ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) का मौका आते ही मांसाहार के खिलाफ विवादित लेख लिखे जाने शुरू हो जाते हैं और ऐसा साल-दर-साल चलता आ रहा है। हालाँकि बात अगर तार्किक लिखी गयी हो तो किसी भी तरह के लेख से किसी को भी परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हर किसी को शाकाहारी अथवा मांसाहारी होने का हक है और इसी तरह अपने-अपने तर्क रखने का भी हक है। लेकिन किसी भी सभ्य समाज में इसकी आड़ में किसी धर्म को निशाना बनाए जाने का हक किसी को भी नहीं होना चाहिए। जब मैं नया-नया हिंदी ब्लॉग जगत में आया था, तब किसी ना किसी विषय हिन्दू-मुस्लिम वाक्-युद्ध आम बात थी, जिसके कारण दिन-प्रति दिन कडुवाहट बढती जा रही थी। लेकिन कुछ अमन पसंद ब्लॉगर्स के प्रयास से धीरे-धीरे लोग दोनों तरफ से लिखे जाने वाले विवादित लेखों से दूर हटने लगे। हालाँकि इस बीच लगातार इस तरह के लेख लिखकर आग भड़काने की कोशिश की जाती रही। बकराईद के विरोध में लिखे लेखों को भी मैं इसी कड़ी में देखता हूँ।
हर एक धर्म को मानने वाला अलग-अलग परिवेश में बड़ा होता है, उनके खान-पान, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास में भिन्नता होती है, लेकिन हम अक्सर दूसरे धर्म की बातों को अपनी मान्यताओं और अपनी सोच के पैमाने पर तोलते हैं। और किसी भी बात को गलत पैमाने से जांचे जाने की सोच के साथ हर एक धर्म की हर एक बात पर ऊँगली उठाई जा सकती है और अगर ऐसा होने लगा तो यह समाज के लिए बहुत ही दुखद स्थिति होगी।
जहाँ तक बात ईद-उल-ज़ुहा अर्थात बकराईद पर ऐतराज़ की है, तो सभी तरह के एतराज़ का जवाब पहले ही दिया जा चूका है। ईद-उल-ज़ुहा कुर्बानी का त्यौहार है, क्योंकि मांस अक्सर मुसलमानों के द्वारा भोजन के तौर पर प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस दिन बकरा, भेड़, ऊंट इत्यादि जानवरों का मांस अपने घरवालों, गरीब रिश्तेदारों तथा अन्य गरीबों में बांटा जाता है। हालाँकि गाय की कुर्बानी की इस्लाम में इजाज़त है, लेकिन भारत में हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए मुग़ल साम्राज्य के दिनों से ही गाय की कुर्बानी की मनाही है, दारुल-उलूम-देवबंद जैसे इस्लामिक संगठन भी इसी कारण हर वर्ष मुसलमानों से गाय की कुर्बानी ना करने की अपील करते हैं।
अगर जानवरों की कुर्बानी पर एतराज़ की बात की जाए तो इसमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि इस्लामी मान्यता के अनुसार (बल्कि हिन्दू धर्म की मान्यता और विज्ञान के अनुसार भी) केवल जानवरों में ही नहीं बल्कि हर एक पेड़-पौधे में भी जीवन होता है, वह भी साँस लेते हैं, भोजन करते हैं, बातें करते हैं, यहाँ तक कि पेड़-पौधों में अहसास भी होता है, वह भी अन्य जीवों की तरह मसहूस कर सकते हैं। अर्थात किसी पेड़-पौधे और अन्य जीव में अंतर नहीं होता और वह भी जीव ही की श्रेणी में आते हैं। जैसे जानवर अंडे / दूध देते हैं उसी तरह पेड़-पौधे फल / दलहन / बीज देते हैं, जिससे की उनकी नस्ल आगे बढती रहे।
लेकिन यह सब जानने के बावजूद पढ़े-लिखे, यहाँ तक कि चिकित्सा और अध्यापन जैसे पेशे से जुड़े लोग भी जान-बूझकर ऐसे एतराज़ उठाते हैं जो कि लोगो की भावनाओं को भड़काने का काम करते हैं। बल्कि दिव्या जी तो इससे भी आगे बढ़कर मांसाहार करने वालों को दरिन्दे और आतंकवादियों की श्रेणी में रखती हैं, क्या यह कहीं से भी तर्कसंगत है?
