क्या किसी को भी यह अधिकार हो सकता है कि वोह किसी को भी थप्पड़ मारे? नहीं ना? फिर अगर शारीरिक हिंसा की इजाज़त नहीं दी जा सकती है तो शाब्दिक हिंसा की इजाज़त किस आधार पर दी जा सकती है? किसी को भी कैसी भी बेबुनियादी / झूठी / अतार्किक नफ़रत फैलाने वाली बातें कहने का अधिकार हरगिज़-हरगिज़ नहीं होना चाहिए... यह सब बातें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा में कैसे आ सकती हैं?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अस्तितव वहीँ तक संभव हो सकता है जहाँ तक कि दूसरे के स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन ना होता हो। अगर कोई मेरे अस्तित्व / विचार अथवा संस्था के खिलाफ झूठी / भ्रामक बातें करता है तो मुझे अदालत से उस पर रोक लगाने और अमुक व्यक्ति अथवा संस्था को दण्डित करने की अपील का अधिकार होना चाहिए।टी किसी के खिलाफ झूठी बुनियादों पर रचे गए शाब्दिक षडयंत्र को किसी भी कीमत पर जायज़ नहीं ठहराया जाना चाहिए।
मेरे इस विचार का सन्दर्भ तसलीमा नसरीन का यह बयान है:
"लेखकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे जो चाहें, लिखे. हरेक को यह अधिकार होना चाहिए कि वह् लोगों को आहत कर सकें. आहत करने के अधिकार के बिना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई अस्तितव नहीं है."
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