हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएँ
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले
अपने ख़ुद को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ
मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ
गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएँ
अपने घर का शोर मचाया, दुनिया के दिखलाने को
अपने घर को बहुत दिखाया, आओ मिलकर देश दिखाएँ
नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
प्रेम से कोई पार न पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
मंदिर-मस्जिद पर मत बाँटो, हर इसाँ को जीने दो
भारत की गलियों में 'साहिल', चलो ख़ुशी के दीप जलाएँ
- शाहनवाज़ 'साहिल'
Keyword: bharat, india, mandir, masjid, friendship, love, war
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत ज्यादा पसन्द आयी जी
तस्वीर भी अच्छी लगी
प्रणाम स्वीकार करें
नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
ReplyDeleteप्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
आपके देश प्रेम के इस ज़ज्बे को सलाम...लाजवाब लेखन...दाद कबूल करें...
नीरज
ज़ज्बे को सलाम...लाजवाब लेखन...
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteमत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
ReplyDelete'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं
बहुत बढ़िया शाहनवाज़ भाई ,ऐसी पोस्ट्स की ही ज़रूरत है इस कठिन समय में
महक
संवेदनशील रचना ..आपके जज्बे को सलाम.
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना ..आपके जज्बे को सलाम.
ReplyDeleteइस समय देश मेँ सौहार्दपूर्ण माहौल को बनाये रखने के लिए आपके लेखन की बहुत आवश्यकता हैँ। बहुत ही शानदार रचना हैँ। बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOGS :- (1.) ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या हैँ।..........कविता को पढ़कर तथा (2.) क्या आप जानती हैँ कि आपके लिए प्रोटीन की ज्यादा मात्रा हानिकारक हो सकती हैँ।........लेख को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप आमंत्रित हैँ
ReplyDeleteजगमगाते मस्जिद -ओ- मंदिर क्या रोशन करें
ReplyDeleteचलिए गफलत के मारे किसी घर में उजाला करें
बहुत सुंदर भाव! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
अमन का पैगाम देती इस रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteजय हो मेरे भाई...ऐसे ही संदेशों की जरुरत है आज!!
ReplyDeleteनमन करता हूँ...
दिल को छू लेने वाली कविता
ReplyDeleteनफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
ReplyDeleteप्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
बहुत सुन्दर बात कही है ...
सुलझा संदेश, देश के लिये।
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ReplyDeleteसच में ....मैं तो मंदिर मस्जिद ही ख़त्म कर देना चाहता हूँ.... दोनों को शौचालयों में बदल देना चाहिए... हगने -मूतने के काम आयेंगे... तो कम से कम ...आमिर खान डांट तो नहीं लगाएगा...
ReplyDeleteझगड़े की बुनियाद है हिमाक़त
ReplyDeleteहिन्दुस्तान में दीन-धर्म का झगड़ा सिरे से है ही नहीं।
हिन्दुस्तान में झगड़ा है सांस्कृतिक श्रेष्ठता और राजनीतिक वर्चस्व का। जो इश्यू ईश्वर-अल्लाह की नज़र में गौण है बल्कि शून्य है हमने उसे ही मुख्य बनाकर अपनी सारी ताक़त एक दूसरे पर झोंक मारी। नतीजा यह हुआ कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तबाह हो गए। तबाही सबके सामने है। इस तबाही से मालिक का नाम बचा सकता है लेकिन आज उसके नाम पर ही विवाद खड़ा किया जा रहा है।
वंदे ईश्वरम् ! अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteगाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है?
ReplyDeleteअपने घर को बहुत चलाया, आओ मिलकर देश चलाएं
बहुत सुन्दर आह्वान है. रचना भी खूबसूरत
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.......
ReplyDelete“20 वर्षों बाद मिला मासूम केवल डॉन से"
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
आओ मिलकर देश बनाये ...
ReplyDeleteयही कामना हो प्रत्येक देशवासी की तो देश कैसे ना बनेगा ...
बेहतरीन रचना !
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
अच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteआज की ज़रुरत है ऐसी रचनाओं की शाहनवाज भाई , आपको बधाई !
ReplyDeleteनफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
ReplyDeleteप्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
Mahfuj Bhai sahi kah rahe hain,
Naa rahega Bans aur Naa hi bajegi bansuri.
मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए
ReplyDeleteहर मज़हब को बहुत सजाया,आओ मिलकर देश सजाएं
वाह वाह बहुत समय बाद ऎसी रचना पढने को मिली, बहुत सुंदर संदेश दे रही है, इसे फ़ेस बुक ओर ओर्कुट पर भी जरुर लगाये, सलाम आप को भाई, इस सुंदर संदेश के लिये
उत्तम सोच ...उत्तम सन्देश ...
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ReplyDeleteग़ज़ल तो वाकई अच्छी लिखी है आपने शहनवाज़ जी, मगर एक बात यह भी है की देश को मज़हब की भी ज़रूरत है. क्योंकि मज़हब ही इंसान को हक पर चलने की तालीम देता है और लोगों के हक पर चले बिना ना देश सही चल सकता है और ना घर परिवार. बात सिर्फ यह है की मंदिर-मस्जिद के झगडे नहीं होने चाहिए और यह तभी हो सकता है जबकि हम किसी और का हक ना मारें और अपने हक को मुआफ करें.
ReplyDeleteभारत की एकता अखंडता का जीवंत उधारण यहाँ पढ़ें
ReplyDeleteमत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
ReplyDelete'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं ...
आमीन .... बहुत ही दिल से निकले हुवे शब्द हैं ....
ईश्वर एक है, धरती एक है यहाँ पढ़ें
ReplyDeleteBahut behatareen aur tarkik dhang se apne itane samvedansheel mudde ko chhua hai--badhai.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ....
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर पधारे उसके लिए भी धन्यवाद ....
बहुत अच्छी पोस्ट....चित्र भी शानदार .
ReplyDelete___________________
'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
एक मंदिर-मस्जिद मेरे ब्लॉग पोस्ट 'राम-रहीमः मुख्तसर चित्रकथा' में akaltara.blogspot.com पर है.
ReplyDeleteमत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
ReplyDelete'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं
bahut achchhi dil ko chhoo lene wali prastuti .khaskar uparokta panktiya hridayasparshi hai
नफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
ReplyDeleteप्रेम से पार ना कोई पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ
- ऐसी सोचवाले बहुमत में हो जाएँ तो बात बन जाए |
बेहतरीन रचना
ReplyDelete6/10
ReplyDeleteसार्थक - प्रशंसनीय
बहुत बढ़िया एक सुंदर संदेश देती हुई सुंदर रचना..बधाई
ReplyDeleteमत लूटो अब मंदिर-मस्जिद, जीने दो हर इंसा को
ReplyDelete'साहिल' भारत की गलियों में, चलो ख़ुशी के दीप जलाएं
khoobsurat deshprem ras !!!!!!
badhaai
very good. keep it up.
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति... 'भारत' में आज इसकी बहुत जरुरत है...
ReplyDeleteनफरत के तूफ़ान उड़ा कर, देख चुके हैं जग वाले
ReplyDeleteप्रेम से कोई पार ना पाया, आओ मिलकर प्रेम बढाएँ.
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असल धर्म को उदघाटित करती बहुत सार्थक रचना है
आज ऐसी ही सोच और ऐसे ही सृजन की जरुरत है
बधाई / आभार