अपने ब्लॉग 'प्रेम रस' पर मैंने रविवार, दिनांक 6 जून को हुए ब्लॉगर मिलन के बारे में बताया। इस लेख में मौलाना वहीदुद्दीन खान के व्याखान बारे में:
सब्र का मतलब होता है बर्दाश्त करना, कुछ लोग समझते हैं कि 'बर्दाश्त करना बुज़दिली है' लेकिन यह नासमझी की बात है, सब्र सबसे बड़ी ताकत है। कुरान में एक आयात है (अर्थ की व्याख्या) "खुदा सब्र वालो का साथ देता है, जो दुनिया में सहनशीलता के साथ रहते हैं"। यही बात हदीस (मुहम्मद स. के कथन) में इस तरह कही गई है कि "जान लो कि कामयाबी सहनशीलता के साथ है और मुश्किल के साथ आसानी है"। यह फिलोसफी कोई धार्मिक फिलोसफी नहीं है बल्कि यह कुदरत के नियम पर आधारित है. दुनिया में बड़ी कामयाबी केवल उनको ही मिली है, जिन्होंने सब्र का साथ दिया है।
न्यूटन आधुनिक विज्ञान का ज्ञाता कहा जाता है। उसकी मृत्यु 1727 में हुई थी, जब वह छोटा था तो ईधर-उधर चुप-चाप खड़ा रहता था, बाद में मालूम हुआ की उसके पास एकाग्रता की बहुत बड़ी ताकत थी। एकाग्रता अर्थात किसी एक बिंदु पर पहुँच कर विचार करना, यह सब्र के बिना नहीं हो सकता है। अगर आप 101 चीज़ों से सब्र करते हैं, तभी एकाग्र रह सकते हैं। न्यूटन ने बताया कि उसके अन्दर विश्व से अलग कोई ख़ास चीज़ नहीं है, एक ही बात है कि बहुत ही सहनशीलता के साथ किसी बात पर विचार करना। एक महिला ने बातचीत में कहा कि उसका बच्चा बहुत रोता है, अगर वह महिला बच्चे के रोने में सब्र करे तो बच्चे को बहुत बड़ा फायदा हो सकता है। छोटा बच्चा व्यायाम तो कर नहीं सकता, लेकिन उसके रोने से, हाथ-पैर मारने से उसके शरीर की कसरत होती है।
सहनशीलता सारी कामयाबियों की कुंजी है, जब कोई व्यक्ति सहनशीलता धारण करता है तो सारी प्राकृतिक शक्तियां उसकी सहायता करना शुरू कर देती है। अगर किसी व्यक्ति को चोट लग जाती है तो अगर आप सब्र करें, उसे ज़बरदस्ती दबाएँ नहीं तो सारा शरीर उसे ठीक करने में लग जाता है। कुदरत उसको ठीक करने के लिए आ जाती है। जब भी किसी का कोई काम बिगड़े तो वह भड़क ना उठे, बेसब्री ना दिखाए तो कुदरत उसकी सहायता करती है। यह बात हर जगह लागु होती है, जैसे कि अगर घर में पत्नी से झगडा हो जाए तो यह नहीं कि उसे तलाक दे दें, बल्कि चुपचाप सो जाएँ। केवल पत्नी ही नहीं बल्कि किसी से भी झगडे की अवस्था में सहनशीलता अपनाते हुए रात को सो जाना सबसे बेहतर उपाय है. सुबह उठेंगे तो दोनों पक्ष सामान्य होंगे। यह कुदरत का नियम है, जब किसी के मस्तिष्क में कोई नकारात्मक सोच आती है तो कुदरत रात्रि में सोच को सकारात्मक बनाना शुरू कर देती है, और यह काम नींद में होता है। यह साइकोलोजी से भी मालूम होता है, कि मस्तिष्क सोने पर भी सक्रीय रहता है, वह नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल देता है।
पकिस्तान के कश्मीर के मस`अले पर हमारे मुल्क से इख्तेलाफ थे, लेकिन उसने सहनशीलता से काम नहीं लिया और बेसब्री और गुस्से में अँधा होकर युद्ध की घोषणा कर दी, चार-चार युद्धों में बुरी तरह मात खाने की बाद भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. हालाँकि अगर सब्र से काम लेता और ठन्डे दिमाग से सोचता तो होना यह चाहिए था कि इख्तेलाफ को मेज़ पर बातचीत पर हल करने के लिए कोशिश करते तथा हमारे साथ सांस्कृतिक तथा व्यापारिक रिश्ते बनाते. इससे दोनों देशों को कितना फायदा होता? दोनों देशों में कितनी समृद्धि आती? उनकी बेवकूफी का आलम यह है कि आज उनके बिलकुल बराबर में अर्थात हमारे पास कोयले के भण्डार है और वह आस्ट्रेलिया से कोयला आयात करते हैं. उनकी बेसब्री का फल यह निकला कि आज पाकिस्तान एक असफल देश करार दिया जाता है.
