आजकल समाज में धर्म के कुछ ऐसे ठेकेदार घूम रहें हैं जिनका धर्म से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह लोग समाज पर अपनी दादागिरी दिखाने के लिए ना केवल धर्म का सहारा लेते हैं, बल्कि अपने अनैतिक कार्यों से धर्म को भी बदनाम करते हैं। अभी कुछ दिन पहले शबे-बारात नामक त्यौहार पर कुछ ऐसे ही हुड़दंगियों ने दिल्ली जैसे कई शहरों में कानून को अपनी बपौती समझते हुए रात भर सड़कों पर हंगामा किया। हज़ारों की तादाद में निकले इन युवकों को दंभ था कि पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है, क्योंकि वह यह सब धर्म के नाम पर कर रहे थे। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ हो, बल्कि यह सिलसिला साल दर साल चलता आ रहा है।
अक्सर धर्मस्थलों में पूजा-अर्चना के नाम पर सड़कों पर कब्ज़ा कर लिया जाता है। बात चाहे मंदिर के बाहर लगने वाली श्रद्धालुओं की लम्बी-लम्बी कतारों की हो या फिर मस्जिदों के बाहर नमाज़ अता करने वालों की, इस कार्य में सभी धर्मों के मानने वाले बराबर के शरीक हैं। कहीं आम जनता को यात्राओं, रैलियों अथवा झांकियों के नाम पर परेशान किया जाता है तो कभी बंद अथवा अनशन के नाम पर पुरे शहर को बंधक बना लिया जाता है। उनको इस बात से कुछ भी परवाह नहीं होती की सड़क पर चलने वाले सामान्य नागरिकों का भी उस सड़क पर उतना ही हक़ है!
अभी कुछ दिन पहले कांवड़ यात्रा के नाम पर दिल्ली और आसपास के इलाके में जमकर हुड़दंग मचाया गया। जहां से यह लोग निकल रहे थे वहां पड़ने वाली सिग्नल लाईट को बंद कर दिया जाता था, अगर कोई राहगीर बीच में आ जाता है तो उसको डंडे से मारकर सड़क से ज़बरदस्ती हटाया जाता है। एक जगह तो एक पुलिस अफसर के उपर डाक कांवड़ के नाम से चल रहे ट्रक पर बैठे हुड़दंगी युवकों ने दिनदहाड़े केवल इसलिए पानी डाल दिया गया क्योंकि वह उनके ट्रक के आने पर चैक से भीड़ को नहीं हटा पाया! जगह-जगह लगने वाले पंडाल के कारण रास्तों के बंद होने से जिन लोगो को ज़बरदस्त परेशानी का सामना करना पड़ा होगा, क्या वह इस देश के नागरिक नहीं है? क्या उनका इन सड़कों पर चलने और चैराहों पर अपनी बत्ती होने पर पार करने को कोई हक़ नहीं हैं? यहां तक कि हरिद्वार-दिल्ली राजमार्ग को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। हज़ारों-लाखों की तादाद में लोग नौकरी के लिए सहारनपुर, मुज़फ्फर नगर, मेरठ और मोदी नगर जैसी जगहों से गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, दिल्ली और गुडगांव जैसे शहरों में आते हैं। क्या इन तथाकथित श्रद्धालुओं और सरकार ने कभी सोचा होगा कि रात को थकहार कर नौकरी से लौट रहे लोगों को घर पहुंचने में किस तरह भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा? आखिर यह कैसा धर्म और हम कैसे धार्मिक हैं जहां नैतिकता का कोई स्थान नहीं है?
