धार्मिकता और धर्मनिरपेक्षता के एक साथ चलने में कोई भी परेशानी नहीं है लेकिन धर्मान्धता और धर्मनिरपेक्षता का एक साथ चलना मुश्किल है।
मेरी नज़र में धर्मनिरपेक्षता का मतलब है किसी के धर्म पर नज़र डाले बिना सबके लिए समानता और हर धर्म का आदर। हालाँकि धर्मनिरपेक्षता का मतलब मेरे लिए हर एक धर्म में समानता नहीं है।
मैं जिस धर्म को सही मानता हूँ उस पर चलूँगा और आपको हक़ है अपनी सोच के अनुसार अपने धर्म को सही मानने का, इसमें झगडे वाली बात क्या हो सकती है भला? झगडा तो तब है जबकि मैं यह सोचूं कि मेरी ही चलेगी क्योंकि मैं सही हूँ। मेरी बात मानो, नहीं तो तुम्हे इस दुनिया में रहने का हक़ नहीं है। या फिर दूसरों के धर्म या आस्था का मज़ाक बनाता फिरूं। ऐसी सोच वाले मेरी नज़र में धार्मिक नहीं बल्कि धर्मांध हैं और मैं हर एक ऐसे शख्स के खिलाफ हूँ जो ऐसा करता है या सोचता है।
यह तो रब के कानून की अवहेलना है, जिसने दुनिया में सबको अपनी मर्ज़ी से जिंदगी गुज़ारने का हक़ दिया है।
तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म - [109:6] कुरआन
बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से।
ReplyDeleteशुक्रिया राजन जी....
Deleteआपकी बात सोलह आने वाजिब है.
ReplyDeleteशुक्रिया सञ्जय जी....
Deleteशुक्रिया शालिनी जी
ReplyDeleteमैं सही हूँ यह तो हर धर्म को मानने वाला समझता है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं है लेकिन जो मैं करूँ उसी पे सब चलें यह सोंच खतरनाक हुआ करती है. वैसे धर्मान्धता या तो राजनीती से प्ररित हुआ करती है या अज्ञानता वश पैदा होती है.
ReplyDelete@ S.M Masum
ReplyDeleteसही कह रहे हैं मासूम भाई।
काफी दिनों बाद आपको ब्लॉग जगत में देख कर ख़ुशी हुई। तबियत कैसी है अब आपकी?
बहुत अच्छी और सच्ची पोस्ट
ReplyDeleteमासूम जी की बात भी सही है
प्रणाम
आपका कहना शतप्रतिशत सही है !!
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूँ,आपकी बात से बहुत अच्छी पोस्ट।
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