपी - 02
हिमाचल प्रदेश 4 -- बीजेपी - 02
अरुणाचल प्रदेश 2 -- बीजेपी - 00
गोवा 2 -- बीजेपी - 02
त्रिपुरा 2 -- बीजेपी - 00
मणिपुर 2 -- बीजेपी - 00
मेघालय 2 -- बीजेपी - 00
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह 1 - बीजेपी - 00
चंडीगढ़ 1 -- बीजेपी - 00
दमन और दीव 1 -- बीजेपी - 00
दादरा और नगर हवेली 1 -- बीजेपी - 00
नागालैंड 1 -- बीजेपी - 00
पुदुच्चेरी 1 -- बीजेपी - 00
मिज़ोरम 1 -- बीजेपी - 00
लक्षद्वीप 1 -- बीजेपी - 00
सिक्किम 1 -- बीजेपी - 00
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कुल - 123 सीट्स. इसमें 10% कम या ज्यादा होने पर भी बीजेपी 140 का आँकड़ा पार नहीं कर पा रही है.
आप क्या कहते हैं?
कल 20/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत गहन खोज और विश्लेषण किया है आपने. मीडिया का सर्वे विश्वसनीय नहीं है यह तो स्पष्तः दिखता है. मीडिया हो या कोई सब बिकने को तैयार है बस खरीददार रसूख वाला होना चाहिए. लोकतंत्र मज़ाक बन कर रह गया है. जंगल से लोमड़ी आकर कहता है - अबकी बार... ! देखा जाए क्या होता है.
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