अगर जानवरों की कुर्बानी पर एतराज़ की बात की जाए तो इसमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि इस्लामी मान्यता के अनुसार (बल्कि हिन्दू धर्म की मान्यता और विज्ञान के अनुसार भी) केवल जानवरों में ही नहीं बल्कि हर एक पेड़-पौधे में भी जीवन होता है, वह भी साँस लेते हैं, भोजन करते हैं, बातें करते हैं, यहाँ तक कि पेड़-पौधों में अहसास भी होता है, वह भी अन्य जीवों की तरह मसहूस कर सकते हैं। अर्थात किसी पेड़-पौधे और अन्य जीव में अंतर नहीं होता और वह भी जीव ही की श्रेणी में आते हैं। जैसे जानवर अंडे / दूध देते हैं उसी तरह पेड़-पौधे फल / दलहन / बीज देते हैं, जिससे की उनकी नस्ल आगे बढती रहे।
लेकिन यह सब जानने के बावजूद पढ़े-लिखे, यहाँ तक कि चिकित्सा और अध्यापन जैसे पेशे से जुड़े लोग भी जान-बूझकर ऐसे एतराज़ उठाते हैं जो कि लोगो की भावनाओं को भड़काने का काम करते हैं। बल्कि दिव्या जी तो इससे भी आगे बढ़कर मांसाहार करने वालों को दरिन्दे और आतंकवादियों की श्रेणी में रखती हैं, क्या यह कहीं से भी तर्कसंगत है?
हालाँकि ऐसे भड़काऊ लेख दोनों ही तरफ से लिखे जाते हैं और ज़रूरत ऐसे लेख लिखने वालो को हतोस्ताहित करने की है, लेकिन अक्सर ऐसे लेखों को पढने वालों एवं टिपण्णी करने वालों की संख्या दूसरे लेखों के मुकाबले कहीं अधिक होती है, जो कि लेखक के लिए उर्जा का कार्य करती है।
ZEAL: ईद मुबारक
ReplyDeleteविज्ञान के युग क़ुरबानी पर ऐतराज़ क्यों ?
ब्लॉगर्स मीट वीकली 16 में यह शीर्षक देखकर लिंक पर गया तो उन सारे सवालों के जवाब मिल गए जो कि क़ुरबानी और मांसाहार पर अक्सर हिंदू भाई बहनों की तरफ़ से उठाए जाते हैं।
पता यह चला कि अज्ञानतावश कुछ लोगों ने यह समझ रखा है कि फल, सब्ज़ी खाना जीव को मारना नहीं है। जबकि ये सभी जीवित होते हैं और इनकी फ़सल को पैदा करने के लिए जो हल खेत में चलाया जाता है उससे भी चूहे, केंचुए और बहुत से जीव मारे जाते हैं और बहुत से कीटनाशक भी फ़सल की रक्षा के लिए छिड़के जाते हैं।
ये लोग दूध, दही और शहद भी बेहिचक खाते हैं और मक्खी मच्छर भी मारते रहते हैं और ये सब कुकर्म करने के बाद भी दयालुपने का ढोंग रचाए घूमते रहते हैं।
यह बात समझ में नहीं आती कि जब ये पाखंडी लोग ये नहीं चाहते कि कोई इनके धर्म की आलोचना करे तो फिर ये हर साल क़ुरबानी पर फ़िज़ूल के ऐतराज़ क्यों जताते रहते हैं ?
अपने दिल में ये लोग जानते हैं कि हमारी इस बकवास से खुद हमारे ही धर्म के सभी लोग सहमत नहीं हैं। इसीलिए ये लोग कमेंट का ऑप्शन भी बंद कर देते हैं ताकि कोई इनकी ग़लत बात को ग़लत भी न कह सके।
http://drayazahmad.blogspot.com/2011/11/blog-post.html
http://sb.samwaad.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300536535643#c4722672834712872933
ReplyDeletehttp://sb.samwaad.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300536219522#c8353452545431563583
in dono link me jo kehaa gayaa haen wo aap ne hi kehaa thaa
http://sb.samwaad.com/2011/03/blog-post_19.html
ReplyDeleteaur is link ko phir padhae aur phir kahae itnaa dard aur takleef kyun hotii haen
ReplyDeleteकिसी भी हाल में, किसी धर्म के ख़ुशी के मौकों पर, ऐसी कोई बात नहीं कहनी चाहिए जो उन भाइयों को बुरी लगे !
मांसाहार लगभग हर धर्म में किया जाता है, मेरे घर में मैंने अपने दोनों बच्चों को मांसाहार बचपन से सिखाया है जबकि मैं इसे पसंद नहीं करता ! मगर मैं इसका विरोध खराब तब मानता हूँ जब किसी जानवर की बलि किसी अनुष्ठान पर्व पर दी गयी हो अथवा यह श्रद्धा से जुडी हो फिर चाहे मान्यता किसी धर्म की हो !
हमारा देश किसी एक धर्म का नहीं है यह देश सैकड़ों मान्यताओं के अनुयायियों का घर है ....और हमें सबके साथ चलाना सीखना होगा !
