सभी मित्रों एवं शुभचिंतकों को ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद। अल्लाह से दुआ है कि यह ईद ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरे आलम में चैन-अमन एवं खुशियां लेकर आए....... आमीन!
वैसे तो ईद का मतलब त्यौहार होता है और इस लिहाज़ से हर त्यौहार ईद ही कहलाएगा। चाहे वह यौम-ए-आज़ादी (स्वतत्रंता दिवस) हो अथवा दीपावली। मतलब अरबी में दीपों के त्यौहार को ईद-उल-दिवाली कहा जाएगा!
इस ईद है इसका नाम है ईद-उल-फित्र, यानी रमज़ान के पवित्र महीने के सभी रोज़े रखने की ख़ुशी मानाने का त्यौहार। यह ईद माह-ए-रमज़ान के बाद आती है और रोज़ेदारो के लिए तोहफा होती है। रमज़ान के महीने में रोज़े रखे जाते हैं जिनके द्वारा धैर्य, विन्रमता और अध्यात्म को आत्मसात किया जाता है।
रोज़े रखने के मक़सदों में से एक अहम मकसद ज़कात की अदायगी भी है। हर मुसलमान को रमज़ान के महीनें में अपनी ज़कात का पूरा-पूरा हिसाब लगा कर उसे अदा करना होता है, जो कि कुल बचत की 2.5 प्रतिशत होती है। जब कोई रोज़ा रखता हैं तो और बातों के साथ-साथ उसे भूख का भी अहसास होता है और साथ ही साथ अहसास होता है कि जो लोग भूखे-प्यासे हैं, अपनी बचत में से उन तक उनका हक यानि ज़कात पूरी-पूरी पहुचाई जाए। और इस अहसास के बाद यह आशा की जाती है कि सभी अपनी पूरी ज़कात अच्छी तरह से हिसाब लगा कर हकदारों तक पहुंचाएगा। अगर ज़कात बिना हिसाब-किताब के केवल अन्दाज़ा लगा कर ही दे दी गई तो ज़कात अदा नहीं होती है। वहीं अगर उसके हकदार यानि सही मायने में ज़रूरत मंद तक नहीं पहुंचाई गई और यूँ ही दिखावे करके मागने वालों को दे दी गई तब भी वह अदा नहीं होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि बिना सोचे समझे ज़कात दे देने से फर्ज़ अता नहीं होता है। अगर किसी को अपनी कमाई में से हिस्सा दिया जाता है तो पूरी तरह छानबीन करके ही दिया जाना चाहिए। अक्सर लोग यतीम और गरीब बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण में लगे मदरसों को ज़कात देना उचित समझते हैं। लेकिन वहां भी यह देखा जाना ज़रूरी है कि वहां पढ़ाई तथा रहन-सहन उचित तरीके से हो रहा हो। अर्थात पैसों का सदुपयोग सुनिश्चित होना आवश्यक है, वर्ना ज़कात अदा नहीं होगी और दुबारा देनी पड़ेगी।
ईद की खुशियां चांद देखकर मनाई जाने लगती हैं। ईद का चांद बेहद खूबसूरत और नाज़ूक होता है, तथा थोड़ी देर के लिए ही नमूदार (दिखाई) होता है। ईद के चांद और चांदरात पर तो शायरी की ढेरों किताबें लिखी गई हैं। इस दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठ कर नहाने के बाद फज्र की नमाज़ अता करते हैं। क्योंकि यह दिन रमज़ान के महीने की समाप्ती पर आता है इसलिए इस दिन रोज़ा रखना मना होता है। इसलिए सुबह थोड़ा बहुत नाश्ता किया जाता है, इसमें सिवंईया, खजला, फैनी, शीर तथा खीर जैसे मीठे-मीठे पकवान बनाए जाते हैं। उसके बाद ईद की नमाज़ की तैयारी की जाती है। ईद की नमाज़ से पहले हर इन्सान का फितरा अता किया जाना आवश्यक होता है। फितरा एक तयशुदा रकम होती है जो कि गरीबों को दी जाती है। ईद की नमाज़ वाजिब होती है, अर्थात इसको छोड़ना गुनाह होता है। ईद की नमाज़ पूरी होने के बाद सिलसिला शुरू होता है एक-दुसरे से गले मिलने का, जो कि ख़ास तौर पर पुरे दिन चलता है और बदस्तूर पुरे साल जारी रहता है। और हाँ, घर पहुँच कर बच्चे ईदी के लिए झगड़ने लगते हैं, इस प्यार भरी तकरार के ज़रिये बच्चों को पैसे अथवा तोहफा के रूप में ईदी लेने में बड़ा मज़ा आता है। जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
ब्लॉग जगत के सभी लेखकों, टिप्पणीकारों तथा पाठकों को ईद-उल-फित्र की दिल से मुबारकबाद!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Eid Mubarak, Festival, Eid Greetings
वैसे तो ईद का मतलब त्यौहार होता है और इस लिहाज़ से हर त्यौहार ईद ही कहलाएगा। चाहे वह यौम-ए-आज़ादी (स्वतत्रंता दिवस) हो अथवा दीपावली। मतलब अरबी में दीपों के त्यौहार को ईद-उल-दिवाली कहा जाएगा!
