इक रोज़ जब मैंने उसे हँसते हुए देखा

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  • Shah Nawaz
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  • इक रोज़ जब मैंने उसे हँसते हुए देखा,
    चेहरे पे कई बिजली चमकते हुए देखा।

    महसूस हो रहा था क़यामत है आ गई,
    रुखसार से घूँघट जो सरकते हुए देखा।

    अनजानी सी ख़ुशी से होंट काँप रहे थे,
    आंसू का एक कतरा छलकते हुए देखा।

    उसका करीब आना यूँ महसूस हो गया,
    हाथों में चूड़ियाँ जो खनकते हुए देखा।

    उसने यूँ रख दिया मेरे हाथो पे अपना हाथ
    अंगार जैसे कोई दहकते हुए देखा।


    - शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'





    Keywords:
    Ghazal, Smyle, अंगार, ख़ुशी, चूड़ियाँ, बिजली, महसूस, हँसते हुए

    18 comments:

    1. कॉलेज टाइम में लिखी यह ग़ज़ल मेरी पसंदीदा गजलों में शुमार है. मैं अक्सर इसे गुनगुनाता हूँ. आज इसे आप सभी के साथ साझा करने का मन हुआ, इसलिए पेश-ए-खिदमत है. उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी.

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    2. भाई क्‍या यह चित्र भी तब ही का संभाल रखा था?

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    3. कहीं बिजली गिर न जाये.

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    4. इस गजल के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया जी
      सुन्दर रचना है और तस्वीर भी

      प्रणाम

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    5. उसने यूँ रख दिया मेरे हाथो पे अपना हाथ
      अंगार जैसे कोई दहकते हुए देखा।
      सुन्दर रचना है

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    6. shah ji aap ne konse collage se graduation ki hai
      waise aap ki gazal bahut pasand aai thanks

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    7. अनजानी सी ख़ुशी से होंट काँप रहे थे,
      आंसू का एक कतरा छलकते हुए देखा।

      बेहतरीन ग़ज़ल कही है साहिल साहब...वाह...दाद कबूल फरमाएं...
      नीरज

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    8. गज़ब की बेहतरीन गज़ल्।

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    9. सुबहानअल्लाह,
      भाई दिन बा दिन निखार आ रहा है...
      अच्छा ख़याल है.

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    10. शाहनवाज़ भाई रोमानी आज भी हो रहे हैं...कम बख्त चीज़ ही ऐसी है.

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    11. Zabardast Gazal! Aapse pehle bhi suni hai.....

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    12. पूर्णता पायी कल्पना है ।

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    13. वाह शाह साहब वाह

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    14. ग़ज़ल तो ठीक है, लेकिन ये तस्वीर किसकी है?

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    15. भाई शाहनवाज़ सिद्दीकी 'साहिल'जी
      नमस्कार !

      आपको शायद हैरत होगी … मुझे आपकी इस पोस्ट पर पा'कर … है न ? आता तो मैं रहता हूं आपके यहां …
      पुराने चावल और पुरानी शराब की तरह पुरानी पोस्ट्स में छुपे ख़ज़ाने में लालो-जवाहिर ढूंढता रहता हूं कई बार …
      माशाअल्लाह ! शाहनवाज़ भाई गज़ब ढा रही है आपकी यह ग़ज़ल …
      उसने यूं रख दिया मेरे हाथो पे अपना हाथ
      अंगार जैसे कोई दहकते हुए देखा

      इस रूमानियत पे कुर्बान !
      … और रचना अच्छी न हो तो मैं कुछ क्यों कहता ? ख़ुदाकसम …
      दिल से निकली दाद क़ुबूल फ़रमाएं …
      - राजेन्द्र स्वर्णकार

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    16. राजेंद्र भाई,

      आपका हौसला अफजाई का बहुत-बहुत शुक्रिया. आप इसी तरह हौसला बढ़ाते रहें, यही अभिलाषा है.

      एक बार फिर से बहुत-बहुत धन्यवाद!

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    17. kafi achi lagi aapki gajal bahut khubsurat hai

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    18. वाह .... मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ

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