बटला हाउस इनकाउंटर हो या मालेगाँव ब्लास्ट, मामला चाहे इशरत जहाँ का हो या फिर साध्वी प्रज्ञा का, सबको अपने-अपने धर्म के चश्मे से देखा जाता है। मीडिया जिसके सपोर्ट में रिपोर्ट दिखाए वोह खुश दूसरों के लिए बिकाऊ मिडिया बन जाता है... कितने ही इन्सान मर गए या मार दिए गए, मगर किसी को गोधरा का ग़म है तो किसी को गुजरात दंगो का...
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? धर्मनिरपेक्षता पर लफ्फाजी और राजनीति की जगह इसकी रूह को समझने और अपनाने की ज़रुरत है... यक़ीन मानिये जब तक हम सब इसपर नही चलेंगे, देश में शांति, खुशहाली और तरक्की आ ही नहीं सकती है..
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? धर्मनिरपेक्षता पर लफ्फाजी और राजनीति की जगह इसकी रूह को समझने और अपनाने की ज़रुरत है... यक़ीन मानिये जब तक हम सब इसपर नही चलेंगे, देश में शांति, खुशहाली और तरक्की आ ही नहीं सकती है..
कब हर मामले को सभी चश्मे हटाकर इंसानियत की निगाह से देखा जाएगा? कब ??????? :(
ReplyDeleteवाकई अफ़सोस की बात है मुकेश भाई! :-(
Deleteहम लोग देखते नहीं है हमें दिखाया जाता है , जिस पार्टी की सरकार है वो हमें अपना चश्मा देती है और विपक्षी अपना और कभी कभी दोनों के फायदे एक ही चश्मे से देखने से होते है तो वो एक भी हो जाते है , यहाँ का हाल ये है की अपराधी पकड़ा जाये या न कोई न कोई तो पकड़ा जान चाहिए की नीति काम करती है |
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा, कभी-कभी तो लगता है कि राजनैतिक पार्टियों ने हमें मानसिक गुलाम बना लिया है।
Deleteएकदम सही कहा शाहनवाज भाई, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हम लोग कभी इंसानियत की निगाह से देख भी पायेंग। जो चश्मा हमने पहना हुआ है वह धर्म का भी नहीं है, कायरता का है और अफ़सोस के साथ कहूंगा कि यह कायरता हम ज्यादातर हिन्दुस्तानियों को कभी नहीं छोड़ेगी। इंसान अगर हिम्मतवाला हो तो वह सीना ठोककर सामने आता है, और कायर परदे के पीछे कहानिया गड़ता है और झूठ बोलता है!
ReplyDeleteधर्म के चश्मे से भी कोई परेशानी नहीं हो अगर अपने-पराये की जगह इन्साफ की नज़र से देखना शुरू कर दिया जाए!
Deleteसत्ता की लालच इंसानियत को ख़त्म कर देती है |
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा मासूम भाई, लेकिन आम आदमी तो सत्ता के लालच के बिना भी केवल राजनेताओं का मोहरा बना हुआ है।
Deleteकम अक्ल या अज्ञानी जिसे नहीं मालूम धर्म क्या है राजनेताओं का मोहरा बनता है या वो जो बिक जाए | आम हिन्दू या मुसलमान आज भी इस नए राजनेताओं द्वारा दिये गए धर्म की परिभाषा से परेशान है |
ReplyDelete.
हल यही है की अपने अपने सच्चे धर्म के बारे में जानो और यदि न जान सको तो इतना ही समझ लो , ज़ुल्म, बेगुनाह की जान लेना , इंसान को इंसान से धर्म के सहारे बांटना किसी भी धर्म का पैगाम नहीं| तो फिर इन राज नेताओं ने कौन सा नया धर्म पैदा कर लिया ?
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एक दिन सबको मरना है और उस समय पाप और पुण्य ,सवाब और गुनाह का फैसला वही करेगा जिसने धर्म की किताब दी है न की यह राज नेता |