स्वर्ग तो अच्छे कर्म करने वालों के लिए रब की तरफ से ईनाम है और ईनाम की लालसा में अच्छे कर्म करने वाला श्रेष्ठ कैसे हुआ भला? हालाँकि फायदे या नुक्सान की सम्भावना आमतौर पर मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित करती ही हैं।
लेकिन मेरी नज़र में तो बुरे कर्म से अपने रब की नाराजगी का डर और अच्छे कर्म से अपने रब के प्यार की ख़ुशी ही सब कुछ है।
मैं अपने पैदा करने वाले और मेरे लिए यह दुनिया-जहान की अरबों-खरबों चीज़ें बनाने वाले का शुक्रगुज़ार ही नहीं बल्कि आशिक़ हूँ, फिर जिससे इश्क होता है उसकी रज़ा में लुत्फ़ और नाराज़गी ही से दुःख होना स्वाभाविक ही है।
और मेरे नज़दीक आशिक के लिए माशूक़ से मिलने से बड़ा कोई और ईनाम क्या हो सकता है?
सटीक है आदरणीय-
ReplyDeleteऔर एक सच्चे प्रेम में किसी इनाम की इच्छा रखनी भी नहीं चाहिए !
ReplyDeleteatiutam-***
ReplyDeleteबहुत सटीक जीवन-दर्शन !
ReplyDeleteसही कहा है ... इसको ही जीवन दर्शन मान लें सभी तो कितना सुधार हो जाए ...
ReplyDeleteऔर मेरे नज़दीक आशिक के लिए माशूक़ से मिलने से बड़ा कोई और ईनाम क्या हो सकता है?
ReplyDeleteसहमत .