मैं दोस्ती इस शर्त पर नहीं करता कि उनकी हाँ में हाँ मिलाऊं और ना ही इस उम्मीद पर कि मेरे दोस्त मेरी हाँ में हाँ मिलाएं।
हर किसी की अपनी शख्सियत, अपनी सोच और अपनी अक्ल है। ऐसे में यह बेमानी शर्त विचारों के साथ ज़बरदस्ती सी लगती है!
मैं दोस्ती इस शर्त पर नहीं करता कि उनकी हाँ में हाँ मिलाऊं और ना ही इस उम्मीद पर कि मेरे दोस्त मेरी हाँ में हाँ मिलाएं।
हर बात में आपकी हां में हां मिलाने वाले आपके दोस्त नहीं होते, वो तो आपसे कुछ ना कुछ स्वहित साधने वाले ही हो सकते हैं और आप अगर किसी की हर बात में हां में हां मिलाते हैं तो आप चमचे कहलाये जायेंगें।
ReplyDeleteकोई कितना भी प्रिय हो स्वविवेक से हां या ना बोलें।
प्रणाम
नेक ख्याल , इसे दोस्ती कहना ही गलत है ये तो चापलूसी करना या बटोरना हुआ, दोस्ती नहीं !
ReplyDeletebadhiya baat
ReplyDeleteछोटी सी बात ब्लॉग के लिए एक छोटा-सा सुझाव कि वहाँ पर टिप्पणियों के शब्द बहुत छोटे है जरा उनका साइज बड़ा करें. पढ़ने में बहुत कठनाई होती है.
ReplyDeleteमैं दोस्ती इस शर्त पर नहीं करता कि उनकी "हाँ" में "हाँ" मिलाऊं और ना ही इस उम्मीद पर कि मेरे दोस्त मेरी "हाँ" में "हाँ" मिलाएं. हर किसी की अपनी शख्सयित, अपनी विचारधारा और अपनी बुध्दिमता हैं. विचार(टिप्पणी) अपने अपने अनुभवों से बनते है. ऐसे में यह बेमानी शर्त (tipdi vahi rahegi jiske shabad meri soch ke anusar hoge jo shabd nahi pasand to nahi pasand)विचारों के साथ ज़बरदस्ती सी लगती है. कोई व्यक्ति कैसे यह अनुमान लगा सकता है कि मेरा वो फलां दोस्त इस प्रकार के शब्द सोच रहा है ? हमारे बीच बेशक मतभेद है मगर कभी "मनभेद" मत कीजिए.
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