व्यंग्य: "दिल का बिल"

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  • Shah Nawaz
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  • इश्क के फंडे का सबसे अधिक फायदा उठाया है मोबाईल फोन कंपनियों ने। इधर इश्क के परवाने मोबाईल के ज़रिए रात दिन प्यार की पींगे बढ़ाते हैं और उधर इनका मीटर दौड़ता रहता है। आखिर दिल में बिल की परवाह कौन करता है? रोज़ ही प्रेम के परवानों को फांसने के लिए नए-नए फोन और लुभावने प्लान बाज़ार में उपलब्ध होते हैं। बेचारे प्रेमी! बज़ार में प्लान भी प्रेमिका के स्वभाव के अनुसार ही आते हैं। जैसे कि नींद कम आती है तो रात्रि में फ्री टॉकटाइम प्लान, पढ़ने का शौक है तो फ्री एसएमएस प्लान। नया फोन बाज़ार में आते ही धड़कन और भी तेज़ी से ब़ढ़ जाती हैं, कहीं इस फोन की डिमांड ना आ जाए! इसलिए फोन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए जी-तोड़ कोशिश शुरू। दुकानदार बताना शुरू करता है "जी इसमें यह फीचर.....!" "अरररर! यह क्या बता रहे हो? सीधे-सीधे बताओ कि है कितने का?" प्रेमिका से अगर शिकायत कर दी कि "फोन क्यों नहीं किया?" बस प्रेमिका शुरू "फोन में बेलेंस होता तो करती ना।" इतना सुनने पर भी अगर प्रेमी बेलेंस ना डलवाए तो फिर प्रेमी ही कैसा? दौड़ पड़ते हैं रिचार्ज कूपन खरीदने। यह तो बाद में पता चलता है कि कॉलेज की फीस को प्रेमिका के नए मोबाईल में और जेबखर्च को रिचार्ज कराने में बंटाधार करा चुके है।

    जब फोन पर बातचीत करने का सिलसिला शुरू होता है, तो प्रेमी की धढ़कन बिल पर टिकी होती है। इधर प्रेमिका चाहती है कि खूब देर तक बातें होती रहें, उधर प्रेमी फोन काटने का बहाना ढ़ूंढ़ते रहते हैं। वैसे बहाना चलता नहीं है! प्रेमिका कहती है "सुनो, कल लंच पर मिलते हैं", इधर प्रेमी "लेक्चर अटेंड करना है।" प्रेमिका "अरे यार! यह लेक्चर तो मैं तुम्हे लंच पर ही समझा दुंगी।" अब बेचारा लेक्चर के कारण लंच पर आने से मना करता तो उसकी समझ में बात आती भी। कुछ कह दिया तो समझो कयामत आ गई, "फोन तो मैंने किया है और बिल की परवाह तुम कर रहे हो?" अब प्रेमिका को समझाए कौन कि बिल तो उसने ही देना है। खिसियाते हुए बोलता है "यार! बिल तुम्हारा हो या मेरा बात तो एक ही है" इस पर प्रेमिका खुश! हालांकि बात प्रेमी की एकदम सही है, क्योंकि खर्च चाहे प्रेमिका करे बिल तो प्रेमी के ही पल्ले पड़ना है। मतलब छुरी खरबू़ज़े पर गिरे या खरबूज़ा छुरी पर, कटता तो खरबूज़ा ही है।

    वैसे प्रेमिका की बातें भी अजीब ही होती हैं, लंच पर चलने का इसरार करते हुए कहती हैं कि "चलो आईसक्रीम मैं खिला दूंगी।" उसे पता है कि आप उसको बिल तो देने नहीं देंगे, चाहे अन्दर से कितना ही चाहें। इसलिए बोल दो, बोलने में क्या जाता है। बाद में तुर्रा यह कि आईसक्रीम तो उसकी तरफ से थी, पैसे आपने क्यों दिए? बेचारा मन ही मन खीजने के सिवा और कर भी क्या सकता है। एक अदद प्रेमिका रखना इतना आसान थोड़े ही है।

    दिल का बिल तो नहीं आता है लेकिन बिल के लिए दिल अवश्य ही चाहिए।


    (हरिभूमि के आज [19 जुलाई) के संस्करण में प्रष्ट न. 4 पर मेरा व्यंग्य)


    -शाहनवाज़ सिद्दीकी

    24 comments:

    1. अब प्रेमी बेचारा क्या करे !
      (हरिभूमि) के लिए बधाई

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    2. दिल का बिल तो नहीं आता है लेकिन बिल के लिए दिल अवश्य ही चाहिए।
      HA HA HA HA
      SAHI BAAT....

