अँधेरी रात है खुद का भी साया साथ नहीं
कोई अपना ना हो, ऐसी भी कोई बात नहीं
साथ है जो, वोह ज़रूरी तो नहीं साथ ही हो
बात ऐसी भी नहीं, मिलते हो जज़्बात नहीं
कैफियत रात की कुछ ऐसी हुई जाती है
पास लेटा है जो, उससे ही मुलाक़ात नहीं
रिश्ता नयनों का हुआ बारिशों के साथ ऐसा
बादलों को ही यह पहचानती बरसात नहीं
टूटकर चाहा मगर चाहने का हासिल क्या
उसकी नज़रों में जो यह चाहतें सौगात नहीं
अपनी हस्ती को फ़ना कर दिया जिसकी धुन में
उसकी नज़रों में लड़कपन है यह सादात* नहीं
- शाहनवाज़ सिद्दीक़ी 'साहिल'
*सदात = बुज़ुर्गी, गंभीरता
एक रचना को बताने में बहुत समय चला जाता होगा ट्विटर में..
ReplyDeleteट्विटर पर तो लिखना बहुत ही आसान है... हाँ यह अलग बात है कि मेरे मोबाइल से हिंदी में टाइपिंग नहीं हो पाती है...
Deleteगहन अभिव्यक्ति ....!
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!
धन्यवाद अनुपमा जी.
DeleteBahut sundar. Your expression is flawless here:)
ReplyDeletewww.sarusinghal.com
Thanks Saru....
ReplyDeleteवाह शाहनवाज़ भाई गज़ल खूब कही है...
ReplyDeleteक्या कहने.... ये 'सादत का मतलब बता दीजिए.. वो शेर समझ नहीं आया.
ReplyDeleteट्विटर का एप्लीकेशन फेसबुक से बहत बेहतर है पर दोस्त लोग कम हैं उस पर इसलिए... और फोन में हिन्दी न होने से तो इतना परेशां हूँ कि पूछिए मात...
भाई गज़ल खूब कही है..
ReplyDeletebahut khoob ... lajwaab sher ..
ReplyDeleteEk Achhi Padya Rachna Ka Jikra Aapke Dwara. Is Tarah Ki Rachnayen Badi Hi Rochak Hoti Hai.
ReplyDeleteThank You For Sharing. Padhe प्यार की बात, Hindi Love Story aur Bahut Kuch Online.