परिकल्पना सम्मान समारोह!

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  • Shah Nawaz
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  • कई मायनों में भव्य था परिकल्पना सम्मान समारोह!

    कुछ लोगों का मत है कि व्यवस्था में बहुत सी गड़बड़ियाँ रही, समय प्रबंधन नहीं हो पाया, इसके बावजूद मैं परिकल्पना सम्मान समारोह को कई मायनों में भव्य तथा सफल मानता हूँ. मैंने अविनाश जी और रविन्द्र जी से वादा किया था कि समारोह कि देखभाल और किर्याकलापों में सक्रीय योगदान दूंगा, एक ब्लोगर के नाते आयोजन को सफल बनाने में अपने योगदान को अपना कर्तव्य मानता हूँ. इसके साथ-साथ दिल्ली निवासी होने के कारण स्वत: मेज़बान भी था. लेकिन अपनी कमजोरी और दिन में ब्लोगर्स बंधुओं से मुलाक़ात के सिलसिले के कारण शाम तक थक गया था. इसलिए जो भी कमियां रही उसके लिए मैं अपना योगदान ना देने के कारण खुद को भी उसका कारण मानता हूँ.

    खुशदीप भाई का मन व्यथित हुआ, इसके पीछे का कारण भी एक दम जायज़ है. श्री पुन्य प्रसून वाजपयी जी दुसरे सत्र के मुख्य अतिथि थे, इसलिए उन्हें पूर्ण सम्मान मिलना चाहिए था. आयोजन समिति पूरी तरह व्यस्त रही, शायद इसी कारण ध्यान नहीं रख पाएं कि उनको दिया समय हो चूका है, बल्कि हो क्या चूका था उससे भी आधा घंटा ऊपर हो चूका था. मैं और खुशदीप भाई जब बाहर गए तो देखा कि वह तो काफी पहले ही पधार चुकें हैं और बाहर गेट पर खड़े हुए हैं. मैं फ़ौरन भाग कर अन्दर गया, लेकिन रविन्द्र जी स्टेज पर नज़र नहीं आए, उनका फोन भी नहीं मिल पा रहा था. इतने में अविनाश वाचस्पति नज़र आये मैंने फ़ौरन उन्हें बुला कर स्थिति से अवगत कराया. वह भी मेरे साथ मुख्य द्वार की ओर लपके, लेकिन बीच-बीच में लोग उन्हें रोकते रहे, शायद इसलिए और थोड़ी देर हो गयी. जब तक हम बाहर पहुंचे तब तक शायद देर हो चुकी थी और पुन्य प्रसून वाजपयी जी वापसी का मन बनाकर अपनी गाडी मैं बैठ चुके थे. उन्होंने अविनाश जी से थोड़ी देर बात की साथ ही साथ उन्हें समय के प्रबंधन की नसीहत भी दी और चले गए. अपने व्यस्त कार्यकर्म में से थोडा और समय निकलना शायद उनके लिए मुमकिन नहीं था.

    इस बात का एहसास तो सभी को हो गया था कि कार्यक्रम काफी देर से शुरू हुआ था तथा कार्यक्रम के प्रायोजकों के द्वारा अधिक समय ले लिया गया था. लेकिन हमें इस कार्यक्रम को प्रायोजित करने तथा ब्लॉग जगत की आवाज़ को और ऊँचाइयों पर ले जाने के हमारे अभियान को समर्थन देने पर उनका धन्यवाद व्यक्त करना चाहिए. हालाँकि प्रायोजकों द्वारा अत्यधिक समय ले लेना कटोचता रहेगा.  परन्तु हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा आयोजन ब्लॉग जगत में पहली बार हुआ था, इसलिए इतनी अनियमितता होना स्वाभाविक भी था. फिर आयोजन में अविनाश जी और रविन्द्र जी ने अपनी हिम्मत से अधिक मेहनत की थी और इसके लिए हमें इन दोनों का आभारी होना चाहिए.

    इस बहाने ही सही, देश के कोने-कोने से आये ब्लोगर बंधुओं की आपस में मुलाक़ात और विचारों का आदान-प्रदान इस आयोजन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही.

    कार्यक्रम के फोटो यहाँ देखिये, उससे पहले के कुछ ख़ास क्षणों के फोटो यह रहे:

    खुशदीप भाई, सतीश सक्सेना जी और दिनेशराय द्विवेदी जी, हमारे घर पर...
    क्या सोच रहे हैं? भय्या केवल स्प्राईट पी जा रही है. "सीधी बात नो बकवास!"