इस ईद है इसका नाम है ईद-उल-फित्र, यानी रमज़ान के पवित्र महीने के सभी रोज़े रखने की ख़ुशी मानाने का त्यौहार। यह ईद माह-ए-रमज़ान के बाद आती है और रोज़ेदारो के लिए तोहफा होती है। रमज़ान के महीने में रोज़े रखे जाते हैं जिनके द्वारा धैर्य, विन्रमता और अध्यात्म को आत्मसात किया जाता है।
रोज़े रखने के मक़सदों में से एक अहम मकसद ज़कात की अदायगी भी है। हर मुसलमान को रमज़ान के महीनें में अपनी ज़कात का पूरा-पूरा हिसाब लगा कर उसे अदा करना होता है, जो कि कुल बचत की 2.5 प्रतिशत होती है। जब कोई रोज़ा रखता हैं तो और बातों के साथ-साथ उसे भूख का भी अहसास होता है और साथ ही साथ अहसास होता है कि जो लोग भूखे-प्यासे हैं, अपनी बचत में से उन तक उनका हक यानि ज़कात पूरी-पूरी पहुचाई जाए। और इस अहसास के बाद यह आशा की जाती है कि सभी अपनी पूरी ज़कात अच्छी तरह से हिसाब लगा कर हकदारों तक पहुंचाएगा। अगर ज़कात बिना हिसाब-किताब के केवल अन्दाज़ा लगा कर ही दे दी गई तो ज़कात अदा नहीं होती है। वहीं अगर उसके हकदार यानि सही मायने में ज़रूरत मंद तक नहीं पहुंचाई गई और यूँ ही दिखावे करके मागने वालों को दे दी गई तब भी वह अदा नहीं होती है।
इसका मतलब यह हुआ कि बिना सोचे समझे ज़कात दे देने से फर्ज़ अता नहीं होता है। अगर किसी को अपनी कमाई में से हिस्सा दिया जाता है तो पूरी तरह छानबीन करके ही दिया जाना चाहिए। अक्सर लोग यतीम और गरीब बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण में लगे मदरसों को ज़कात देना उचित समझते हैं। लेकिन वहां भी यह देखा जाना ज़रूरी है कि वहां पढ़ाई तथा रहन-सहन उचित तरीके से हो रहा हो। अर्थात पैसों का सदुपयोग सुनिश्चित होना आवश्यक है, वर्ना ज़कात अदा नहीं होगी और दुबारा देनी पड़ेगी।
ईद की खुशियां चांद देखकर मनाई जाने लगती हैं। ईद का चांद बेहद खूबसूरत और नाज़ूक होता है, तथा थोड़ी देर के लिए ही नमूदार (दिखाई) होता है। ईद के चांद और चांदरात पर तो शायरी की ढेरों किताबें लिखी गई हैं। इस दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठ कर नहाने के बाद फज्र की नमाज़ अता करते हैं। क्योंकि यह दिन रमज़ान के महीने की समाप्ती पर आता है इसलिए इस दिन रोज़ा रखना मना होता है। इसलिए सुबह थोड़ा बहुत नाश्ता किया जाता है, इसमें सिवंईया, खजला, फैनी, शीर तथा खीर जैसे मीठे-मीठे पकवान बनाए जाते हैं। उसके बाद ईद की नमाज़ की तैयारी की जाती है। ईद की नमाज़ से पहले हर इन्सान का फितरा अता किया जाना आवश्यक होता है। फितरा एक तयशुदा रकम होती है जो कि गरीबों को दी जाती है। ईद की नमाज़ वाजिब होती है, अर्थात इसको छोड़ना गुनाह होता है। ईद की नमाज़ पूरी होने के बाद सिलसिला शुरू होता है एक-दुसरे से गले मिलने का, जो कि ख़ास तौर पर पुरे दिन चलता है और बदस्तूर पुरे साल जारी रहता है। और हाँ, घर पहुँच कर बच्चे ईदी के लिए झगड़ने लगते हैं, इस प्यार भरी तकरार के ज़रिये बच्चों को पैसे अथवा तोहफा के रूप में ईदी लेने में बड़ा मज़ा आता है। जब दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं तो वहां भी बच्चों को ईदी दी जाती है।
ईद खुशियां और भाईचारे का पैग़ाम लेकर आती है, इस दिन दुश्मनों को भी सलाम किया जाता है यानि सलामती की दुआ दी जाती है और प्यार से गले मिलकर गिले-शिकवे दूर किए जाते हैं।
ब्लॉग जगत के सभी लेखकों, टिप्पणीकारों तथा पाठकों को ईद-उल-फित्र की दिल से मुबारकबाद!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: Eid Mubarak, Festival, Eid Greetings
सुभान अल्ला क्या अच्छा लिखा है आपने पढ़कर बहुत अच्छा लगा और इद का सही मतलब मालुम हुआ आपके व आपके पुरे परिवार को मेरी तरफ से ईद मुबारक
ReplyDeleteखुदा आपकी हर मन्नत पुरी करें
‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
आप सभी बंधुओ को भी ईद की हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteईद-उल-फित्र की दिल से मुबारकबाद!
