मुहर्रम के नाम पर कल रात साड़े ग्याराह बजे (11.30 p.m.) तक लोग हमारे घर के सामने ढोल-तमाशों के साथ हुडदंग मचाते रहे, और उसके बाद आगे निकल गए और लोगो को परेशान करने के लिए। उनके चेहरों की मस्ती बता रही थी कि उन्हें शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन (रज़ी.) की शहादत के वाकिये से कोई वास्ता नहीं था। उनका वास्ता था, तो केवल और केवल अपने हुडदंग और मस्ती से, जिसे धर्म के नाम पर ज़बरदस्ती बाकी लोगो पर थोपा जा रहा था।
अजीब बात है कि आम मुसलमानों को यह दिखाई नहीं देता कि यह लोग शहीद-ए-करबला हजरत इमाम हुसैन को अपनी अश्रुपूरित श्रद्घांजलि देने की जगह उनके नाम पर मस्ती और हुडदंग मचाते है।
और ऐसा किसी खास धर्म या समुदाय के लोग ही नहीं करते, बल्कि हर धर्म में ऐसे लोग मौजूद हैं।
सुबह सही से होने भी नहीं पाई थी, 5 बजे प्रभातफेरी के नाम पर लाउडस्पीकर के साथ शोर मचाना शुरू कर दिया गया। पूजा-अर्चना / इबादत का ताल्लुक स्वयं से होता है, मगर अपनी इबादत में ज़बरदस्ती दूसरों को शामिल क्यों किया जता है?
उफ़ यह धर्म के नाम पर अधर्म कब तक थोपा जाएगा? दिल्ली जैसे शहर में तो अक्सर लोग रात की ड्यूटी करके आते हैं, लेकिन इन लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है, चाहे किसी की नींद खराब हो या फिर किसी की पढ़ाई को नुक्सान हो।
परेशानी का सबब तो यह है कि इस दिखावे नामक अधर्म को धर्म के नाम पर परोसा जा रहा है, हमारे देश में इन तथाकथित धार्मिक लोगो पर कानून का कोई डर नहीं होता। और सरकार से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी है।
0 comments:
Post a Comment