    सुनीता शानू जी के यहाँ, ब्लोगर्स त्रिमूर्ति ब्लोगिंग प्रवचन के लिए तैयार हैं

    श्रोतागण  भी अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुकें हैं

    लीजिये प्रवचन शुरू हो गया!

    खाने-पीने की भी व्यवस्था है

    दार्जिलिंग की यह बेहतरीन चाय सुनीता जी पहले हम सभी को पिलवा चुकी हैं.

    चोर चोरी से जाए लेकिन ब्लोगर ब्लोगिंग से कैसे जाए?

    गर्मी से बचने के लिए सतीश जी ने ए.सी. के एकदम नीचे जगह ढून्ढ कर आसन जमा लिया  :-)

    हुड हुड दबंग-दबंग - जी. के. अवधिया जी के साथ ललित शर्मा जी
    खुशियों के पल!

    अंत में इतना ही कहूँगा...


    प्रेम के यह सिलसिले दिलदार यूँ ही चलते रहे,
    मिलने-जुलने की आड़ में यह दिल यूँ ही मिलते रहें,

    इस बहाने ही सही, आपस में कुर्बत तो बढे
    यह प्रेमरस बंटता  रहे, यूँ इश्कियां फूल खिलते रहें




    keywords: delhi bloggers samaroh, parikalpna samman, nukkadh.com

    17 comments:

    1. ऐसे आयोजनों में कुछ कमिया रह जाती है लेकिन पुन्य प्रसून बाजपेयी जैसे सामाजिक सरोकार की बात करने वाले पत्रकारों से ये आशा नहीं थी की वो ऐसे इतने सारे ब्लोगरों की मौजूदगी में इस तरह का रूखा व्यवहार दिखाकर दरवाजे से वापस चले जायेंगे ...आयोजकों को काफी कुछ प्रबंध करना परता है ऐसे में कुछ कमियों को हमसब को तथा पुन्य प्रसून जी को भी कमियों को नजर अंदाज कर आयोजकों का साथ देना चाहिए था...दुखद घटना है ये...

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    2. चित्र देख कर अच्छा लगा...

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    3. इस बहाने कम से कम दिनेश राय द्विवेदी और पाबला जी से भेंट का मौका मिल गया !

      सुबह ९ बजे से लेकर तीन बजे तक शाहनवाज भाई के घर जाकर नाश्ता और सुनीता जी के घर छतीस गढ़ की टीम के साथ लंच करना शायद कभी नहीं भुलाया जा सकता !

      दोनों पति पत्नी द्वारा जो सस्नेह आव भगत हुई है वह एक सुखद यादगार रहेगी !

      शुभकामनायें आपको !

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    4. ब्लागर साथियों की मोहक चित्रयात्रा । आपके द्वारा प्रायोजित स्प्राईट के साथ...

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    5. मिलिए -मिलये ..मिलने जुलने से प्यार बढ़ जाता है

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    6. इस एक घटना के लिए रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति के महीनों से अथक परिश्रम को नकारा नहीं जा सकता है... और न ही समारोह की सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है... कोई भी समारोह २+२=४ जैसा सुनियोजित और सुनिश्चित नहीं होता है... प्रायः समारोहों में देर हो ही जाती है... ऐसे में पुन्य प्रसून बाजपेयी का आना और बिना आयोजकों और सैकड़ों ब्लागर्स की भावनाओं का ध्यान रखे वापस चले जाना कहीं से उचित नहीं कहा जाएगा... यूँ तो पूरे भारत से ब्लागर किसी VIP को देखने आये ही नहीं थे... हमेशा की भांति ब्लागरों का मकसद आपस में मिलना जुलना और आभासी मित्रों से आपने सामने विचारों का आदान प्रदान करना था... ब्लागिंग अपने आप में सशक्त और सक्षम विधा है. उसे किसी मीडिया का पिछलग्गू होने जैसी कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती... समारोह अपने लक्ष्य और ऊँचाई पाने में पूरी तरह सक्षम रहा है...
      स्वस्थ आलोचनाएँ सदैव स्वीकार्य हैं परन्तु हिन्दी और ब्लागिंग के लिए छोटे से छोटे सकारात्मक प्रयास के लिए आयोजक बधाई के पात्र हैं

      खुशदीप भाई ब्लागर भी हैं और ब्लागर्स की भावनाओं को बेहतर समझ सकते हैं...

