'विश्वरूपम' - बिना मतलब का विवाद

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  • Shah Nawaz
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  • 'विश्वरूपम' पर बिना मतलब का विवाद उठाया जा रहा है। मामला कोर्ट में है, जिसे दोनों पक्षों की बात सुनकर फैसला सुनाना चाहिए। राजनितिक कारणों से अथवा पब्लिसिटी के लिए विवाद करना, विरोध स्वरुप जगह-जगह तोड़-फोड़ करना, धमकियाँ देना घटिया मानसिकता है। किसी भी बात का विरोध करने अथवा अपना पक्ष रखने का तरीका हर स्थिति में लोकतान्त्रिक और कानून के दायरे में ही होना चाहिए।

    मैंने 'विश्वरूपम' नहीं देखी, इसलिए फिल्म पर टिपण्णी करना मुनासिब नहीं समझता हूँ, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोल पीटने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों से इतना ज़रूर मालूम करना चाहता हूँ कि दूसरे पक्ष को सुने बिना अपनी बात को थोपना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे हो सकता है? अगर कल को कोई आतंकवाद के समर्थन या खून खराबे के लिए उकसाने वाली फिल्म बनता है तो क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उस फिल्म का भी समर्थन किया जा सकता है?

    हालाँकि हर एक को अपनी बात रखने का पूरा हक है और होना भी चाहिए, लेकिन कोई फिल्म जैसी चीज़ एक ऐसा ज़रिया नहीं है जिसपर दूसरा पक्ष भी अपनी बात रख सके। किसी फिल्म इत्यादि के द्वारा उठाए गए मुद्दों पर मीडिया, सोशल मीडिया, सेमिनारों इत्यादि पर विमर्श तो हो सकता है लेकिन यह माध्यम सामान्यत: आम लोगो की पहुँच से दूर होते हैं। अर्थात इन माध्यमों से दूर बैठे लोग फिल्म इत्यादि के माध्यम से व्यक्त किये विचार को ही सच मान बैठते हैं। इस नज़रिए से देखा जाए तो फिल्म जैसे माध्यम किसी असहमति पर एक तरफ़ा फैसला सुनाने जैसा है। बड़ा सवाल तो यह है कि किसी पेंटर को तस्वीर बनाने के लिए अथवा फिल्मकार को फिल्म बनाने के लिए विवादित मुद्दे ही क्यों मिलते हैं?

    सबसे बड़ी बात तो यह है कि अभिव्यक्ति की अंध-स्वतंत्रता के पक्षधर यह लोग अपनी बात पर तानाशाही क्यों दिखाना चाहते हैं? वह स्वयं क्यों दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपना पक्ष रखने की आज़ादी को क्यों छीनना चाहते हैं? खुद ही मुद्दा उठाते हैं और खुद ही उसके सही होने पर फैसला भी सुनना चाहते हैं? अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज़ पर सहनशीलता क्यों नहीं दिखाते? कमल हासन ने खुद क्यों नहीं कहा कि वह कोर्ट का फैसला आने के बाद ही फिल्म को प्रदर्शित करेंगे?

    अगर किसी के द्वारा उठाए गए मुद्दे पर अदालत में विमर्श होता है और सही गलत का निर्धारण होता है तो इसमें कुछ भी गलत कैसे कहा जा सकता है? जिस तरह कमल हासन को हक है अपनी बात रखने का उसी तरह बाकी जनता को भी हक है विरोध जताने का। इसमें अगर कमल हासन और उनके साथ खड़े बुद्धिजीवी यह सोचते हैं कि इसका फैसला केवल कमल हासन की मर्ज़ी के मुताबिक ही हो तो क्या इस सोच को जायज़ ठहराया जा सकता है? अपने विरुद्ध फैसला आने पर कमल हासन का बौखलाहट दिखाना और देश छोड़ने की धमकी देना क्या कहा जाएगा?
    अगर मामला कोर्ट में है तो कोर्ट को बिना राजनैतिक दबाव का ध्यान रखे दोनों ओर की दलील सुनकर फैसला सुनना चाहिए। इसमें कोर्ट को लगता है कि कमल हासन ने सही कहा तो उसे कहने के हक मिलना ही चाहिए और अगर ग़लत कहा तो कमल हासन तो क्या किसी को भी हरगिज़-हरगिज़ ऐसी इजाज़त नहीं होनी चाहिए।





    23 comments:

