मेरे द्वारा सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने पर यह नहीं समझ लेना कि मैं कोई संत हूँ और बुराइयाँ मेरे अंदर नहीं हैं... बल्कि मेरा मानना है कि मेरे आवाज़ उठाने से सबसे पहला फायदा मुझे ही होगा... कोई माने ना माने, मेरे स्वयं के मान जाने की तो पूरी उम्मीद है ही...
जहाँ मुझे लगता है कि कोई बुराई समाज में व्याप्त है, वहां आवाज़ उठता हूँ, जिससे कि वह बुराई मेरे अन्दर से समाप्त हो जाए।
'जागते रहो' कि सदा लगाने वाले का मकसद कम-अज़-कम खुद को जगाने का तो होता ही है...
सही कहा, शुरुआत खुद से ही करनी होती है .....
ReplyDeleteशाहनवाज भाई, खुद को जगा के क्या मिलेगा ? खुद जगा है तभी तो औरों को जगाने की कोशिश कर रहा है। मगर इस देश में तो सारे मामा और मुन्ने है ( आज सुशील बाकलीवाल जी के ब्लॉग पर शरद जोशी जी का व्यंग्य पढ़िए मामा और मुन्ने के बारे में पता चल जाएगा। )
ReplyDeleteदुसरे ढंग से कहु तो आप देख ही रहे है कि आपके ब्लॉग पर आपकी इस टिपण्णी के बाद अभी तक कितनी टिपण्णी आई है, किन्तु यदि मैंने किसी मुस्लिम के फर्जी नाम से पहली टिपण्णी यह कर दी होती कि मुसलमान कहाँ जागने वाले तो अभी तक दर्जन भर टिप्पणिया आ चुकी होती, जिसमे अभद्र भाषा में कहा गया होता कि तू जरूर कोई हिन्दू चड्डी होगा मुस्लिम नहीं हो सकता, और मजेदार बात यह कि ये टिप्पणिया मुसलमान विद्ध्वानो ने की हुई होती ठीक इसके उलट आपकी जगह अगर यही किसी हिन्दू ब्लोगर ने लिखा होता और आप एक फर्जी हिन्दू नाम से यह टिपण्णी करते कि हिन्दू नहीं जागेंगे तो कई हिन्दू विद्ध्वानो ने आपको भी उसी शैली में गालिया लिखी होती की तू जरूर कोई मुसलमान या फिर पाकिस्तानी है।
अब अगर आप उनकी टिप्पणियों के मध्यनजर दुसरे पहलू पर गौर करें निचोड़ क्या निकलता है ? निचोड़ उनकी टिप्पणियों से सिर्फ यह निकलता है कि चाहे वह हिन्दू विद्धवान हो अथवा मुस्लिम , अप्रतयक्ष रूप से वह यह स्वीकार रहा है कि अपनी कमुनिटी को जगाने जैसी कोई अच्छी बात एक मुस्लिम या फिर एक हिन्दू विद्धवान कर हि नहीं सकता और तुम जरूर कोई बहरूपिये हो।
Plz check your spam box
ReplyDelete@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ReplyDelete:-)
छोडिये गोदियाल जी, जिनके नेचर के बारे में पता ही है उनपर क्या विमर्श करना।
बाहर-हाल जब मैं किसी बुराई पर कटाक्ष करता हूँ तो अक्सर लोग मुझसे कहते हैं कि शायद आपको लगता है कि आप दूध के धुले हैं, जबकि ऐसा नहीं है। मैं तो बस कोशिश करता हूँ कि सही-गलत के हिसाब से अपने अन्दर भी बदलाव ला सकूँ।
मैंने तो ब्लॉग-जगत में आते ही सबसे पहले यही लिखा था कि
"मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ, और मनुष्य का स्वाभाव ही ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि गलतियाँ हो जाती हैं. इसलिए गलती मुझसे हो सकती है और अपनी गलती पर मैं हमेशा माफ़ी मांगता हूँ. अगर कहीं कुछ गलती हो गई हो तो क्षमा का प्रार्थी हूँ."
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार2/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteआपकी बात से पूरी तरह सहमत क्योंकि आवाज में बुलंदी तब तक आती जब तक की देने वाला उस बात को न कर चूका हो.
ReplyDeleteQuite a different perspective and positive too.
ReplyDeletenice one
ReplyDeleteबहुत बढ़िया खुले मन के उदगार
ReplyDeleteबहुत पते की बात कही आपने ...साभार !
ReplyDelete16 aane sahi baat kahi....
ReplyDelete16 aane sahi baat kahi....
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