किसी भी धर्म का कोई भी अनुष्ठान अनैतिकता को बढ़ावा दे ही नहीं सकता है। ऐसी इबादत / पूजा का कोई अर्थ ही नहीं है जिस के कारण आम जनों को असुविधा हो, उनका हक छीना जाए। धर्म तो हमें समाज में जीने का तरीका बताता है, फिर यह समाज से जीने के हक छीनने का कारण कैसे बन सकता है? आज के युग में लोगों ने धर्म को केवल अपनी महत्त्वकांशाओं को पूरा करने का साधन बना लिया है, आज ऐसे लोगों और उनके कार्यों को पहचानने की आवश्यकत है।
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यह मूल लेख त्रुटिवश डिलीट हो गया था, जबकि इसके विषय पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ था. गूगल से प्राप्त टिप्पणियों को नीचे लिखा जा रहा है:
14 comments:
- शाह नवाज भाई, आपकी बातें जायज हैं। मैं खुद पांच बार कांवड ला चुका हूं। अब या तो इस देश के पढे लिखे लोग या सरकार यह कहे कि कांवड लाना ही बन्द कर दो। कोई क्यों नहीं कहता कि कांवड लाना धर्म विरुद्ध है, इससे कांवड ना लाने वाले अन्य लोगों को परेशानी होती है, इसलिये सडक बन्द करने की बजाय इस यात्रा को ही बन्द कर देना चाहिये। ऐसा करने से एक बार दंगा फसाद तो जरूर होगा लेकिन उसके बाद सदा के लिये शान्ति कायम हो जायेगी और सडकें भी बन्द करने की नौबत नहीं आयेगी। अब जब कांवड यात्रा बन्द करने की कोई नहीं कहता तो भईया, सडकें बन्द होनी तय हैं। गिने चुने दोपहिया वाहन या तथाकथित डाक कांवड वाहन भी अत्यधिक भीड के कारण ढंग से नहीं चल पाते तो बसें और ट्रक क्या चलेंगे। कभी कांवडिये यह फरमाइश नहीं रखते कि इस तारीख से इस तारीख तक सडक बन्द होनी चाहिये। वो तो सरकार ही इसे बन्द करती है। हां, मैं बता रहा था कि मैं पांच बार कांवड ला चुका हूं। जहां दस आदमी इकट्ठे होंगे तो उनमें हर तरह के आदमी होंगे फिर यहां तो संख्या लाखों में होती है। इनमें भी हर तरह के आदमी होते हैं। जहां कानून हाथ में लेने वाले लोग होते हैं तो कानून व्यवस्था बनाने वाले लोग भी होते हैं। अब हमें आवाज उठानी चाहिये कि यह यात्रा ही बन्द होनी चाहिये। इस यात्रा का प्रबल हिमायती होने के बावजूद भी मैं यह बात सच्चे मन से कह रहा हूं। तभी यात्रा के कारण होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। है कोई इस यात्रा को बन्द करने के लिये मेरे साथ आवाज उठाने वाला????
- सचमुच यह चिन्ता का विषय है और इसका हल निकलना ही चाहिए.......... एक उम्दा पोस्ट और उतनी ही उम्दा नीरज जाट की टिप्पणी........मैं सहमत हूँ आप दोनों से जय हिन्द !
- शाहनवाज़ भाई आपने इस लेख़ को अच्छे मकसद से लिखा है यह मैं जानता हूँ. लेकिन पूर्णतया सहमत नहीं. क्या नेताओं कि यात्राएं इस श्रेणी मैं नहीं आती? ऐसी यात्राओं और सभाओं के लिए नियम है कि पहले से पुलिस स्टेशन मैं खबर करनी होती है और इजाज़त मिलने पे ही निकाली जाती है. यदि कोई सभा या यात्रा सरकारी इजाज़त ले के निकाली जा रही है तो इसमें अनैतिक क्या है? नमाज़ तो वैसे भी बिना इजाज़त किसी कि भी ज़मीन पे पढना चाहे वो सरकारी ही क्यों ना हो मना है.हाँ बिना इजाज़त सड़कों पे कि गयी नमाज़ या किसी भी धर्म का जुलूस सही नहीं और ऐसे जुलूसों मैं ज़रुरत से ज्यादा शोर मचाना, शराब पी के नाचना सही नहीं और इसको सरकार संभाल सकती है .जब बेशर्मी मोर्चे को ४०० पुलिस का प्रोटेक्शन मिल सकता है तो इन यात्राओं और सभाओं को क्यों नहीं? शाहनवाज़ भाई श्रधा के साथ निकले गए किसी भी जुलूस को ,यात्रा को ,जो सरकारी इजाज़त के बाद निकला हो हुडदंगियों का जुलूस कहना सही नहीं.
- कमजोरी हमारे समाज और राजनैतिक व्यवस्था में है। इस देश में धर्म के नाम पर कोई भी ब्लेकमेल कर सकता है। निश्चित रूप से धर्म का दायरा व्यक्तिगत होना चाहिए। उस के सभी सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबंधित होना चाहिए।
- हमारा समाज धर्मभीरु लोगों से भरा पड़ा है भाई । और सबसे आगे होते हैं नेता । अब कौन किसको रोकेगा ?
- अफ़सोसजनक है यह, धर्म के नाम पर नंगा नाच और हम सब बुजदिलों की तरह देखते रह जाते हैं ! प्रशासन और आम पब्लिक किसी को भी इस भीड़चाल में, बोलने की परमीशन नहीं है ! मीडिया चटपटी ख़बरों को और तेज बना कर केवल हाथ सेंकती है ! इस बुजदिल और मूर्खता पूर्ण माहौल में एक ही रास्ता नज़र आता है कि हम लोग भी इस हुडदंग में शामिल हो जाएँ और तालियाँ बजाएं ! बेहद खेदजनक माहौल है ....लोकतंत्र खलने लगा है ! शुभकामनायें आपको !
