मर्द हमेशा कोशिश करते हैं कि किसी न किसी तरीके से औरतों को गुलाम बनाये रखा जा सके। इसके लिए वह धार्मिक बातों को अपने फायदे के लिए तोड़-मरोड़ते हैं। और महिलाऐं उसी को धर्म समझ कर चुपचाप करती रहती हैं।
एक औरत का अपने पति के लिए खाना बनाना, घर का ख्याल रखना, बच्चों की परवरिश करना इस्लाम में फ़र्ज़ नहीं है, बल्कि पति पर एहसान है (अगर वोह करना चाहे तो). यहाँ तक कि अगर पत्नी बच्चे को दूध ना पिलाना चाहे तो ...फ़ौरन दूध पिलाने वाली का इंतजाम करना पति के ऊपर फ़र्ज़ है। और एहसान का बदला एहसान से या फिर कम-अज़-कम हुस्न-सलूक से चुकाया जाता है। लेकिन इसको पत्नी की ड्यूटी बना दिया गया, जिससे कि वोह घर की चार-दिवारी में टिकी रहे।
पति के माता-पिता की देखभाल करना पति की ज़िम्मेदारी है लेकिन उसे पत्नी की ज़िम्मेदारी बना दिया गया। ऊपर से किसी भी महिला के अपने माता-पिता के ऊपर जो फ़र्ज़ हैं उन्हें गुनाह समझा जाने लगा है। कोई महिला अगर अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करती है तो उसे बुरा समझा जाता है।
ज़बरदस्ती अपनी मर्जी को धर्म का जामा पहनाया जाता है, जिससे कि उनसे अपनी मर्जी के काम करवाए जा सकें।
अराधना चतुर्वेदी की पोस्ट http://www.facebook.com/aradhana.chaturvedi/posts/4257068594434 पर मेरा कमेन्ट।
एक औरत का अपने पति के लिए खाना बनाना, घर का ख्याल रखना, बच्चों की परवरिश करना इस्लाम में फ़र्ज़ नहीं है, बल्कि पति पर एहसान है (अगर वोह करना चाहे तो). यहाँ तक कि अगर पत्नी बच्चे को दूध ना पिलाना चाहे तो ...फ़ौरन दूध पिलाने वाली का इंतजाम करना पति के ऊपर फ़र्ज़ है। और एहसान का बदला एहसान से या फिर कम-अज़-कम हुस्न-सलूक से चुकाया जाता है। लेकिन इसको पत्नी की ड्यूटी बना दिया गया, जिससे कि वोह घर की चार-दिवारी में टिकी रहे।
पति के माता-पिता की देखभाल करना पति की ज़िम्मेदारी है लेकिन उसे पत्नी की ज़िम्मेदारी बना दिया गया। ऊपर से किसी भी महिला के अपने माता-पिता के ऊपर जो फ़र्ज़ हैं उन्हें गुनाह समझा जाने लगा है। कोई महिला अगर अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करती है तो उसे बुरा समझा जाता है।
ज़बरदस्ती अपनी मर्जी को धर्म का जामा पहनाया जाता है, जिससे कि उनसे अपनी मर्जी के काम करवाए जा सकें।
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