    1. अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता का हवाला देकर कोई कुछ भी परोस दे यह हक किसी को भी नहीं होना चाहिए लेकिन क्या गलत है और क्या सही है इसका फैसला भी सड़कों पर विरोध करके नहीं हो सकता या फिर तोड़फोड़ करके नहीं हो सकता है और कुछ संघटनों ने कह देने भर से यह नाही माना जा सकता कि गलत क्या है और सही क्या है इसका फैसला करने के लिए न्यायालय है और इसका फैसला वहीँ होना चाहिए ! कमल हासन कहतें है कि वो देश छोड़ देंगे तो इसके लिए कमल हासन को धमकी देने कि क्या जरुरत है मकबूल फ़िदा हुसैन कि तरह पलायनवादी होकर देश छोड़ सकतें हैं लेकिन पलायनवादी लोगों के लिए हर जगह मुश्किलें ही खड़ी नजर आएँगी !!

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    2. I second your thought Shah Nawaz Ji. पता नहीं क्यों, मगर शुरू से मुझे यूं लग रहा है कि ये हासन साहब कुछ जरुरत से ज्यादा ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश कर रहे है। यह भी पब्लिसिटी का एक फंडा नजर आ रहा है। इसकी यह फिल्म मैंने भी नहीं देखी लेकिन मैंने कहीं पर पढ़ा था कि इनकी इस फिल्म के एक सीन में नायक, ब्राह्मण नायिका जो कि शाकाहारी है और जिसे वह पापथी “paapathi” कहकर पुकारता है ,से कहता है कि ये चिकन खा और बता कैसा हुआ।
      काफी हद तक संभव है की वह अपनी जगह सही हों किन्तु जिस छद्म-सेक्युलरिज्म की वह बात करता है और किसी सेक्युलर देश में जाने की धमकी देता है, उन्हें यह भी सोचना चाहिए था कि जब वह अपनी पिक्चर के सीन में एक दक्षिण की बाह्मण ( जहाँ मांस भक्षण सर्वथा वर्जित है ) से यह कह सकता है कि इस चिकन को खाके बता कैसा हुआ, तो क्या वह यह भी हिम्मत दिखा पाता की सीन मे नायक मुस्लिम नाइका को कहे कि ये पोर्क खा और बता कैसा हुआ? फिल्म में विदेशी आतंकियों के सीन दिखाने पर तो उसे नानी याद दिला दी गई है अगर जिस तरह की बेहूदी ये जनाब छद्म-सेक्य्लारिज्म के बैनर तले एक ख़ास सम्प्रदाय के प्रति दिखा रहे है, अगर इन्होने उपरोक्त सीन दिखाया होता तो इनका क्या हश्र होता , सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

      उपरोक्त उदाहरण देने का मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि अगर जो मैंने पढ़ा वह सीन इनकी पिक्चर मेंहै तो कुछ लोग उदारता का जिस तरह दुरुपयोग करते है( ब्राह्मण नायिका को कहना की चिकन खा और बता कैसा हुआ ) , तो मैं तो ये कहूँगा कि उन्हें यह सबक मिलना ही चाहिए , जो हासन को मिल रहा है। ( बस्र्ठे यह फिल्म को प्रमोट करने का एक नाटक भर न हो तो , क्योंकि आजकल सच और झूठ की पहचान बड़ी मुश्किल हो गई है )

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      1. काफी हद तक लग रहा है कि नाटक भर है... बाकी फिल्म पर तो जानकारी के बाद ही टिप्पणी की जा सकती है...

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    3. देश छोड़कर भागता ,यह अदना इन्सान |
      सीन हटाने के लिए , कैसे जाता मान |
      कैसे जाता मान, सोच में यह परिवर्तन |
      डाला जोर दबाव, करे या फिर से मंथन |
      रविकर यह कापुरुष, करे समझौता भारी |
      बदले अपनी सोच, ख़तम इसकी हुशियारी |

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    4. दो तीन बाते नागवार लग रही हैं। एक - अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता समझ नहीं आती है। यदि आपको किसी को गाली देने की छूट है तो दूसरे को भी है। फिर क्‍यों चिल्‍लाते हो कि उसने ह‍में देश छोड़ने पर मजबूर किया।
      दो - देश छोड़ने की धमकी। जिनके पास दूसरे देश का आमंत्रण नहीं हैं वे क्‍या करें?
      तीन - लोग चिल्‍ला रहे है कि कमल हासन को आर्थिक नुकसान हो रहा है। यह बात तो समझ के ही परे हैं। किसी को आर्थिक नुकसान हो रहा है इसलिए देश में कुछ भी परोस दो? इस विषय पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है। अ