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    7. शाह नवाज़ भाई आप सभी हमारे घर आये यह हमारे लिये बेहद खुशी की बात थी। हमे, हमारे माता-पिता को बहुत अच्छा लगा आप सभी से मिलना। कभी-कभी किसी बहाने से ही घर में रौनक लगना खुशी की बात होती है। दिनेश राय जी,खुशदीप जी, सतीश सक्सेना जी तथा सभी छत्तीसगढियाँ बंधुंओ से मिलकर बहुत अच्छा लगा। सचमुच आयोजन बहुत बढ़िया रहा

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    8. यह ठीक है कि कार्यक्रम को समय के साथ शुरू होना चाहिए था और इसी तरह की दूसरी बहुत सी बातें भी कही जा सकती हैं लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बड़े प्रोग्राम में कुछ झोल रह ही जाते हैं। अगर किसी की जानबूझकर अनदेखी नहीं की जा रही हो तो फिर यह कोई वजह नहीं है कि हमें वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों नहीं मिला ?
      ब्लॉगर ब्लॉगर भाई भाई और महिला ब्लॉगर मां-बहन और हम सब एक परिवार की भावना के साथ ही हमें आपस में संवाद के लिए एकत्रित होना चाहिए और हमारा तो यह मानना होना चाहिए कि जैसा भी है हमारा भाई है।
      इतना बड़ा आयोजन करना कोई हंसी-खेल नहीं है।
      'टेढ़ा है पर मेरा है' की भावना से ओत-प्रोत होते हैं बड़े ब्लॉगर

      आयोजक बधाई के पात्र हैं

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    9. सभी चित्र बहुत सुंदर, इन बातो से हमे समय की कद्र सीखनी चाहिये, ओर समय का पाबंद होना चाहिये, जो हम नही हे,बाकी बहारे फ़िर भी आयेगी....

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    10. इस तरह का बड़ा आयोजन करना कोई हंसी-ठट्टा नहीं है। इस सबके पीछे आप लोगों की अथक मेहनत और क़ाबिलियत झलकती है।
      अड़चने तो आनी स्वाभाविक है। पहली बार की ग़लती से सबक लेकर अगली बार इससे बेहतर आयोजन होगा।
      आप लोगों का योगदान बहुत ही प्रशंसनीय है।
      रवीन्द्र जी निश्चय ही प्रशंसा के पात्र हैं।
      यह ब्लॉगजगत के इतिहास में एक अविस्मरणीय दिन और मील का पत्थर साबित होगा।

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    11. आनन्द आ गया था अपन को भी एक एक करके सभी से मिलकर।

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    12. प्रेम रस पगी पोस्ट के लिए आभार शाहनवाज भाई. कार्यक्रम में पहुचने का हमारा मुख्य उद्देश्य ब्लोगर बंधुओं से मुलाकात करना था. सभी से मिल कर बड़ी ख़ुशी हुयी. जिसका असर अभी तक तारी है.
      कुल मिला कर आयोजन सफल रहा.

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    13. प्रेम के यह सिलसिले दिलदार यूँ ही चलते रहे,
      मिलने-जुलने की आड़ में यह दिल यूँ ही मिलते रहें,

      बहुत बढ़िया फोटो सहित जानकारी दी है ... पढ़कर आनंद आ गया ... बहुत खूब ....

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    14. कल के कार्यक्रम के बारे में अनेक पोस्‍ट आयी हैं। बड़ा विचित्र सा लग रहा है। एक निजी संस्‍था के कार्यक्रम को हम ब्‍लागरों के साथ क्‍यों जोड़ रहे हैं? क्‍या हमने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कोई ब्‍लागर संघ पंजीकृत करवाया है और उस संघ या मंच पर अन्‍य ब्‍लागरों को सदस्‍य बनाया है? ऐसे पंजीकृत संगठन का कोई कार्यक्रम हो तभी तो वो ब्‍लागरों का कार्यक्रम कहलाएंगा। उसमें कोई कमी हो तो अध्‍यक्ष, सचिव आदि से शिकायत करेगा। अब किसी ने किसी राजनेता को बुलाया या पत्रकार को, उसमें क्‍या तकलीफ है? ब्‍लोगरों को उन्‍होंने बुलाया और अपने हिसाब से जो आया उसे सम्‍मानित किया, इसमें मुझे समझ नहीं आता कि कोई विवाद की गुंजाइश है। ना तो यह कोई अकादमी का कार्यक्रम था और ना ही विश्‍वविद्यालय का या फिर सरकारी। जिसमें हम प्रश्‍न करें।

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    15. ji mane bhi yeh sab dekha ....

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    16. .

      @-इस बहाने ही सही, आपस में कुर्बत तो बढे
      यह प्रेमरस बंटता रहे, यूँ इश्कियां फूल खिलते रहें..

      बहुत सुन्दर रिपोर्टिंग शाहनवाज़ जी ।

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