मायूसियों से अकसर भर जाती है ज़िन्दगी
कभी मौत का डर, कभी डराती है ज़िन्दगी
मौत तो आती है एक बार सताने को
पर रोज़ ही आकर यह सताती है ज़िन्दगी
जो लोग अक्सर खेलते हैं दीन दुनिया से
अंजाम उनका बदतर बनाती है ज़िन्दगी
हर तरफ मायूसियाँ भर जाए ज़िन्दगी में
उस वक़्त तो यह खूब रुलाती है ज़िन्दगी
शिद्दत के साथ इश्क ना कर इस हयात से
पल भर में बेवफा यह हो जाती है ज़िन्दगी
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords: इश्क, ज़िन्दगी, डर, दीन, दुनिया, मायूसियाँ, मौत, हयात
हमारी आस्था और उसके विरुद्ध लोगों की राय पर हमारा व्यवहार
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अक्सर लोग अपनी आस्था के खिलाफ किसी विचार को सुनकर मारने-मरने पर उतर जाते
हैं, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी उतनी ही इज्जत देगा, जितनी कि हमारे
दिल में...
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
ReplyDeleteहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
मौत तो आती है एक बार सताने को
ReplyDeleteपर रोज़ ही आकर यह सताती है ज़िन्दगी
क्या बात है-उम्दा गजल पढकर आनंद आ गया।
मौत तो आती है एक बार सताने को
ReplyDeleteपर रोज़ ही आकर यह सताती है ज़िन्दगी
बहुत अच्छी पंक्ति
बेहतरीन ग़ज़ल| जिंदगी के यह सारे पहलू भी कमाल के हैं .......दिल से मुबारकबाद|
ReplyDeleteब्रह्मांड
भावों के शिखर को छूती रचना।
ReplyDeleteशिद्दत के साथ इश्क ना कर इस हयात से
पल भर में बेवफा यह हो जाती है ज़िन्दगी
उम्दा ग़ज़ल
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है शाहनवाज़ सिद्दीकी जी
ReplyDeleteमौत तो आती है एक बार सताने को
ReplyDeleteपर रोज़ ही आकर यह सताती है ज़िन्दगी
बहुत बढ़िया
क्या बात है-उम्दा गजल पढकर आनंद आ गया।
ReplyDeleteशाहनवाज़ सिद्दीकी जी
ReplyDeleteकैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
शिद्दत के साथ इश्क ना कर इस हयात से
ReplyDeleteपल भर में बेवफा यह हो जाती है ज़िन्दगी
बहुत अच्छी लगी गज़ल...
सुन्दर है ग़ज़ल ,शिद्दत के साथ न सही , मगर जिन्दगी को इश्क किये बिना चलोगे कैसे ?
ReplyDeleteशिद्दत के साथ इश्क ना कर इस हयात से
ReplyDeleteपल भर में बेवफा यह हो जाती है ज़िन्दगी
....बड़े दार्शनिक लहजे में जीवन का सच कह दिया...शानदार.
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'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
उम्दा प्रस्तुती ...शानदार भावनात्मक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ...बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजिन्दगी का रोज़ सताने का अन्दाज़ भाने लगा हमको।
ReplyDeleteदुनिया एक ऐसा घर है जिसके लिए फ़ना तय शुदा अम्र है. और इसमें बसने वालों के लिए यहाँ से बहरसूरत निकलना है. ---- हज़रत अली (अ.स.)
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल
ReplyDeleteमुबारक !
khubsurat gazal...
ReplyDeleteकमाल का गजल है...एक एक सेर फलसफा बयान करता है!!
ReplyDeleteउम्दा गजल
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल । आपने ज़िदगी की सही तस्वीर पेश की
ReplyDeleteहक़ीक़त बयान की है.
ReplyDeletehttp://haqnama.blogspot.com/2010/08/success-of-life-sharif-khan.html
उम्दा ग़ज़ल,
ReplyDeleteकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
हमारी प्रोग्रामिंग कुछ ऐसी की जाती है कि जीवन का मूल तत्व बचपन बीतते ही निकल जाता है। फिर जो कूड़ा हमारे दिमाग में इकट्ठा होता रहता है,उससे गटर जैसी जिंदगी ही जी सकता है आदमी।
ReplyDeleteअँडा खाओ देश बचाओ मेरी नई पोस्ट देखें
ReplyDeleteउम्दा रचना...
ReplyDeleteशिद्दत के साथ इश्क ना कर --------जिंदगी |बहे सुंदर लीखा है |बधाई |मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है |आभार
ReplyDeleteआशा
मायूसियों से अकसर भर जाती है ज़िन्दगी
ReplyDeleteकभी मौत का डर, कभी डराती है ज़िन्दगी
fir kyon piyein na ham usay ji jan se bhala!!!
dum bhar ke gum ko hamein pilati hai Zindagi