बेगुनाहों को क़त्ल करने का किसी को भी कोई हक़ नहीं है बल्कि गुनाहगारों को भी क़त्ल करने का हक़ किसी इंसान को नहीं होना चाहिए। गुनाहगारों को सज़ा हर हाल में कानून के दायरे में ही होनी चाहिए। और अगर किसी गुनाहगार को उसका गुनाह साबित किये बिना ही सज़ा होती है तो मेरी नज़र में वह बेगुनाह ही है।
हिंसा किसी भी हालत में जायज़ नहीं हो सकती है, अगर व्यवस्था गलत है तो व्यवस्था बदलो... अगर सरकार गलत है तो सरकारें बादलों... अगर कानून गलत हैं तो कानून बदलो... मगर बेगुनाहों को क़त्ल करने और क़ातिलों की कैसी भी दलील से समर्थन करने का हक़ किसी को भी नहीं है।
आखिर इतनी विभत्स तरीके से आतंक फ़ैलाने वाले नक्सलियों को क्यों आतंकवादी नहीं कहा जाता? आखिर क्यों नहीं यहाँ भी कश्मीरी आतंकवादियों को खत्म करने के तरीके की तरह लाखों की तादाद में फौजी भेजे जाते?
और सबसे अजीब बात यह है की अन्य आतंकवादी घटनाओं पर खौलने वाला खून आज ठंडा क्यों पड़ा है???
आखिर इतनी विभत्स तरीके से आतंक फ़ैलाने वाले नक्सलियों को क्यों आतंकवादी नहीं कहा जाता? आखिर क्यों नहीं यहाँ भी कश्मीरी आतंकवादियों को खत्म करने के तरीके की तरह लाखों की तादाद में फौजी भेजे जाते?
और सबसे अजीब बात यह है की अन्य आतंकवादी घटनाओं पर खौलने वाला खून आज ठंडा क्यों पड़ा है???
Keywords: naxal, terrorism, mass murderer
यह भी सामाजिक आतंकवाद है, घृणित और निन्दनीय।
ReplyDeleteआतंक के हर चेहरे को खतम करना होगा !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सलाम है ऐसी कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल को - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवे अब शुद्ध "नक्सल वादी " नहीं रहे बल्कि चालाक हत्यारे और लुटेरे बन चुके हैं !
ReplyDeleteआन्ध्र के ये "शूरवीर" बिहार और छत्तीस गढ़ में हत्याएं कर, उड़ीसा में भाग जाते हैं और इंतज़ार करते हैं कि देश की सेना अथवा सैन्यबल आकर आदिवासियों को घेरे, मारे अथवा टॉर्चर करे , इससे उन्हें और सहानुभूति और शक्ति मिलती है ....
यह चालाक देशद्रोही रक्तबीज बनाने की नर्सरी चला रहे हैं और हम भारतीय कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग अनजाने में ही , सर्वहारा वर्ग के आंसू पोंछने के नाम पर, इनको शक्ति प्रदान कर रहे हैं !
यह सिर्फ उग्रवादी है और इन्हें बिना सहानुभूति दिए केवल उग्रवादी समझा जाना चाहिए !
क्यों नहीं सेना को इन्हें ख़त्म करने का जिम्मा दे दिया जाए!
ReplyDeleteबहुत से बुद्धिजीवी कहेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारे देश की सेना हमारे देश के नागरिको के ही विरुद्ध गोलिया चलाए!
तो क्या नक्सली विदेशियों को अपना शिकार बना रहे है!कुछ नुक्सान होगा देश का भी पर भला ज्यादा होगा सैनिक कार्यवाही का, मुझे तो ऐसा ही लगता है!
कुँवर जी,
हिंसा का अख्तियार किसी को नही है .लडाई करनी है तो लोकतांत्रिक तरीके से लडो.
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