भ्रष्टाचार हमारे बीच में से शुरू होता है, हम अक्सर अपने आस-पास इसे फलते-फूलते हुए देखते हैं। बल्कि अक्सर स्वयं भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। हम भ्रष्ट नेताओं, सरकारी कर्मचारियों / अधिकारीयों को तो बुरा-भला कहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं की हम स्वयं भी कितने ही झूट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं!
हमारी आस्था और उसके विरुद्ध लोगों की राय पर हमारा व्यवहार
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अक्सर लोग अपनी आस्था के खिलाफ किसी विचार को सुनकर मारने-मरने पर उतर जाते
हैं, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी उतनी ही इज्जत देगा, जितनी कि हमारे
दिल में...