सभ्य समाज में एक दूसरे की आस्थाओं का मज़ाक उड़ाने की कोई जगह नहीं होनी चाहिए !
और यह आवाज हम सबको उठानी होगी !
शाहनवाज़ जी - मैंने आपको कई बार पढ़ा है - कभी टिप्पणी नहीं की | मैं भी मानती हूँ कि लेखन को भावनाएं भड़काने के लिए उपयुक्त नहीं किया जाना चाहिए | किन्तु बकरा ईद पर दी जाने वाली कुर्बानी पर मेरे कुछ सवाल हैं | जिन्हें मैंने अपनी पोस्ट पर लगाया है | आपसे भी प्रार्थना कर रही हूँ कि वहां आयें और समाधान करें | यदि आप चाहें तो इस टिप्पणी को प्रकाशित न करें | लिंक दे रही हूँ
ReplyDeletehttp://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/11/blog-post_08.html
बल्कि दिव्या जी तो इससे भी आगे बढ़कर मांसाहार करने वालों को दरिन्दे और आतंकवादियों की श्रेणी में रखती हैं
ReplyDelete.
Its very bad.
आप शाहाहारी हैं या मांसाहारी..... ये आपकी पसंद या नापसंद का विषय है... इसी तरह आपकी धार्मिक मान्यताएं आपके अपने हैं....
ReplyDeleteकिसी भी धर्म पर टिप्पणी या किसी की पसंद-नापसंद पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
मांसाहार सभी धर्मों के लोग करते है कोई कम कोई ज्यादा| पशु बलि भी लगभग सभी धर्मों में प्रचलित थी अब भी है तो एतराज किस बात का ?
ReplyDeleteजहाँ तक पर्वों पर मांसाहार से बचने की बात है तो हर व्यक्ति ख़ुशी के मौके पर अपने दोस्तों,रिश्तेदारों के लिए अपनी मन-पसंद के पकवान बनाता है अब यदि कोई व्यक्ति मांसाहारी हुआ तो वो तो वही बनाएगा ना| इसमें गलत कुछ कहाँ?
http://sb.samwaad.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300536535643#c4722672834712872933
ReplyDeleteरचना जी पता नहीं कौन सी दुनिया में रहती है जो उन्हें दिखाई नहीं देता... या शायद देखना नहीं चाहती
ये आप के ही शब्द हैं होली के मौके पर जब मैने जाकिर की पोस्ट पर आपत्ति की थी उस समय क्यूँ आप ने भी अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करवाई थी . आप को क्यूँ लगता हैं जो आप कहते वो सही हैं और बाकी सब गलत . सम्मान करिये तभी उम्मीद रखिये की दूसरे भी करेगे .
और शाहनवाज में आप के उत्तर की प्रतीक्षा में हूँ क्या आप को अपनी ये भाषा होलिका दहन वाले आलेख पर सही लग रही हैं . क्या इस भाषा का पलट आज नहीं आप को दिया जाना चाहिये था .
Rachna ji, abhi thoda door hoon isliye jawab dene mein asamarth hoon... Keval itna keh sakta hoon ki main kabhi bhi kisi bhi dharm ke khilaf nahi bolta hoon... Aur jaisa ki maine upar likha hai ki main Mansahaar per ki jaane wali tarkik bahas ka bhi virodhi nahi hoon... Lekin iski aad mein Mazhab ke khilaf likhne ke main avashy viruddh hoon...
ReplyDeleteभारत में सभी धर्मों के लोगों को अपने धार्मिक अनुष्ठान करने की आजादी है!
ReplyDeleteरही बात मांसाहार की तो इसको सहज भाव से लेना चाहिए। अब अपने पैमाने से ही नापते हैं। लेकिन परम्पराएँ अपनी जगह अडिग हैं और रहेंगी!
यही हमारी कौमी एकता का सम्बल है।
होलिका दहन गलत
ReplyDeleteकुर्बानी गलत
इस प्रकार की जितनी भी पोस्ट आती हैं, उनका अभिप्राय वास्तव में दूसरे के धर्म का मखौल उडाना और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करना होता है, बस!
बाकी बात हिंसक और अहिंसक होने की तो ये दोनों तत्त्व हरेक में मौजूद हैं और सबके शब्दों और लेखन से पता चल जाता है।
प्रणाम स्वीकार करें
hame kurbani se koie atraj nahi hai
ReplyDeletekutta biradari ka ek sawaal hai ki
sabki kurbanihoti hai lakin kutto ki
kurbani kiyo nahi hoti hai wah jaanwar samaj ka ek ang hai....
is par vichaar kar ke agle saal kuch kutto ki kurbani bhee karni chahiye .....................
jai baba b banaras......
