ग़ज़ल: जब हम उनसे जुदा हो रहे थे

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  • Shah Nawaz
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  • जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
    सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे

    खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
    आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे

    लहू के जो क़तरे बचे थे बदन में
    वोह जोशे-जिगर से रवां हो रहे थे

    कहाँ मिल पाएं है आशिक़ जहाँ में
    यह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे

    नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
    हम गुज़रा हुआ फ़लसफ़ा हो रहे थे

    जो मशहूर थे 'बेवफा' इस जहां में
    वही आज फिर बेवफा हो रहे थे


    - शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'





    Keywords: Gazal, Ghazal, ग़ज़ल

    28 comments:

    1. खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
      आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे ।

      सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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    2. नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
      हम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे

      Behtreen Post

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    3. bahut khubsurat gazal likhi hai apne

      जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
      सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे

      खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
      आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे

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    4. खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
      आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे
      mein apne anshun bhi apne nahi rahna... bahut khoob....
      ....dard dil ke gahre ahsas...

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    5. बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी ...........शाहनवाज़ भाई....

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    6. बहुत ही शानदार गज़ल्।

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    7. लफ्ज़ों का अदाएगी बहुत अच्छा है.. थोड़ा सा बहर में लाने का कोसिस कीजिए... अनोखा सम्वेदना देखाई दे रहा है... बहुत सुंदर!!

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    8. बहुत सुन्दर ...

      जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
      सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे

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    9. कितनी भी वफ़ा कर लो, कहलाओगे तो बेवफा ही........

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    10. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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    11. कहाँ मिल पाएं है आशिक जहाँ में
      यह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे
      नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
      हम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे



      बहुत ही बेहतरीन गज़ल

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    12. वेवफा को वेवफा होते देख आँसू मत बहाईये,
      आदतों में शुमार था आप से भी खेलना,
      शाम तक रंग दिख गये, अब लौट आईये।

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    13. नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
      हम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे

      वाह वाह क्या बात है

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    14. वाह वाह,
      उम्दा गजल के लिए
      आभार

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    15. बहुत उम्दा ग़ज़ल

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    16. खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
      आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे

      लहू के जो कतरे बचे थे बदन में
      वोह जोशे-जिगर से रवां हो रहे थे


      बहुत खूबसूरत गज़ल ...

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    17. जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
      सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे



      क्या बात है!! बहुत खूब!!

      माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
      http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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    18. नई वोह कहानी शुरू कर रहे थे
      हम गुज़रा हुआ फलसफा हो रहे थे
      अच्छी भावाभिव्यक्ति, उम्दा शे’रों के माध्यम से।

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    19. जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
      सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे

      खुशियों की बातें तो क्या कीजियेगा
      आंसू भी हमसे जुदा हो रहे थे

      nice !!!

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    20. कहाँ मिल पाएं है आशिक जहाँ में
      यह जुमले ज़बानी बयां हो रहे थे

      बेहतरीन भाव !

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    21. बेहतरीन ग़ज़ल।

      *** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।

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    22. कमाल की प्रतिभा है आपकी ...यहाँ भी पूरे नंबर ले गए हो, आप हर क्षेत्र में अपने निशाँ छोड़ने में समर्थ हैं ! हार्दिक शुभकामनायें !

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    23. खूबसूरत गजल....उम्दा प्रस्तुति !!

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    24. जब हम उनसे जुदा हो रहे थे
      सच पूछो तो फ़ना हो रहे थे
      kya gazal hai shahnavaz sahab!!! gazal par mar mitne ko dil karta hai wah!!!! bahetarin rachana

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