"लोकतंत्र कमज़ोर है, वोट खरीदे जाते है, बूथ कैप्चर किये जाते है, मतगणना मे धांधली करवाई जाती है, विधायक और सांसद खरीदे जाते है, पूंजीवादी व्यवस्था है, भ्रष्टाचार फैला हुआ है" इत्यादि-इत्यादि.... यह सब हिंसा के समर्थन की कमज़ोर दलीलें बनी हुई हैं। जब लोग हिंसा के समर्थक होते हैं तो इसी तरह की कमज़ोर दलीलों को हथियार बना लेते हैं, उन्हें अपने से इतर विचार रखने वालों का खून बहना आसान तथा बदलाव के अहिंसक प्रयास असंभव लगते हैं। ऐसे लोग खास तौर पर लोकतंत्र के विरोधी होते हैं, क्योंकि उनकी नज़रों में उनके विचार ही अहमियत रखते हैं। इसी कारण वह बाकी दुनिया के विचारों को रद्दी की टोकरी के लायक समझते हैं और उन विचारों को ज़बरदस्ती कुचल देना चाहते हैं। और इसीलिए वह हिंसा का सहारा लेते हैं, जबकि हिंसा को किसी भी हालत में समाधान नहीं कहा जा सकता है... अगर सिस्टम ठीक नहीं है तो फिर सिस्टम को ठीक करने के प्रयास होने चाहिए।
ऐसा नहीं हैं कि हिन्दुस्तान में एक सीट पर भी लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव नहीं जीता जाता और सारी की सारी भारतीय जनता ही भ्रष्ट हैं। फिर अगर एक सीट भी जीती जा सकती है तो प्रयास से बाकी जगहों पर भी बदलाव लाया जा सकता है।
हमें यह समझना पड़ेगा कि अगर वोट खरीदे जाते हैं तो बिकने वाले वोटर आम जनता ही होती है। जितना खून-पसीना और पैसा हिंसा करने में बहाया जाता है अगर उतनी मेहनत लोगो में जागरूकता फ़ैलाने में लगाईं जाए तो बदलाव जाया जा सकता है। और अगर फिर भी लोगो में बदलाव नहीं आता तो समझ लीजिये लोग बदलना ही नहीं चाहते... फिर इतना खून-खराबा किसके लिए???
पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
हिंसा से मानसिकता सदैव के लिये नहीं बदली जा सकती है।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने शाहनवाज भाई!पर ये परिवर्तन ऊपर से ही हो तो ही ज्यादा कारगर होंगे! एक कहा भी गया है कि " यथा रजा तथा प्रजा", दुसरे आम जनता को जैसा माहौल मिलता है वो वैसा ही व्यवहार करने लग जाती है और ये माहौल देना ही सत्तासीनों का काम होता है!
ReplyDeleteफिर आम जनता की गिनती करोडो में है जबकि माहौल देने वालो की गिनती हजारो में रह जायेगी.... तो कम को जल्दी परिवर्तित किया जा सकता है!ये कम सत्तासीन ही अगर अपनी जिम्मेवारी समझ ले और सही से निभाये तो अधिकतम सामाजिक समस्याए तो ऐसे ही ख़त्म हो जाएगी!
कुँवर जी,
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन शुभकामनायें.अभिव्यक्ति ...!!
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