मौसम तो मानसून का है लेकिन आजकल राजनैतिक मानसून की बहार है। भय्या चाहे बारिश की बौछारें लोगों पर पड़े ना पड़े लेकिन नेता छाप भाषणों की बौछारें सारे देश को भिगो रहीं है।
मुद्दा चाहे कितना ही गम्भीर हों, लेकिन नेता जी उसमें भी अपना उल्लू सीधा करने का मौका ढूंढ ही निकालते हैं। मज़े की बात तो यह है कि जब विपक्षी नेता सरकार बनाते है तो अपने द्वारा किए गए विरोध को भूलकर खुद भी उन्ही कार्यो में मस्त हो जाते है। गोया विरोध का नाता केवल विपक्ष की कुर्सी से ही है। वैसे यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अगर हल निकल गया तो नया मुद्दा कहां से मिलेगा? पक्ष हो या प्रतिपक्ष, सबका लक्ष्य जनता को उल्लू बनाना ही तो हैं। वैसे हमें उल्लू बनना भी चाहिए, क्योंकि अगर जनता उल्लू ही नहीं बनेगी तो फिर देश के कर्णधारों के रोज़गार का क्या होगा? जनता चुनाव में एक-दूसरे को लाठी-डंडा तो मार सकती है, लेकिन किसी के रोज़गार पर लात कैसे मार सकती है?
सबसे बड़ी बात तो यह कि भारत की जनता तमाशबीन है तो दिल लगाने के लिए कुछ ना कुछ तमाशा भी तो चाहिए। आप स्वच्छता अभियान चलाईये, अकेले ही झाड़ू हाथ में लिए नज़र आएंगे। उधर सड़क छाप नेताओं का साथ देने के लिए भी हज़ारों की तादाद में भी़ड़ इकट्ठी हो जाएगी।
हम बात कर रहे थे भाषण की, नेताओं को सबसे अधिक शौक इसका ही होता है। चाहे मुद्दा कोई भी हो, एक अदद भाषण अवश्य होना चाहिए। किसी अच्छे से अच्छे काम का भी अगर दूसरे पक्ष ने समर्थन कर दिया तो बस फिर क्या, हो गई कमियां निकलनी शुरू। आजकल हाईटेक ज़माना है, किसी मुद्दे पर विरोध की लाईन ना मिले तो मार्किटिंग कम्पनियां हैं ना? यह किसी भी मुद्दे की कमियां निकालने और नए मुद्दे तलाशने से लेकर इस बात तक का ध्यान रख सकती हैं कि नेता जी कैसे दिखें तथा क्या बोलें। यहां तक कि किससे मिलें, मतलब जिससे नहीं मिलना है उससे छुपकर मिलें। गिरगिट की क्या औकात इनके सामने। वैसे नेतागिरी के फायदे भी हैं, अगर किसी ने पढ़ाई नहीं कि तो उसे यहां आराम से रोज़गार मिल सकता है। चैकिदारी करने के लिए पढ़ाई की आवश्यकता पढती है, देश चलाने के लिए थोड़े ही।
चलते-चलते एक सीन याद आ गया, क्षेत्र में बाढ़ आने से एक नेता जी बहुत खुश होते हैं और सेकेट्री से दो तरह के वक्तव्य तैयार करके करने के लिए कहते हैं। "अगर मुख्यमंत्री क्षेत्र का मुआयना करने हैलिकाप्टर से पहुंचे तो हम वक्तव्य देंगे कि देखो भय्या! यहां जनता परेशान है और मुख्यमंत्री जी लोगों का हाल-चाल जानने की जगह हैलिकाप्टर से ही देखकर चले गए। और अगर वह सड़क मार्ग से जनता के बीच गए तो हमारा वक्तव्य होगा कि अगर मुख्यमंत्री जी हैलिकाप्टर से क्षेत्र का मुआयना करते तो कम से जनता को ऊपर से अन्न तो पहुंचा सकते थे। अब ऐसे में सिवा वादों के और क्या देंगे?"
-शाहनवाज़ सिद्दीकी
मुद्दा चाहे कितना ही गम्भीर हों, लेकिन नेता जी उसमें भी अपना उल्लू सीधा करने का मौका ढूंढ ही निकालते हैं। मज़े की बात तो यह है कि जब विपक्षी नेता सरकार बनाते है तो अपने द्वारा किए गए विरोध को भूलकर खुद भी उन्ही कार्यो में मस्त हो जाते है। गोया विरोध का नाता केवल विपक्ष की कुर्सी से ही है। वैसे यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अगर हल निकल गया तो नया मुद्दा कहां से मिलेगा? पक्ष हो या प्रतिपक्ष, सबका लक्ष्य जनता को उल्लू बनाना ही तो हैं। वैसे हमें उल्लू बनना भी चाहिए, क्योंकि अगर जनता उल्लू ही नहीं बनेगी तो फिर देश के कर्णधारों के रोज़गार का क्या होगा? जनता चुनाव में एक-दूसरे को लाठी-डंडा तो मार सकती है, लेकिन किसी के रोज़गार पर लात कैसे मार सकती है?
