इस धरती पर हर एक की अपनी अलग फितरत होती है, ज़रा देखते हैं कि किसकी कैसी फितरत है?
लड़के (नर्क में): यार यमराज की लड़की क्या माल है बाप! चलती है तो लगता है फूल गिर रहे हैं। नर्क के सारे लड़के उसके ही पीछे है, एक बार बात करने का मौका मिल जाए!
(संदेशः छिछौरे नर्क में भी छिछौरे ही रहते हैं!)
लड़कियां (स्वर्ग में): इस अप्सरा की नेल पाॅलिश क्या टैकी है यार और वोह ड्रेस देखी उसकी! यह इतनी पतली कैसे है? मैं तो डाईटिंग कर-कर के थक गई, फिर भी वेट (वज़न) कम ही नहीं होता।
(संदेशः यहां भी दूसरी से जलन)
पहलाः अरे मिंया अब इतनी उम्र कहाँ कि उस नवयौवना का पीछे कर पाते, आंखो से ही दूर तक छोड़ आए।
(संदेशः इस उम्र में भी....!)
लड़के (नर्क में): यार यमराज की लड़की क्या माल है बाप! चलती है तो लगता है फूल गिर रहे हैं। नर्क के सारे लड़के उसके ही पीछे है, एक बार बात करने का मौका मिल जाए!
(संदेशः छिछौरे नर्क में भी छिछौरे ही रहते हैं!)
लड़कियां (स्वर्ग में): इस अप्सरा की नेल पाॅलिश क्या टैकी है यार और वोह ड्रेस देखी उसकी! यह इतनी पतली कैसे है? मैं तो डाईटिंग कर-कर के थक गई, फिर भी वेट (वज़न) कम ही नहीं होता।
(संदेशः यहां भी दूसरी से जलन)
अधेड़ उम्र के साथी (नर्क में): अरे भाई, कल पड़ोस के आग के पार्क में सुबह-सुबह जौगिंग कर रहा था, (बाई आंख मारते हुए) वोह लल्लन की छोरी आग में भी गुलज़ार लग रही थी।
दूसराः तो कुछ बात-वात की?पहलाः अरे मिंया अब इतनी उम्र कहाँ कि उस नवयौवना का पीछे कर पाते, आंखो से ही दूर तक छोड़ आए।
(संदेशः इस उम्र में भी....!)
बहु (स्वर्ग में): हे प्रभु! मेरी सास मुझे दिन-रात सताती है, उसे यहां क्यों रखा है? काश! यह नर्क में चली जाए, हम साथ-साथ नहीं रह सकते हैं।
स्वर्ग में है इसलिए इसकी मनोकामना क़ुबूल हो गई. उसकी विश कुबूल होने के बाद।
सास (नर्क में): प्रभु! नर्क में बहुत तकलीफ है, मेरी बहु अगर मेरी सेवा करती तो अच्छा था। मेरा उसके बिना दिल नहीं लगता है, उसे भी मेरे पास भेज दीजिए।
(संदेशः मतलब अपना भला हो ना हो, लेकिन बहु का बुरा अवश्य होना चाहिए।)
बाप और बेटा (धरती पर): प्रभु हमें कहां छोड़ दिया? वोह दोनों चाहे जैसी भी थी, लेकिन............. नौटंकी के बिना अब तो खाना भी हज़म नहीं होता है! प्लीज़ हमें भी उनके पास भेज दीजिये!
===> यह बेचारे वोह प्राणी है कि प्रभु ने भी सोचा कि इनका अकेला रहना ही बेहतर है। लेकिन अकेले रहना इनके बस का कहाँ है???
(संदेशः यह वोह खरबूज़े हैं जिन्हें हर हाल में कटना ही कटना है! मतलब एक का पक्ष लिया तो दूसरी नाराज़)
वैसे मर्द, मर्द ही होते हैं, यकीन नहीं आता है तो यह देखो.........
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Keywords: Hindi Critics, फितरत
वाह दोस्त क्या कमाल का व्यंग है मज़ा आ गया !
ReplyDeleteअंतरात्मा साफ न हो तो साडी अच्छाई ढोंग के सामान है और वो लोगों को महसूस हो ही जाता है जैसे सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह जी का इस देश के आम लोगों के प्रति जो रवैया है ...
ReplyDeleteगज़ब किया जी................
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
आपकी नज़र को सलाम !
kya likha hai aapne badhiya.....gajab ki creativity hai bhai... :)
ReplyDeleteखूब पोल खोली है अपने सबकी
ReplyDeleteबाप बेटे से (परलोक में): बेटा यह चाहे परलोक ही क्यों ना हो लेकिन यह महिलाएँ, यहाँ भी महिलाएँ ही हैं. कभी किसी एक का पक्ष मत लेना, मगर किसी एक के सामने हमेशा उसका ही पक्ष लेना! और कभी भूल कर भी पत्नी के सामने अप्सराओं को मत घूरना, वर्ना जीते जी धरती सीधार जाओगे!
ReplyDeleteयहाँ तो आपने बहुत ही ज्ञान की बाते बता दी हैं, कमाल की पकड़ है.
idd mubaraq!
ReplyDeleteidd mubaraq!
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शाहनबाज जी आपको ईद मुबारक हो? "खुशियोँ से भरी हो आपकी ईद , खुलकर कर गले मिलिए आप भी ईद।।" हास्यव्यंयग प्रस्तुत करने की शैली लाजबाव हैँ। बधाई! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ ............... गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
ReplyDeleteअलबेला जी,
ReplyDeleteआपके इतनी गर्मजोशी के साथ ईद की मुबारकबाद के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया... आपको और आपके परिवार को भी ईद बहुत-बहुत मुबारक हो.
डॉ अशोक जी आपको और आपके परिवार को भी ईद की ढेरों शुभकामनाएँ! अभी तो ब्लॉग के ज़रिये मुबारकबाद दे रहे हैं, कभी मिलेंगे तो ज़रूर गले मिलकर मुबारकबाद देंगे.
उम्मीद करता हूँ की ईद पुरे विश्व में खूब सारी खुशियाँ लेकर आए.... अमीन....
ईद पर एक लेख लिखा है, ईद के दिन ज़रूर पढियेगा....
काहें पोल खोल रहे हो भय्या?
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयमराज की लड़की वाला और इंडियन क्रिकेट टीम वाला मस्त आईटम है :)
ReplyDeleteवाकई फितरत कभी नहीं बदलती. कल तक शराबघर में बैठे गालियाँ बकते और सुनते कुछ लोगों को आज ब्लॉग जगत का स्वाद मिल गया है तो यहाँ भी अपनी फितरत दिखाए जा रहे हैं.
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य :-)
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी ईद की बहुत-२ मुबारकबाद
अपने ईद वाले लेख को " ब्लॉग संसद " पर भी ज़रूर डालियेगा शाहनवाज़ भाई
खुदाहाफिज़
महक
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
... बहुत खूब मियां ... छा गये ... शानदार-जानदार पोस्ट ... ईद की अग्रिम मुबारकां !!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, शानदार और मज़ेदार व्यंग्य रहा! बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteआपने फ़ितरत को अच्छे अंदाज मे पेश किया है
ReplyDeleteबहुत रोचक पोस्ट.. ईद मुबारक हो ...
ReplyDeleteआखिरी तस्वीर तो जबर्दस्त्त है :)
ReplyDeleteआखिरी तस्वीर तो जबर्दस्त्त है :)
ReplyDeleteईद मुबारक!
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