शर्म का समय या गर्व का समय
मेहमान घर पर हैं...
और हम अपने घर का रोना
दुसरो के सामने रो रहे हैं
वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और
हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...
लड़ते तो हम हमेशा से आएं हैं
लेकिन समय हमेशा के लिए हमारे पास है
गलत बातों के विरुद्ध लड़ने के
नैतिक अधिकार की भी आस है
लेकिन.......
हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है,
क्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
हमें बदनाम करने पर वह राज़ी हैं
सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
'अभी नहीं तो कभी नहीं' हमारा नारा है
देश का क्या है?
जब पहले नहीं सोचा
तो अब ही क्यों?
जय हो!
एक नज़र यहाँ भी: राष्ट्रमंडल खेलों के स्थल की तस्वीरें
हमारी आस्था और उसके विरुद्ध लोगों की राय पर हमारा व्यवहार
-
अक्सर लोग अपनी आस्था के खिलाफ किसी विचार को सुनकर मारने-मरने पर उतर जाते
हैं, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी उतनी ही इज्जत देगा, जितनी कि हमारे
दिल में...
Jai ho!!!!!!!! sahi kaha aapne...
ReplyDeleteदेश का क्या है?
ReplyDeleteजब पहले नहीं सोचा
तो अब ही क्यों?
सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते, देर आयद दुरुस्त आयद , जब जागो वहीँ सवेरा
जब जागो वहीँ सवेरा
ReplyDeleteकारज धीरे धीरे होत,काहे होत अधीर।
ReplyDeleteसमय आए तरुवर फ़ूले,केतक सींचो नीर॥
शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया ...लेकिन इस गर्व के बीच अभी भी कही कही शर्म नजर आ रही है .....
ReplyDeleteशर्म का समय या गर्व का समय
ReplyDeleteशाह नवाज़ जी,
आपकी बात से सहमत हूँ, लेकिन
देश का क्या है?
जब पहले नहीं सोचा
तो अब ही क्यों?
हमें फिर भी लड़ने की जल्द बाज़ी है,
ReplyDeleteक्योंकि मेहमान हमारे घर पर हैं
देश को बदनाम करने पर वह राज़ी हैं
सच कहा शाहनवाज़ साहब , लेकिन किस को फ़िक्र है?
इस बात की बेहद ख़ुशी है कि मेरा पोस्ट आपकी रचना के लिए कुछ काम आया. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं. सुन्दर कहने का तो जी नहीं करता क्यूंकि हमारी जिस मानसिकता को ये उजागर कर रहा है वो कभी भी सुन्दर नहीं हो सकता. मगर, फिर भी, शब्दों के बहाव के लिए तो सुन्दर कहना ही पड़ेगा.
ReplyDeletehttp://draashu.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
सारा का सारा देश राजनीति का मारा है
ReplyDeleteऔर अभी नहीं तो कभी नहीं हमारा नारा है
... bahut badhiyaa !!!
सच है ऐसे में में तो राजनीति बन्द होनी ही चाहिये.
ReplyDeleteवाह वाह !
ReplyDeleteआनंद आ गया शाहनवाज भाई !क्या गज़ब की रचना है ! इस आवाज को आगे बढाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
सच कहा है आपने सच मे ये तो शर्म की बात है
ReplyDeleteब्लॉग पर आने को आभार युही मार्गदर्शन करते रहें धन्यवाद
मेहमान घर पर हैं...
ReplyDeleteऔर हम अपने घर का रोना
दुसरो के सामने रो रहे हैं
वह हमारे रोने पर हंस रहे हैं और
हम उनके हंसने पर खुश हो रहे हैं...
...सच में यह बहुत बड़ी बिडम्बना है तो है लेकिन हमें इस समय आयोजन की सफलता की कामना करनी होगी जिससे सारे विश्व में एक सकारात्मक सन्देश पहुंचे
Shahnawaz ji aapne sahi kaha - meri sabhi se yahi gujarish hai ki sabhi log tahe dil se commonwealth game ka joro shoro se swagat karein or apna yogdan de.......or kripiya karke police ki sahayata karein.... kripiya karke apni line main chalain or CWG ke players ko jaldi se jaldi jane or game main participate karne ka moka de....
ReplyDeleteगर्व में शर्म कैसी ?
ReplyDeleteहमें तो गर्व है । समस्याएँ तो आती रहती हैं , उनसे क्या डरना ।
बिलकुल सही कहा आपने हमे यही समझ नही कि जो हम कर रहे हैं उसमे देश की कितनी बदनामी हो रही है\ बस हमे तो मुखालफत करनी है चाहे उस पर देश ही दाँव पर लग जाये। अच्छी लगी रचना बधाई।
ReplyDeleteघर की बात घर वालो मै निपटानी चाहिये, बाहर वालो से आज तक क्या मिला जो हम उन के सामने घर की बुराई कर रहे है ओर उन के आगे दुम हिला रहे है, उन के सभी नखरे सहन कर रहे है, अजी किस किस को रोये ओर किस किस को समझाये?
ReplyDeleteलेकिन किस को फ़िक्र है?
ReplyDeleteबिल्कुल सही फ़रमाया आपने...
ReplyDeleteखुशियों के लम्हों में कुछ बातें नज़र अंदाज़ की जानी चाहिए.
मेहमान घर पर हैं...
ReplyDeleteइसलिए हमारी परम्परा के अनुरूप अब तो सिर्फ हम जय हो ही बोल सकते है. भारत में राजनीति इस कदर हावी है की
क्या होता आया है ओर क्या हो रहा है वो हम सब जानते है. लेकिन सच्चाई से मुंह मोड़ते हुए अब देश की इज्जत को बचाना है. इसलिए अब वही बोलना ओर दिखाना होगा होगा जिससे हमारा सिर ऊँचा हो.
आल इज वैल्ल :)
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