हमारा समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है और इसी पुरुष प्रधान समाज ने धर्मों को अपनी सहूलत के एतबार से इस्तेमाल किया, जहाँ दिल किया वहीँ कृतिम डर दिखा कर नियमों को ऐसे तब्दील कर दिया कि पता भी नहीं चले कि असल क्या है और नक़ल क्या। यहाँ तक कि बड़े से बड़ा दीनदार (धार्मिक व्यक्ति) भी यह सब इसलिए सहता है कि यह सब नियम पुरुष प्रधान ठेकेदारों ने धर्म की आड़ लेकर बनाएं हैं। धर्म के नाम पर कट्टरता दिखाने वाले भी यह मानने को तैयार नहीं होते कि महोलाओं का शोषण करने वाले नियम किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि पुरुष प्रधान सोच के ठेकेदारों की अपने दिमाग की उपज है।
और ऊपर से तुर्रा यह कि अगर कोई इनके खिलाफ आवाज़ उठाए तो सही राह पर होकर भी अधर्मी है।
पुरुष में सच को आत्मसात कर पाने की शक्ति नहीं होती, और यदि होती भी है तो उसका स्वार्थ, पुरुषार्थ , लालचीपन, और आंतरिक कायरता उसे उस सच्चाई को मूर्त रूप देने से रोकता है ! और सच्चाई यही है कि वृहत जीवन में महिला के बिना उसका जीवन एक नरक है !
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDeleteGyan Darpan
बिलकुल सही कहा आपने सहमत हूँ आपसे सार्थक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteहाँ धर्म की दुहाई देकर पुरुष प्रधान समाज धर्मपत्नी का शोषण करता है (धर्म पति सुना है कभी आपने ),उद्धरण देते हैं लोग मानस में यह लिखा है ने ये किया सावित्री ने वह किया ...तूने क्या किया ?बढ़िया पोस्ट बढ़िया मुद्दा उठाया है आपने .
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ReplyDeleteहाँ धर्म की दुहाई देकर पुरुष प्रधान समाज धर्मपत्नी का शोषण करता है (धर्म पति सुना है कभी आपने ),उद्धरण देते हैं लोग मानस में यह लिखा है ने ये किया सावित्री ने वह किया ...तूने क्या किया ?बढ़िया पोस्ट बढ़िया मुद्दा उठाया है आपने .