- सदाचार का विपरीत है भ्रष्टाचार। सदाचार होता है धार्मिक और भ्रष्टाचार होता है अधार्मिक। यह एक बारीक अंतर है जिसे धर्म को जानने वाला ही समझ सकता है। धर्म के नाम पर अधर्म करने से वह अधर्म धार्मिक कार्य नहीं हो जाता चाहे दुनिया उसे धार्मिक कार्य मानने लगे। कई बार लोग घबराते हैं अधर्म के कार्यों से और छोड़ बैठते हैं धर्म को। अधर्म प्रायः स्वभाव से ही अप्रिय लगता है जबकि धर्म प्रिय । इस लफ़्ज़ को तत्काल सुधार लिया जाय !
- best
- धर्म एक धंधा हो गया है...
- आज धार्मिक आयोजनों में भक्ति कम और दिखावा ज्यादा होता है। इनके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाई जानी चाहिए। ------ कम्प्यूटर से तेज़! इस दर्द की दवा क्या है....
- देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो. धर्म का नाम बदनाम न करो... धर्म कोई भी हो ये इजाज़त कभी नहीं देता कि दूसरों को परेशान किया जाए...सियासत ने इसे ज़रूर अफ़ीम की गोली बनाकर बंटाधार कर दिया... जय हिंद...
- बहुत ही सुन्दर लेख, और उससे भी सुन्दर टिप्पड़ियाँ. मेरे हिसाब से कुछ हद तक में भईया जाट महोदय से सहमत हूँ. पूरी तरह से ना सही लेकिन डाक कांवड़ और बाइक से कांवड़ लाने वालो को तो जरुर. रोक देना चाहिए. जंहा डाक कांवड़ लाने वाले अपनी दादागिरी दिखाने से पीछे नहीं हट ते वोंही बाइक सवार ईस तरह से बाइक चलाते हैं जैसे वो किसी रेस में भाग ले रहे हों. हरिद्वार प्रशासन पूरी तरह से डाक और बाइक कांवड़ को सम्भालने में लग जाता हैं और जब मौका मिलता हैं तो डाक कांवड़ लाने वालो को दौड़ा- दौड़ा के पीटता भी हैं डाक कांवड़ में इस्तेमाल किये जाने वाले टेम्पो चालक ईस कदर से गाड़ी भागते हैं मानो वो मायावती के काफिले के मंझे हुए चालक हो. .
- राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है वरना इन सब चीजो पर नियंत्रण करना इतने भी मुश्किल नहीं है और राजनीतिक इच्छा शक्ति इसलिए कम है क्योकि यहाँ हर चीज को वोट बैंक के तराजू में तौल कर देखा जाता है धर्म तो सबसे ऊपर है | हा जब सरकार पर आती है तब वो किसी चीज को नहीं देखती है |
- यह दादागिरी त्योहारों के समय अधिक मुखर हो जाती है, शायद सड़क चलने में भी बाधा बने :(
सड़कों का दुरुपयोग हर हाल में रुकना चाहिए...मैं आपसे सहमत हूँ...
ReplyDeleteनीरज
शाहनवाज़ जी आप बिलकुल सही कह रहे हैं आज धर्म के नाम पर ऐसी घटनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं और इसके कारण एक तरह से वेस्ट यू.पी का तो जीवन ही रुक जाता है.कोर्ट में काम रुक जाता है वादकारी कठिनाई से आते हैं और निराश हो लौट जाते हैं क्योंकि वकील हड़ताल कर बैठ जाते हैं इस गतिविधि पर अंकुश लगाया जाना ज़रूरी है धर्म के नाम पर अन्धानुकरण और ज़रूरी कामों में आने वाली रुकावटों को दूर करने हेतु सरकार को कदम उठाने होंगें.
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
विचारणीय लेख.......
ReplyDeleteस्वार्थी लोग हर स्थान पर उप्त्थित रहते हैं जहां वह अपनी टोपी ऊंची करने और अपनी झोली भरने से नहीं चूकते, परन्तु सब से अच्छा मानव है जो दुसरो लोगों को सब से ज़्यादा लाभ पहुंचाता हो, और तक्लीफ और कष्ट से बचाता हो,
ReplyDeleteइन ठेकेदारों के द्वारा सडकों पर कब्जा जमा लेने की समस्या तो इतनी विकराल है जिससे देश का प्रत्येक क्षेत्र व नगर अक्सर त्रस्त ही रहता है ।
ReplyDeleteजब-जब इसका विरोध किया गया है हमे नास्तिक कह कर गाली दी गई है। सड़के ही नही छोटी-छोटी गलियों में इस तरह माइक लगा कर हुड़दंग मचाना इंसानियत नही हैवानियत के अंदर आता है।
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