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    3. अच्छा व्यंग्य ,हरिभूमि के लिए मेरी ओर से भी बधाई |

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    4. mere to ye hee samajh nahi aata ki kya baat karein par premika ko pata nahi sab topics kaise pata hote hain... sab se jyada gussa tab aata hai jab wo kahe ki aur batao... tab premi kahta hai ki kya bataoun... fir premika ka jawab lagta hai tum baat nahi karna chahte and all this imotional atyachar.. tab bahut gussa aata hai kya bolun ise..... batao bhai ki kya karein...

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    5. व्यंगात्मक भाषा साधन है बात को गहराई तक पहुँचाने का.

      इधर भी गौर फरमाएं-
      हुज़ूर मेरा बेटा पढ़ने में कमज़ोर होने के कारण हाई स्कूल में फ़ेल हो गया है। यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मेरे बेटे को कलक्टर बना दीजिए। और इस प्रकार से उस बावर्ची का हाई स्कूल फ़ेल पुत्र कलक्टर बना दिया गया। ऐसे विशिष्ट पद उपरोक्त पाविारिक पृष्ठभूमि व शैक्षिक योग्यता वाले व्यक्ति के को सौंपा जाना एक अजूबा था और अजूबा ही साबित भी हुआ क्योंकि उसने अपने स्तर के अनुसार ऐसे अनाप शनाप काम किये कि जल्दी ही उसके ख़िलाफ़ शिकायतों की एक पूरी फ़ाइल तैयार हो गई परन्तु उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में कोई भी सक्षम नहीं था। अन्त में उसके ख़िलाफ़ तैयार की गई फ़ाइल को लार्ड कर्ज़न के अवलोकनार्थ इस टिप्पणी के साथ इंग्लैण्ड भेजा गया कि कृपया अपने इस गधे के कारनामों पर विचार करके निर्देश देने का कष्ट करें।
      जवाब में लार्ड कर्ज़न ने लिखा कि भारत में बहुत सारे गधे पल रहे हैं उनके साथ यदि मेरा भी एक गधा परवरिश पाता रहेगा तो देश का बहुत ज़्यादा अहित न होगा।

      http://haqnama.blogspot.com/2010/07/by-sharif-khan.html

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    6. प्रेमप्रवर्धक प्रकोष्ठ खोलना चाहिये मोबाइल कम्पनियों को।

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    7. छुरी खरबू़ज़े पर गिरे या खरबूज़ा छुरी पर, कटता तो खरबूज़ा ही है।

      nice...

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    8. अब प्रेमी बेचारा क्या करे !
      (हरिभूमि) के लिए बधाई

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    9. क्या बात हैं
      पहले हर बात को समझना फिर कहना और फिर समझाना क्या खूब है जनाब भाई जान ................

      दिल का बिल तो नहीं आता है लेकिन बिल के लिए दिल अवश्य ही चाहिए।

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    10. हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -


      "हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.

      पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......

      अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं




      हमारीवाणी.कॉम

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    11. मैं तो फोन पर टहला टहला कर तंग आ गया हूँ.... नाईट चैट पैक डलवा रखा है... एक रुपये में आधे घंटे बात करिए.... तो पांच रुपये में काम चल जाता है... रियल में टहलाउंगा तो दिक्कत हो जाएगी... इसीलिए फोन बेस्ट है... हाँ! कभी किसी के इसमें बैलेंस नहीं डलवाया...

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    12. मोबाइलीय व्‍यंग्‍य।

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    13. shaaaaaaandaaaaaaaaaaaaaar

      waah !

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    14. बिल के लिए दिल अवश्य ही चाहिए।

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    15. Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

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