वैलेंटाइन डे पर एक युवक को उसकी होने वाली प्रेमिका ने अपनी फोटो और फेविकोल की ट्यूब थमाते हुए सीने से चिपकाने का इशारा किया। युवक को गाने की नायिका के साक्षात् दर्शन होने लगे, उसने अतिउत्साहित होते हुए बोला कि नायिका के अंदाज़ में कहो तो कुछ बात बने। युवक के इस दुस्साहस पर युवती का उसको गुस्से से घूरना स्वाभाविक था। वोह भूल गया कि मृगनयनी को शेरनी बनते देर नहीं लगती है।
प्रेम कहानी पर शुरु होने से पहले ही पूर्ण विराम लगने का खतरा मंडराने लगा था। गहरे पानी में उतरते ही नैया हिचकोले खाने लगे तो सोचिये नाव में बैठे अनाड़ी खवैया का क्या हाल होगा, सर मुंडाते ही ओले पड़ने का अहसास दुखद तो होता ही है। युवक को तो मानो सांप सूंघ गया, काँटों तो खून नहीं! शब्दों ने उसके होंठो का साथ छोड़ दिया, हाल यह था कि धरती डोलती हुई प्रतीत हो रही थी।
अपने दिल की बात कहने के लिए उसने पूरे साल इस दिन का इंतज़ार किया था, किसी और दिन अपने प्रेम का इज़हार कर देता तो आउट डेटेड नहीं कहलाता भला! उसे उम्मीद थी कि वैलेंटाइन के दिन उसकी किस्मत अवश्य खुलेगी। अब जब सारी दुनियां में एक दिन इजहार-ए-प्यार के लिए मुक़र्रर है तो बाकी के दिन उसकी हिम्मत कैसे हो सकती थी? सब काम उचित रीती-रिवाजों से चल रहे थे, 'रोज़ डे' पर जब उसने लाल गुलाब दिया तो युवती ने शरमाते हुए क़ुबूल कर लिया था। 'परपोज़ डे' पर डरते-डरते जब 'वैलेंटाइन डे' पर मिलने का संदेश भेजा गया तो वह भी क़ुबूल कर लिया गया। 'चॉकलेट डे' पर चॉकलेट भी खाई गयी, यहाँ तक कि टेडी डे पर खिलौने को दिल समझ कर अपने सीने से चिपका लिया गया था।
इसके बाद के आयोजनों के लिए युवती ने संदेश दिया कि हम भारतीय हैं और भारतीय परंपरा के अनुसार बाकी कि रस्मों पर 'वैलेंटाइन डे' के बाद ही अमल होगा. मगर अब यह एहसास हो रहा था उसकी बेवकूफी ने बनती हुई बात बिगाड़ दी, हालात इस बात की गवाही दे रहे थे कि 'किक डे' अर्थात 'लातें पड़ने का दिन' आज 'वैलेंटाइन डे' के साथ ही मनाया जाने वाला है।
मगर उसकी किस्मत अच्छी थी, 'वैलेंटाइन डे' मनाने के लिए युवक दस्तूर के मुताबिक फूलों का गुलदस्ता लाया था और उन कोमल फूलों पर नज़र पड़ते ही युवती का गुस्सा उड़न छू हो गया। युवक की जान में जान आई। आखिर उसकी नई-नई 'जान' अनजान होते-होते जो बची थी।
युवक खुशी से झूम उठा, किसी ने सच ही तो कहा है, 'जान' बची तो लाखो पाए! भला हो मार्केटिंग कंपनियों के 'वैलेंटाइन डे' के फंडे का, अगर यह प्रेम की दुकानें नहीं सजती तो प्रेम में कितनी नीरसता होती। इज़हार-ए-मौहब्बत कैसे होते? रूठी हुई प्रेमिका को मनाना कितना कठिन होता। आखिर इस नए युग की प्रेम कथाएँ कैसे बनती? और प्रेम-रस के कवियों का क्या होता?
-शाहनवाज़ सिद्दीकी
.
satire, valentine day, vyangya, critics
भला हो मार्केटिंग कम्पनियों का .... :)
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : भारत कोकिला सरोजिनी नायडू
क्या हिन्दी ब्लॉगजगत में पाठकों की कमी है ?
अच्छा हुआ प्रसंग अगले दिन नहीं पहुंचा...लात जूते मारकर भी प्रेमिका न मिलती तो क्या होता?
ReplyDelete