बाकी अगले लेख में...... - शाहनवाज़ सिद्दीकी
सब्र का मतलब होता है बर्दाश्त करना, कुछ लोग समझते हैं कि 'बर्दाश्त करना बुज़दिली है' लेकिन यह नासमझी की बात है, सब्र सबसे बड़ी ताकत है। कुरान में एक आयात है (अर्थ की व्याख्या) "खुदा सब्र वालो का साथ देता है, जो दुनिया में सहनशीलता के साथ रहते हैं"। यही बात हदीस (मुहम्मद स. के कथन) में इस तरह कही गई है कि "जान लो कि कामयाबी सहनशीलता के साथ है और मुश्किल के साथ आसानी है"। यह फिलोसफी कोई धार्मिक फिलोसफी नहीं है बल्कि यह कुदरत के नियम पर आधारित है. दुनिया में बड़ी कामयाबी केवल उनको ही मिली है, जिन्होंने सब्र का साथ दिया है।
न्यूटन आधुनिक विज्ञान का ज्ञाता कहा जाता है। उसकी मृत्यु 1727 में हुई थी, जब वह छोटा था तो ईधर-उधर चुप-चाप खड़ा रहता था, बाद में मालूम हुआ की उसके पास एकाग्रता की बहुत बड़ी ताकत थी। एकाग्रता अर्थात किसी एक बिंदु पर पहुँच कर विचार करना, यह सब्र के बिना नहीं हो सकता है। अगर आप 101 चीज़ों से सब्र करते हैं, तभी एकाग्र रह सकते हैं। न्यूटन ने बताया कि उसके अन्दर विश्व से अलग कोई ख़ास चीज़ नहीं है, एक ही बात है कि बहुत ही सहनशीलता के साथ किसी बात पर विचार करना। एक महिला ने बातचीत में कहा कि उसका बच्चा बहुत रोता है, अगर वह महिला बच्चे के रोने में सब्र करे तो बच्चे को बहुत बड़ा फायदा हो सकता है। छोटा बच्चा व्यायाम तो कर नहीं सकता, लेकिन उसके रोने से, हाथ-पैर मारने से उसके शरीर की कसरत होती है।
सहनशीलता सारी कामयाबियों की कुंजी है, जब कोई व्यक्ति सहनशीलता धारण करता है तो सारी प्राकृतिक शक्तियां उसकी सहायता करना शुरू कर देती है। अगर किसी व्यक्ति को चोट लग जाती है तो अगर आप सब्र करें, उसे ज़बरदस्ती दबाएँ नहीं तो सारा शरीर उसे ठीक करने में लग जाता है। कुदरत उसको ठीक करने के लिए आ जाती है। जब भी किसी का कोई काम बिगड़े तो वह भड़क ना उठे, बेसब्री ना दिखाए तो कुदरत उसकी सहायता करती है। यह बात हर जगह लागु होती है, जैसे कि अगर घर में पत्नी से झगडा हो जाए तो यह नहीं कि उसे तलाक दे दें, बल्कि चुपचाप सो जाएँ। केवल पत्नी ही नहीं बल्कि किसी से भी झगडे की अवस्था में सहनशीलता अपनाते हुए रात को सो जाना सबसे बेहतर उपाय है. सुबह उठेंगे तो दोनों पक्ष सामान्य होंगे। यह कुदरत का नियम है, जब किसी के मस्तिष्क में कोई नकारात्मक सोच आती है तो कुदरत रात्रि में सोच को सकारात्मक बनाना शुरू कर देती है, और यह काम नींद में होता है। यह साइकोलोजी से भी मालूम होता है, कि मस्तिष्क सोने पर भी सक्रीय रहता है, वह नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल देता है।
पकिस्तान के कश्मीर के मस`अले पर हमारे मुल्क से इख्तेलाफ थे, लेकिन उसने सहनशीलता से काम नहीं लिया और बेसब्री और गुस्से में अँधा होकर युद्ध की घोषणा कर दी, चार-चार युद्धों में बुरी तरह मात खाने की बाद भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. हालाँकि अगर सब्र से काम लेता और ठन्डे दिमाग से सोचता तो होना यह चाहिए था कि इख्तेलाफ को मेज़ पर बातचीत पर हल करने के लिए कोशिश करते तथा हमारे साथ सांस्कृतिक तथा व्यापारिक रिश्ते बनाते. इससे दोनों देशों को कितना फायदा होता? दोनों देशों में कितनी समृद्धि आती? उनकी बेवकूफी का आलम यह है कि आज उनके बिलकुल बराबर में अर्थात हमारे पास कोयले के भण्डार है और वह आस्ट्रेलिया से कोयला आयात करते हैं. उनकी बेसब्री का फल यह निकला कि आज पाकिस्तान एक असफल देश करार दिया जाता है.
