दामिनी कांड के तथाकथित नाबालिग अभियुक्त को जो सज़ा हुई है, वोह कानून के मुताबिक तो एकदम ठीक हई है, मगर न्याय के एतबार से इस सज़ा को नहीं के बराबर ही कहा जाएगा। मुझे लगता है ध्यान और कोशिश इस सज़ा से भी अधिक ऐसे कानून को बदलने पर होनी चाहिए जिसके तहत रेप विक्टिम को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाया। Juvenile Act को बदलने के लिए एक बड़े सामाजिक आन्दोलन की आवश्यकता है।
समय रहते चेतना होगा, ना केवल बलात्कार जैसे घृणित कृत बल्कि आतंकवाद जैसे समाज के लिए खतरनाक अपराधों में भी इस तरह के कानूनों के दुरूपयोग की पूरी संभावनाएं हैं।
ज़रा सोचिए अगर कसाब 17 वर्ष का होता तो क्या होता???
आपकी कमाल की पोस्ट का एक छोटा सा कतरा हमने सहेज़ लिया ब्लॉग बुलेटिन के इस पन्ने को सज़ाने और दोस्तों तक आपकी पोस्ट को पहुंचाने के लिए , आइए मिलिए अपनी और अपनों की पोस्टों से , आज के बुलेटिन पर
ReplyDeleteआपका प्रशन सच में ही न सिर्फ़ विचारणीय है शाहनवाज़ भाई बल्कि गंभीर भी है , देखिए आने वाले समय में इस दिशा में न्यायपालिका खुद क्या कहती करती है ।
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