आजादी की खबर सुनकर हर व्यक्ति खुश था, जगह-जगह दिवाली और ईद मनाई जाने लगी। देशभक्ति के नारे लगाए जा रहे थे। वहीँ इन सब से दूर एक फ़कीर गहरे चिंतन में डूबे हुए थे। उनके पास से एक युवक गुज़रा, फ़कीर को गंभीर मुद्रा में चिंतन करते देख उसने मालूम किया - "बाबा! क्या आप आजादी से खुश नहीं हैं?" उस युवक के प्रश्न से वह फ़कीर बोले "आज़ादी! ख़ाक आजादी! पहले तूफ़ान खेत को लूटता था, परन्तु अब बाड़ ही खेत को लूटेगी।"
"मैं समझा नहीं!" - युवक ने प्रश्न किया।
फ़कीर ने कहा - "पहले अँगरेज़ हमें लूटते थे इसलिए हमें रक्षक और भक्षक का फर्क महसूस हो जाता था, मगर अब यह फर्क करना मुश्किल है, क्योंकि अब हमें लूटने वाले हमारे अपने ही होंगे और हममें से ही होंगे। मतलब अब खेत को तूफ़ान नहीं बल्कि तूफ़ान से हिफाज़त करने वाली बाड़ ही लुटेगी।"