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      1. जब आप कहते हैं की "वह स्वयं क्यों दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपना पक्ष रखने की आज़ादी को क्यों छीनना चाहते हैं? खुद ही मुद्दा उठाते हैं और खुद ही उसके सही होने पर फैसला भी सुनना चाहते हैं? अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज़ पर सहनशीलता क्यों नहीं दिखाते?" तो मैं थोडा हैरान हो जाता हूँ। क्या कमल हसन ने आपसे मुझसे किसी से अपना पक्ष रखने की आज़ादी को छीना हैं? हम आपको भी यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं । आप भी फिल्म बनायें किसने रोका है ?

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    5. आर्थिक हानि तो भ्रष्‍टाचारियों को भी होती है, तो?

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      1. बिलकुल सही कहा अजीत जी....

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      2. क्या कमल हसन ने आपसे मुझसे किसी से अपना पक्ष रखने की आज़ादी को छीना हैं? हम आपको भी यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं । आप भी फिल्म बनायें किसने रोका है ?

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    6. मुझे तो आज तक समझ ही नहीं आत कि‍ फ़ि‍ल्‍म रि‍लीज़ होने से पहले ही दुनि‍या भर में लाखों लोगों को पता कैसे चल जाता है कि‍ फ़ि‍ल्‍म में क्‍या है.

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      1. पता चल जाता है या बताया जाता है????

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    7. जयललिता ने अपनी फ़िल्मी इस्टाईल में law and order की दुहाई देकर अपनी सफाई दे डाली ! वोट बैंक राजनीति अब नहीं चलेगी कांग्रेसियों ! मुसलमान भी अब जागरूक हो रहे हैं ! सलमान रुश्दी, तसनीमा नसरीन इसके ज्वलंत उदाहरण है! फतवा जारी करने वाले अनपढ़-गवारों के दिन अब लद रहे हैं!

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    8. कमल हसन जैसे सम्बेदन शील कलाकार देश छोडना चाहते है ,सलमान रश्दी को भारत आने नही दिया जाता ,अफरोज जैसा हत्यारा और दरिंदा जिसने दामिनी के साथ दो बार रेप किया इसलिये बचाया जाता है की वह मुस्लिम है,जनरल बी.के .सिंह का स्कूल प्रमाणपत्र गलत हो सकता है क्यूकी उन्होंने देश रक्षा मे अपनी जवानी लगा दिया!!!;प्रज्ञा सिंह को सबूत के आभाव मे कैंसर की अवस्था मे भी जमानत नही दी जा सकती ,,,इसके जिम्मेदार यह इस्लामिक कोंग्रेस नहीं है हम खुद है !!!!!

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      1. इस्लामिक कांग्रेस.... वाह...

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    9. " Innocence of Muslims" के बारे में विद्वानों की क्या राय है ? क्या उस पर विश्व भर के इस्लामिक देशों में मचा बवाल लाज़मी था ?

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      1. पता नहीं,क्योंकि जानकारी नहीं है... बवाल तो कम से कम लाज़मी नहीं था...

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    10. sahi kah rahe hain aap .ye film nirman karne vale ye kyon nahi samjhte ki inke karan desh me bahut see bar sthitiyan bigadi bhi hain ,inki bahut badi zimmedari banti hai .main aapki is bat se poorntaya sahmat hoon ki kamal hasan ko swayam court ke faisle ka intzar karna chahiye tha..सार्थक प्रस्तुति नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
      आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

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    11. चुनाव होने में 12-13 महीने बाकी हैं इसलिए यह बवाल है सेकुलर वीरों का .प्रायोजित है यह ड्रामा .जय सेकुलर अम्मा .जितनी ताकत इन वीरों ने मुस्लिम तुष्टिकरण में लगा रखी है काश इसकी

      अल्पांश भी उनके उत्थान में लगाते तो आज यह सामाजिक आर्थिक हाशिये पे न होते फलस्तीन न बने होते ,बे घर न होते .सोचने और विश्लेषण करने का माद्दा न रखते .जबकि हिन्दुस्तान तो इनकी

      सल्तनत था .आज मज़हबी वोट ने इन्हें क्या से क्या कर दिया है .

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    12. दुबई में तो ऐसी पिक्चरें आती ही नहीं ...

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