जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
लहू के जो क़तरे बचे थे बदन में
वोह जोशे-जिगर से रवां हो रहे थे
कहाँ मिल पाएं है आशिक़ जहाँ में
यह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे
नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
हम गुज़रा हुआ फ़लसफ़ा हो रहे थे
जो मशहूर थे 'बेवफा' इस जहां में
वही आज फिर बेवफा हो रहे थे
- शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'
Keywords: Gazal, Ghazal, ग़ज़ल
हमारी आस्था और उसके विरुद्ध लोगों की राय पर हमारा व्यवहार
-
अक्सर लोग अपनी आस्था के खिलाफ किसी विचार को सुनकर मारने-मरने पर उतर जाते
हैं, उम्मीद करते हैं कि सामने वाला भी उतनी ही इज्जत देगा, जितनी कि हमारे
दिल में...
खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
ReplyDeleteआंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे ।
सुन्दर शब्द रचना ।
नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
ReplyDeleteहम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे
Behtreen Post
nice post
ReplyDeletebahut khubsurat gazal likhi hai apne
ReplyDeleteजब हम उनसे जुदा हो रहे थे
सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
ReplyDeleteआंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
mein apne anshun bhi apne nahi rahna... bahut khoob....
....dard dil ke gahre ahsas...
बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी ...........शाहनवाज़ भाई....
ReplyDeleteNice words.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteलफ्ज़ों का अदाएगी बहुत अच्छा है.. थोड़ा सा बहर में लाने का कोसिस कीजिए... अनोखा सम्वेदना देखाई दे रहा है... बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteजब हम उनसे जुदा हो रहे थे
सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
कितनी भी वफ़ा कर लो, कहलाओगे तो बेवफा ही........
ReplyDeleteसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteकहाँ मिल पाएं है आशिक जहाँ में
ReplyDeleteयह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे
नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
हम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे
बहुत ही बेहतरीन गज़ल
वेवफा को वेवफा होते देख आँसू मत बहाईये,
ReplyDeleteआदतों में शुमार था आप से भी खेलना,
शाम तक रंग दिख गये, अब लौट आईये।
नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
ReplyDeleteहम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे
वाह वाह क्या बात है
वाह वाह,
ReplyDeleteउम्दा गजल के लिए
आभार
बहुत उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteखुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
ReplyDeleteआंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
लहू के जो कतरे बचे थे बदन में
वोह जोशे-जिगर से रवां हो रहे थे
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
ReplyDeleteसच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
क्या बात है!! बहुत खूब!!
माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
ReplyDeleteहम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे
अच्छी भावाभिव्यक्ति, उम्दा शे’रों के माध्यम से।
जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
ReplyDeleteसच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
nice !!!
कहाँ मिल पाएं है आशिक जहाँ में
ReplyDeleteयह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे
बेहतरीन भाव !
बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDelete*** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।
कमाल की प्रतिभा है आपकी ...यहाँ भी पूरे नंबर ले गए हो, आप हर क्षेत्र में अपने निशाँ छोड़ने में समर्थ हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteखूबसूरत गजल....उम्दा प्रस्तुति !!
ReplyDeleteजब हम उनसे जुदा हो रहे थे
ReplyDeleteसच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
kya gazal hai shahnavaz sahab!!! gazal par mar mitne ko dil karta hai wah!!!! bahetarin rachana
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