मैं अन्ना जी और अरविन्द केजरीवाल दोनों का मुद्दों पर आधारित प्रशंसक हूँ, आज के राजनैतिक परिवेश में मुझे राजनैतिक भ्रष्टाचार दूर करने और देश की व्यवस्था में बदलाव लाने का केवल यही एक रास्ता और मंच नज़र आता है, हालाँकि मैं इनकी किसी भी गलत बात का कभी भी समर्थन नहीं करूँगा, बल्कि खुलकर विरोध करूँगा। क्योंकि मेरा मानना है कि सही बात का समर्थन हो, या ना हो... मगर गलत बात का विरोध हर हाल में होना चाहिए।
इसी आधार पर मैं यह मानता हूँ कि मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद हो सकते हैं और मतभेदों का होना गलत भी नहीं हैं। दोनों की राहें जुदा भी हो जाएं मगर फिलहाल तक मंज़िल एक ही नज़र आती है।
इसी आधार पर मैं यह मानता हूँ कि मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद हो सकते हैं और मतभेदों का होना गलत भी नहीं हैं। दोनों की राहें जुदा भी हो जाएं मगर फिलहाल तक मंज़िल एक ही नज़र आती है।
अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने एक कदम आगे बढ़कर जनता के बीच जाने का फैसला किया है, ताकि जनता उन्हें / उनके मुद्दों को / उनके द्वारा मुद्दों को उठाने के तरीके को या फिर उनके द्वारा व्यक्त किए गए समाधान को सीधे चुन सके या नकार सके। उनका यह कदम उन्हें अपने सुझावों को लागु करने का उत्तरदायित्व उठाने वाला दिखाता है।
इसके बावजूद मैं यह भी मानता हूँ कि अधिकतर लोगों ने इन्हे अभी तक मीडिया या व्यक्तिगत तौर पर केवल जाना भर है, पहचाना नहीं है। और मुझे लगता है कि पहचानने के लिए मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि तस्वीर उसके बाद ही साफ़ हो पाएगी।
रखे ताजिया *जिया का, भैया अपने आप |
ReplyDeleteअविश्वास रविकर नहीं, पर करता है बाप |
पर करता है बाप, रही छवि अब ना उजली |
कीचड़ में ही कमल, हाथ में चालू खुजली |
चूर चूर विश्वास, किया क्या हाय शाजिया |
अंतर दिया मिटाय, कहाँ हम रखें ताजिया ||
*दीदी