बाकी अगले लेख में...... - शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
Maulana Vahiduddin Khan, Power of Patience, मौलाना वहीदुद्दीन खान, सहनशीलता
अरे वाह सब्र के बारे में इस तरह की मिसालें हमने कभी न सुनी थी, भाई तुम तीनों मिलके इस बात का अफसोस दिलाने में लगे हो कि मैं न जा सका तो कितनी अच्छी ज्ञान की विज्ञान की बातें न सुन सका
ReplyDeleteबहुत बढिया nice post
बहुत ही उम्दा पोस्ट
ReplyDeletenice bhai...keep it up.. :)
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteWednesday, June 9, 2010
ReplyDeletePakistan is a failed state पाकिस्तान नफ़रत में अंधा हो गया है। उसने 4 बार इन्डिया पर अटैक किया और चारों बार हारा। कश्मीर के मसले को भी मुसलमानों ने ही बिगाड़ा है।
बेशक मुश्किल के साथ आसानी है। -अलकुरआन
प्रॉब्लम और अपॉरचुनिटीज़ दोनों ‘ट्विन‘ हैं। दोनों साथ साथ होती हैं। अगर आप भड़क उठते हैं तो आप अंधे हो जाते हैं। पाकिस्तान नफ़रत में अंधा हो गया है। उसने 4 बार इन्डिया पर अटैक किया और चारों बार हारा। उसे चाहिये था कि समस्याओं को बातचीत के ज़रिये हल करता और अपॉरचुनिटीज़ को इस्तेमाल करता। पाकिस्तान के पास सुई गैस है वह उसे इन्डिया को बेचता और उसे कोयले की ज़रूरत है वह कोयला यहां से ख़रीदता। पाकिस्तान आस्ट्रेलिया से कोयला ख़रीदता है जोकि उसे कई गुना महंगा पड़ता है। पाकिस्तान ने अपॉरचुनिटीज़ को नहीं देखा। मैं इसे
‘डीलिंकिंग की पॉलिसी‘ कहता हूं।
कश्मीर के मसले को भी मुसलमानों ने ही बिगाड़ा है।
मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब का लेक्चर जारी था जिसे हाज़िरीने मजलिस के साथ साथ दुनिया के दूर दराज़ में बैठे लोग भी इंटरनेट पर देख रहे थे। मौलाना के लेक्चर को प्रत्येक रविवार को भारतीय समय के अनुसार 10 : 30 बजे सुबह देखा जा सकता है। इस लेक्चर को इस लिंक पर देखा जा सकता है।
http://www.youtube.com/watch?v=cJvIgiII5QU&feature=related
मौलाना बिना किसी लाग लपेट के सच को खुद भी स्वीकार करते हैं और दूसरों को भी सच को जानने मानने की तालीम देते हैं और हक़ीक़त भी यही है कि जब तक हमारे अन्दर यह गुण पैदा नहीं होगा हमारे मसलों का हल होने वाला नहीं है।
क्लास के बाद भाई तारकेश्वर गिरी जी के तास्सुरात भी यही थे कि यहां जो कुछ देखा वह उससे बहुत अलग है जो मेरे दिमाग़ में था। मौलाना ख़ान साहब और गिरी जी, दोनों में दो बातें समान हैं। एक तो यह कि दोनों ही सच को बेखटके स्वीकारते हैं और दूसरी बात यह कि दोनों ही आज़मगढ़ के बाशिन्दे हैं।
भाई शाहनवाज़ ने भी मौलाना के अनमोल मोतियों से अपनी झोली भर ली।
Nice to know about Molana vahiduddin. It seems that he is a nice person & gr8 scholer.
ReplyDeleteShah ji, our friend Sajid has started his Hindi blog, Please visit & send comments.
ReplyDeletehttp://sajiduser.blogspot.com
शुक्रिया सुमित जी मेरा ब्लॉग लिंक देने के लिए
ReplyDeleteशाह जी आप की बहुत उम्दा पोस्ट है इस मे कोई शक नही है के सहनशीलता से बड़े बड़े कम बन जाते है
इतने उम्दा पोस्ट के लिए बधाई
मेरा ब्लॉग साइट लिंक http://sajiduser.blogspot.com
भय्या , प्रथम बार लगा कि सच कह रहे हो , सारे मुल्लाओँ को ऐसा ही बना दो ।
ReplyDeleteek ek achhi prastuti, shayad is nek kam se dono dharmo ke log ek dusare ke aur najdeek aa sake.
ReplyDeleteBahut Badhiya Lekh. Maulana Ki Jay ho!
ReplyDeleteकुरान पाक की सूरह बलद में अल्लाह तआला फरमाता है, {क्या हमने दो आँखें,एक ज़बान और दो होंठ नहीं दिए }. यह चीजें तो जानवरों को भी दी गई हैं लेकिन इंसानों के लिए ज़रूरी हैं कि इनका इस्तेमाल ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने, सही बात कहने और हक को फैलाने के लिए करे. .... आपकी हिम्मत अफजाई का शुक्रिया!
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