सबसे बड़ी बात तो यह कि भारत की जनता तमाशबीन है तो दिल लगाने के लिए कुछ ना कुछ तमाशा भी तो चाहिए। आप स्वच्छता अभियान चलाईये, अकेले ही झाड़ू हाथ में लिए नज़र आएंगे। उधर सड़क छाप नेताओं का साथ देने के लिए भी हज़ारों की तादाद में भी़ड़ इकट्ठी हो जाएगी।
हम बात कर रहे थे भाषण की, नेताओं को सबसे अधिक शौक इसका ही होता है। चाहे मुद्दा कोई भी हो, एक अदद भाषण अवश्य होना चाहिए। किसी अच्छे से अच्छे काम का भी अगर दूसरे पक्ष ने समर्थन कर दिया तो बस फिर क्या, हो गई कमियां निकलनी शुरू। आजकल हाईटेक ज़माना है, किसी मुद्दे पर विरोध की लाईन ना मिले तो मार्किटिंग कम्पनियां हैं ना? यह किसी भी मुद्दे की कमियां निकालने और नए मुद्दे तलाशने से लेकर इस बात तक का ध्यान रख सकती हैं कि नेता जी कैसे दिखें तथा क्या बोलें। यहां तक कि किससे मिलें, मतलब जिससे नहीं मिलना है उससे छुपकर मिलें। गिरगिट की क्या औकात इनके सामने। वैसे नेतागिरी के फायदे भी हैं, अगर किसी ने पढ़ाई नहीं कि तो उसे यहां आराम से रोज़गार मिल सकता है। चैकिदारी करने के लिए पढ़ाई की आवश्यकता पढती है, देश चलाने के लिए थोड़े ही।
चलते-चलते एक सीन याद आ गया, क्षेत्र में बाढ़ आने से एक नेता जी बहुत खुश होते हैं और सेकेट्री से दो तरह के वक्तव्य तैयार करके करने के लिए कहते हैं। "अगर मुख्यमंत्री क्षेत्र का मुआयना करने हैलिकाप्टर से पहुंचे तो हम वक्तव्य देंगे कि देखो भय्या! यहां जनता परेशान है और मुख्यमंत्री जी लोगों का हाल-चाल जानने की जगह हैलिकाप्टर से ही देखकर चले गए। और अगर वह सड़क मार्ग से जनता के बीच गए तो हमारा वक्तव्य होगा कि अगर मुख्यमंत्री जी हैलिकाप्टर से क्षेत्र का मुआयना करते तो कम से जनता को ऊपर से अन्न तो पहुंचा सकते थे। अब ऐसे में सिवा वादों के और क्या देंगे?"
(हरिभूमि के आज के संस्करण में मेरा व्यंग्य)
-शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
Critics, Haribhumi, व्यंग, व्यंग्य, हरिभूमि
राजनैतिक मानसून से
ReplyDeleteनेता कैसे बाहर किए जाएं
कि पब्लिक की बहार आए।
बहुत अच्छा
ReplyDeleteदेश की राजीनीतिक मानसून से पैदा हुए और कीचड़ रूपी दलदल में पलते हुए राजनितिक कीडो (इसे नेता पढ़ा जाए) का सटीक चित्रण.
ReplyDeletenice व्यंग्य
ReplyDeleteनेता लोग चूंकि अपनी हकीक़त से वाकिफ़ हैं इसलिए कुछ भी कह लें कोई असर नहीं होता. बहरहाल एक अच्छा व्यंग है.
ReplyDeleteदेखें
अल्लाह सुबहाना व तआला पवित्र क़ुरआन के चैथे अध्याय की 135वीं आयत में फ़रमाता है, अनुवाद,‘‘ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, इन्साफ़ का झण्डा उठाओ और ख़ुदा वास्ते के गवाह बनो चाहे तुम्हारे इन्साफ़ और तुम्हारी गवाही की चपेट में तुम स्वयं या तुम्हारे मां बाप और रिश्तेदार ही क्यों न आते हों। प्रभावित व्यक्ति (जिसके ख़िलाफ़ तुम्हें गवाही देनी पड़े) चाहे मालदार हो या ग़रीब, अल्लाह तुमसे ज़्यादा उनका भला चाहने वाला है। अतः तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में इन्साफ़ से न हटो। और अगर तुमने लगी लिपटी बात कही या सच्चाई से हटे तो जान रखो कि, जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर है।‘‘
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/blog-post_04.html
Wah Ji Wah! aaj isi mansoon ki vajah se chhutti hai....