ठीक बकरीद के समय शाकाहारी होने की अपील करना, ठीक होली के दिन कहना कि होलिका के लिए वृक्ष न काटो...यह आस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाना और दूसरे को चिढ़ाने जैसा है। इस प्रकार हम किसी को सुधार तो पाते नहीं, मन में नफरत के भाव अवश्य भर देते हैं।
ReplyDeleteहमारे देश में विभिन्न राज्यों में अलग अलग त्यौहार मनाया जाता है! सभी अपने अपने धर्मों को मानते हैं इसलिए इस विषय पर कुछ भी कहना उचित नहीं है! आपको एवं आपके परिवार को ईद मुबारक !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/
रचना जी, परिवार में किसी इमरजेंसी के कारण गाँव जाना पड़ा था, इसलिए आपकी टिपण्णी का जवाब नहीं दे पाया...
ReplyDeleteआपके द्वारा ऊपर दिए गए लिंक में मैंने कही भी होली का विरोध नहीं किया, मैं खुद होली के दिन इस दुनिया में आया हूँ. ननिहाल में पला-पढ़ा और वहां हमारे घर के ठीक सामने मेरे नानाजी द्वारा गाँव के एकमात्र होलीका दहन आयोजन की शुरुआत की गई थी जो आज भी बदस्तूर जारी है (जबकि हमारा मौहल्ले में सारी आबादी मुस्लिम समाज की है). इसलिए मुझे पता है कि होलिका दहन का क्या तरीका होता है. मैंने इसीलिए कहा कि पेड़ों को काटकर होलिका दहन में प्रयोग करना धर्म सम्मत भी नहीं है, केवल उपलों और सुखी लकड़ियों को ही जलाया जाता है. लेकिन शहरों में लोग अज्ञानतावश या फिर उपलों अथवा सुखी लकड़ियों की अनुप्लब्द्धता के कारणवश पेड़ को गुद्धों को तोड़कर होलिका दहन में इस्तेमाल करते हैं. मैंने आपसे कहा था कि आप चाहें तो मैं कुछ फोटो खेचकर दिखा सकता हूँ, लेकिन आप इस बात को मानने के लिए ही तैयार नहीं थी. दोनों कमेन्ट नीचे दे रहा हूँ, फिर से देखिये...
Shah Nawaz said...
होलिका दहन के लिए पेड़ों का काटा जाना ज़रूरी नहीं है, गोबर के उपलों से भी काम चलाया जा सकता है, हमारे गाँव में होलिका दहन हमारे मौहल्ले में हमारे घर के ठीक सामने होता है. और वहां हमेशा उपलों का ही प्रयोग होता है.... लेकिन अज्ञानतावश शहरों में लोग लकड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
3/19/11 5:33 PM
Shah Nawaz said...
रचना जी पता नहीं कौन सी दुनिया में रहती है जो उन्हें दिखाई नहीं देता... या शायद देखना नहीं चाहती. मैं तो अभी घर से थोडा ही दूर गया तो देखा कि जगह-जगह पेड़ों के कटे हुए गुद्धे लगे हुए थे, वह कहें तो कुछ फोटो खींच कर दिखाए जा सकते हैं... लेकिन मुझे लगता है कि यह सब अज्ञानता वश ही होता है...
शाहनवाज
ReplyDeleteउस पोस्ट पर मेरी आपत्ति थी की ठीक होलिका दहान के दिन इस प्रकार के आलेख और वो भी साइंस ब्लॉग पर देना गलत हैं आप ने उस कमेन्ट को नकारते हुए जाकिर की हाँ में हाँ मिला कर लिखा " रचना जी पता नहीं किस दुनिया में रहती हैं " और ठीक उसी तरह आप को बकरीद पर क़ुरबानी ना हो इस बात पर आयी पोस्ट पर एतराज हुआ
क्या आप को वहाँ भी ये एतराज नहीं उठाना चाहिये था
जब एक जगह आप गलत बात का प्रतिकार नहीं करते तो अपने समय में क्यूँ करने का अधिकार हैं आप को
रचना जी
ReplyDeleteवहां पर मैंने केवल हरे पेड़ों को काटने की ही बात कही थी और किसी भी बात का समर्थन नहीं किया था... और यह भी कहा था कि हरे पेड़ों को जलना होलिका दहन का तरीका नहीं है, और जो लोग ऐसा करते हैं वह अज्ञानता वश करते हैं...
मेरा स्वयं का मानना है कि किसी को भी दूसरे धर्म के तरीकों पर ऊँगली नहीं उठानी चाहिए, जानकारी हासिल करने की नियत से किया प्रश्न अलग बात है.
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