ReplyDelete... ईद मुबारकां ... ईद की हार्दिक बधाई !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शाहनवाज भाई,
ReplyDeleteविस्तार से जानकारी दी और महत्व भी बताया.
ईद की मुबारकबाद कबूल करें!!
(लच्छेदार सेवई मुझे बहुत प्रिय है, दस्तक देने कब आऊं ?)
बहुत खूबसूरत लेख, काश हम सभी त्योहारों को मनाते हुए गरीबों के लिए भी सोच सकें... आपको ईद बहुत बहुत मुबार
ReplyDelete.
ReplyDeleteईद-उल-फित्र की दिल से मुबारकबाद!
.
ईद मुबारक !
ReplyDeleteहम त बिना सेवइयों के नहीं मानने वाले हैं...जब तक गला नहीं मिलिएगा तबतक कैसे बुझाएगा कि ईद मिले हैं...अऊर हमसे उमर में बहुत छोटा हैं त ईदी भी बनता है आपका!!!
ReplyDeleteईद मुबारक़!अल्लाह आपके पूरे परिवार के ऊपर अपना नेमत का बरिश करें!! आमीन!!
ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद।
ReplyDeleteशाहनवाज भाई आपको भी ईद बहुत-बहुत मुबारक हो और उन सभी इंसान को ईद मुबारक हो जो ईद मनाते हैं या नहीं मनाते हैं लेकिन इंसानी संवेदना जरूर रखते हैं ....
ReplyDeleteअल्लाह से दुआ है कि यह ईद ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरे आलम में चैन-अमन एवं खुशियां लेकर आए....... आमीन!
ReplyDeleteईद आपको भी मुबारक हो !
ReplyDeleteईद मुबातक हो ....शुभकामनायें ...लेख अच्छा लगा ..
ReplyDeleteईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद।
ReplyDeleteआपको ईद मुबारक।
ReplyDeleteईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद।
ReplyDeleteशाहनबाज जी नमस्कार! आपको और इस सारे जहाँ को ईद मुबारक हो। ईद को विस्तार से समझाता हुआ ये लेख लाजबाव हैँ।बधाई!
ReplyDeleteआप सबको ईद मुबारक हो
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
हमीरपुर की सुबह-कैसी हो्गी?
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
apko bhi Id mubarak aur is khoobsurat post ke liye badhai.....
ReplyDeleteapki umda soch ko bayan karati hai apki yeh rachna.
गणेशचतुर्थी और ईद की मंगलमय कामनाये !
ReplyDeleteइस पर अपनी राय दे :-
(काबा - मुस्लिम तीर्थ या एक रहस्य ...)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html
सभी को ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी दी आपने...
ReplyDeleteआभार...
ईद मुबारक .
ReplyDeleteबढ़िया बातें की हैं आपने.
ReplyDeleteईद मुबारक.
@शाहनवाज़ भाई ,
ReplyDeleteदेर से आने के लिए माफ़ी चाहूँगा ,आपको और आपके परिवार को ईद की ढेरों मुबारकबाद एवं शुभकामनायें
महक
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने...
ReplyDeleteईद की मुबारकबाद.
शाहनवाज़ भाई ईद की बहुत-बहुत मुबारकबाद, कल ऑनलाइन नहीं हो पाया इसलिए बधाई नहीं दे पाया
ReplyDeleteसभी बंधुओ को ईद की हार्दिक बधाई ...
ReplyDeleteआपको ईद मुबारक...
ReplyDeletePls Read :- http://jeevanka1sach.blogspot.com/
इस पोस्ट के लिये दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteऐसी पोस्टें मुझे बहुत लुभाती हैं। जिसमें जीवन पद्धति सीखने को मिले।
आपको, आपके परिवार, रिश्तेदार, पडोसियों और पुरी मानव जाति को ईद मुबारक
प्रणाम