ReplyDeleteसही वक़्त पर सही बात कहना तो कोई आप से सीखे !
ReplyDeleteसाजिद से सहमत...
ReplyDeleteआपकी बात कुछ अलग है !
मौसम का तक़ाज़ा है..क्या बात है जनाब!!! व्यंग्य सिर्फ गुदगुदा ता नहीं रुलाता भी है.
ReplyDeleteहमज़बान की नयी पोस्ट पढ़ें.
ha ha ha.... :) mazedaar likha hai shahji. Politics par ek dam sahi kataksh.
ReplyDeleteभाईजान क्या बात है.... बात तो कहना कोई आपसे सीखे! हर अल्फाज़ बखूबी अपना अर्थ वह खुद ही बयान कर देता हैं !
ReplyDeleteआप अपनी बात बहुत ही आसन शब्दों में करते है आपका लेख बहुत ही अच्छा है!
अबे कमेन्ट के राजा तू यहाँ भी आ गया रे !
ReplyDeleteशाह जी बहुत अच्छा लिखा आप ने
Sajid Se Sehmat
ReplyDeleteमैंने तो सुबह ही इसे पढ़ लिया था. बधाई देनी बाकी थी.
ReplyDeleteबधाई.
नेताओं के लिए तो हर मौसम ही मुफ़ीद है लेकिन करेंगे वहीं ढाक के तीन पात, इनके यहां तो न सावन सूखे न भादों हरे.
ReplyDeleteबाहर मानसून का मौसम है
ReplyDeleteबाहर मानसून का मौसम है,
लेकिन हरिभूमि पर
हमारा राजनैतिक मानसून
बरस रहा है।
आज का दिन वैसे भी खास है,
बंद का दिन है और हर नेता
इसी मानसून के लिए
तरस रहा है।
मानसून का मूंड है इसलिए
इसकी बरसात हमने
अपने ब्लॉग
प्रेम रस
पर भी कर दी है।
राजनैतिक गर्मी का
मज़ा लेना,
इसे पढ़ कर
यह मत कहना
कि आज सर्दी है!
Kavita ke sath Vyang bhi acha hai. Achha likhte hai aap!
ReplyDeleteमजेदार व्यंग्य, मैंने आपकी कविता को भी पढ़ा है, यह हरिभूमि अखबार कहां मिलता है, मुझे हिंदी पसंद है, लेकिन यह अख़बार का नाम नहीं सुना.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य। गाते रहिये कुर्सी की आरती "ॐ जय कुर्सी माता भैइ ॐ जय कुर्सी माता। नेता सब तोर पांव पखारे, भटके मत दाता॥ ॐ जय कुर्सी माता। आज विपक्ष मे हैं तो ये राग अलापा जाता है। सत्ता मे आ गये तो आज जो सत्ता मे हैं वे भी इसी कार्य को दुहरायेंगे। सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे।
ReplyDeleteजवाब नही है आपकी सोच का
ReplyDeleteबहुत ख़ूब,
नेता नाम का प्राणी तो चिकना घड़ा है, आप बात को मज़ाक़ में कहिए या संजीदा होकर कहिए इस पर असर नही होने वाला...
एक दिन का मानसून था और एक दिन का बंद
ReplyDeleteन ही गई मंहगाई और न ही गई गर्मी.
नेता और बादल दोनों आपस मैं हैं भाई- भाई
बहुत सही है भई, आप ऐसे ही लिख्ते रहिये......
ReplyDeleteye neta naam ka jo pret hai wo dino din bhayaawaha bantaa jaa rahaaa hai.........roknaa jaroori hai
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग ।
ReplyDeleteनेताओं के बारे में जनता यह सब जानती है, लेकिन कर कुछ नहीं पाती.
ReplyDeletehehehe....
ReplyDeletewah bhai mazaa aa gaya padh kar... :)
अच्छा व्यंग ,बधाई ,इन नेताओं खासकर शरद पवार जैसे भ्रष्ट व बेशर्मों को तो गाली देकर गाली की भी बेइज्जती ही होगी ...
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