मुझे पहले ही लग रहा था कि बाबा रामदेव और सरकार के बीच समझौता हो चुका है, लेकिन जनता नाराज़ ना हो जाए इसलिए, एक-दो दिन तक अनशन को चलाया जाएगा। मैंने ऐसी ही एक टिप्पणी परसों सुबह प्रवीण जी एक पोस्ट पर भी की थी, शाम होते-होते मेरा शक सही भी निकल गया। हालाँकि सरकार और बाबा के सूत्रों ने यही बताया था कि वार्ता अभी पूरी तरह सफल नहीं हुई है, बातचीत आगे भी की जाएगी। जबकि बाबा रामदेव एक दिन पहले ही सरकार को अगले दिन दोपहर तक अनशन समाप्त होने का आश्वासन दे चुके थे, लिखित में आश्वासन? क्या यह कुछ अजीब नहीं लगता? और अगर आश्वासन दिया था तो फिर अनशन समाप्त क्यों नहीं हुआ?
अचम्भे की पराकाष्टा तो रात को हुई, जब ब्रेकिंग न्यूज़ देखी कि ज़बरदस्ती अनशन समाप्त कर दिया गया। मैंने उसी समय सोचा था कि आखिर कांग्रेस सरकार बाबा रामदेव को ज़बरदस्ती हीरो क्यों बनाना चाहती है? जबकि उसके पास पूरा मौका था बाबा के लिखे ख़त को भुनाने का। वैसे भी चिट्ठी प्रकरण के बाद मीडिया ने इस अनशन के औचित्य पर जोर-शोर से सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। क्या आपको लगता है कि सरकार ऐसे में इतना बेवकूफी भरा और आत्मघाती कदम उठा सकती है? जबकि सरकार कांग्रेस की हो? उस कांग्रेस की जिसमें एक से बढ़कर एक कुटिल राजनेता भरे पड़े हैं! कहीं ऐसा तो नहीं नहीं कि कांग्रेस राज ठाकरे की ही तरह बाबा को भी हीरो बना कर अपने हित साधने के ख्वाब देख रही है और इसलिए जानबूझकर ऐसा कदम उठाया गया है।
अगर पुरे प्रकरण पर नज़र डालें तो साफ़ पता चलता है कि सरकार ने अपने बचाव के सारे रास्ते शुरू से ही अपनाये हुए थे। कुछ दिनों के बाद वह यह बात जोर-शोर से उठाई जाएगी कि हमने तो पहले ही बाबा की सारी मांगे मान ली थी, सरकार स्वयं ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सरकार ने इस कदम से अपने वोट बैंक को मज़बूत रखने और बाबा की राजनैतिक जड़ों को मज़बूत करने का काम किया है। ज़रा सोचिए कि अगर बाबा राजनीति में आते हैं तो इसका सबसे ज्यादा फायदा किस पार्टी को होगा? बाबा रामदेव के सबसे ज्यादा समर्थक भारतीय जनता पार्टी के वोटर हैं और कांग्रेस की नज़र भी इन्ही वोटों पर होगी। अगर कांग्रेस पार्टी की राजनीति पर नज़र डालें तो पता चलता है कि यह पहले भी इस तरह की कूटनीति को अंजाम देती रही है।
जो हुआ वो अत्यंत खेद जनक है
ReplyDeleteनीरज
bahut badhiya likha hai. sahamat hun lekin party-politics ko chhod bhrastaachaar ke khilaaf ki jaa rahi baaton ko samarthan milna chaahiye chaahe vo sarakaar kare yaa baabaa raamdev.
ReplyDeleteराजनीति कोई भी हो इसमे ये तो होता ही है चाहे बाबा हो नेता हो ....हद कर देने वाली खबर ...
ReplyDeleteकमाल तो ये है की राजनीति के नाम पर इतना कुछ खेल ये कुटिल नेता खेल रहे हैं ... एक दूसरे को मोहरा बना रहे हैं ... और देश की जनता चुप है .
ReplyDeleteये राजनीति है एक जुआ। यहां जीत भी है, हार भी।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
बाबाजी, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सवाल की उपेक्षा क्यों?
आप का संकेत सही लगता है। कांग्रेस के रुपए से लेकर चिल्लर पदाधिकारियों को अब काम मिल गया है सरकार की नीति को जनता तक पहुँचाने का। वर्ना वे पार्टी पर बोझा बने हुए थे।
ReplyDeletejo hua dukhad hai magr koun jeeta yah bad men malum hoga
ReplyDeleteधार्मिक भ्रष्टाचार आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है उसे समाप्त किये बगैर आर्थिक भ्रष्टाचार दूर नहीं हो सकता और न ही रामदेव न ही अन्ना हजारे धार्मिक भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं.तब सब ढोल-तमाशा जनता को मूर्ख बनाने का है.
ReplyDeleteरामदेव कोई नेता नहीं है और उन्हें यह समझ लेना चाहिए था कि वे विष्व के सब से शातीर लोगों से बात कर रहे हैं जो उन्हीं के हर्बे से उन्हें परास्त करेंगे॥
ReplyDeleteराजनीति हम नहीं जानते। हम तो इतना जानते हैं कि जो हुआ वह लोकतंत्र के लिए कलंक है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों में ओछी राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
ReplyDeleteजलियावालाँ काँड की इस घटना से तुलना ही कुछ नहीं ।
ReplyDeleteवह योग किस काम का जिसके ज़रिए योगी आत्मरक्षा भी न कर सके ? बाबा रामदेव जी को अब कराटे कुंगफ़ू भी सीखना और सिखाना चाहिए।
सत्याग्रह में लाठी गोली और बम ही चलते आए हैं । बाबा जी को पुष्पवर्षा की आशा थी ही क्यों ?
मारे डर के औरतों में छिपना सन्यासियों के इतिहास में पहली बार घटित होने वाली एक कलंकित घटना है । भारतीय सन्यासी मौत से कभी नहीं डरते । पता नहीं बाबा का सन्यास किस टाइप का है ?
सन्यासी कभी पर स्त्री को स्पर्श नहीं करता ।
सारी पोल एक झटके में ही खुल गई लेकिन भक्त तो अक़्ल से कोरे ठहरे सो बाबा की अब आ गई मौज !
यह टाला जा सकता था।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे !
ReplyDeleteअब भीडतंत्र की हरकतों पर नज़र रखिये आने वाले समय में राजनीति में और गर्मी आएगी ! लोगों ने नाचना गाना शुरू कर दिया हैं ! बड़ी मुश्किल से यह मौका हाथ लगा है !
अनपढ़ जनता बेचारी देखें क्या करती है ....??
ढूँढिये इस बार वोट किसे देना है ...डी जे पी, ओकदल या परलोकदल, भैंस पी या डी एस पी ......आम देव या ख़ास देव ....
सब नाचते मिलेंगे ! बस एक बार
आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा ....
शुभकामनायें आपको भी शाहनवाज भाई !
हा हा हा... आप भी कमाल करते हैं सतीश भाई.... टिप्पणी के माध्यम से एक ज़बरदस्त और करार वार!
ReplyDeleteआपने सही कहा प्रवीण भाई... यह टाला जा सकता था... बल्कि इसके तो कोई असार ही नहीं थे...
ReplyDeleteमगर जब दोनों को इससे फायदा हो तो भला कैसे टाला जा सकता था??
शक तो मुझे भी यही था.. यह लिखा फेसबुक पर तो कई लोग गुस्सा भी हो गए :)
ReplyDeletebakwas......kuch jyada hi samjhdar ho neta ban jao yaar....
ReplyDeletebakwas.......
ReplyDelete