रविवार का दिन ब्लॉग जगत में महत्वपूर्ण सुबह लेकर आया था। देर रात्रि को डॉ अनवर जमाल का फोन आया तो पता चला कि उन्होने श्री तारकेश्वर गिरी के साथ मिलकर अध्यात्म की एक खास हस्ती मौलाना वहीदुद्दीन का व्याख्यान सुनने का प्रोगाम बनाया है। वह चाहते थे मैं भी उनके साथ चलूं, अपने ब्लॉग पर तो वह पहले ही निमंत्रण दे चुके थे। मैने सहर्ष उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। जब शाहदरा स्टेशन लेने के लिए पहुंचा तो डॉ अयाज़ खड़े हुए नज़र आए, वहीं कुछ दूर पर बस से आए डॉ अनवर जमाल भी खड़े हुए नज़र आए, मैं उन्हे दूर से देखकर ही पहचान गया। एक अन्य ब्लागर बन्धु मास्टर अनवार साहब भी डॉ अनवर जमाल के साथ आए थे, रास्ते में श्री तारकेश्वर गिरी भी मिल गए। दो विचारधाराओं का इस तरह प्रेम से मिलना एक अद्भुद अनुभव था। तारकेश्वर जी के कहने पर मैने अपनी गाड़ी वहीं छोड़ी और हम सब उनकी गाड़ी में बैठ गए। फिर हमने मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान के आयोजन स्थल 1, निज़ामुद्दीन वेस्ट के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में अनेकों मुद्दों पर सार्थक बातचीत हुई, पूरा माहौल ‘प्रेम रस’ में डूबा हुआ था। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अलग-अलग मुद्दों पर लिखने वाले दो लेखक एक ही मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे, और वह था आपसी सद्भाव और प्रेम।
इस तरह हम निज़मुद्दीन वेस्ट के साधारण से दिखने वाले घर के असाधारण से ‘कांफ्रेस रूम’ जैसे कमरे में पहुंच गए। सामने कुर्सी पर मौलाना बैठे हुए थे तथा ऑनलाइन प्रसारण का बंदोबस्त किया जा रहा था। चारो तरफ लैपटॉप फैले हुए थे और जिनके पास लैपटॉप नहीं था वह कागज़ और कलम के द्वारा लेखन से मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान की खास-खास बातें अपने पास संजो कर रखने के लिए आतुर थे। एक तरफ महिलाओं तथा दूसरी तरफ पुरुषों के बैठने का बंदोबस्त था। जहां कुछ महिलाएं हिजाब धारण किए हुए थीं वहीं कुछ जींस पेंट भी पहने हुए थीं। लेकिन अधिकतर महिलाओं का सिर अच्छी तरह से ढका हुआ था, नक़ाब ना पहनने के बावजूद उन्होंने तहज़ीब के साथ कपढ़े पहने हुए थे। वहां का माहौल देख कर मुझे हद दर्जे तक आश्चर्य हो रहा था, क्योंकि मुस्लिम जगत में आज तक ऐसा अनुभव मुझे नहीं हुआ था। मेंरे पुराने अनुभव के अनुसार जहां अक्सर महिलाए ऐसे व्याख्यान में शरीक ही नहीं होती थी, वहीं अगर होती भी थी तो पूरी तरह से नकाब धारण किए हुए होती थी।
सबसे हैरत की बात तो यह थी कि इस आयोजन में अन्य धर्माविलंबी भी शामिल थे, बल्कि यह देख कर मेरे आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही कि मंच को श्री रजत मल्होत्रा नामक व्यक्ति संभाले हुए थे। हल्कि सी उद्घोषणा और लैपटॉप पर कुछ कमांड देने के बाद उन्होंने लेक्चर की कमान मौलाना वहीदुद्दीन को दे दी। आज का विषय था, सहनशीलता (सब्र) का महत्व।
इस तरह हम निज़मुद्दीन वेस्ट के साधारण से दिखने वाले घर के असाधारण से ‘कांफ्रेस रूम’ जैसे कमरे में पहुंच गए। सामने कुर्सी पर मौलाना बैठे हुए थे तथा ऑनलाइन प्रसारण का बंदोबस्त किया जा रहा था। चारो तरफ लैपटॉप फैले हुए थे और जिनके पास लैपटॉप नहीं था वह कागज़ और कलम के द्वारा लेखन से मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान की खास-खास बातें अपने पास संजो कर रखने के लिए आतुर थे। एक तरफ महिलाओं तथा दूसरी तरफ पुरुषों के बैठने का बंदोबस्त था। जहां कुछ महिलाएं हिजाब धारण किए हुए थीं वहीं कुछ जींस पेंट भी पहने हुए थीं। लेकिन अधिकतर महिलाओं का सिर अच्छी तरह से ढका हुआ था, नक़ाब ना पहनने के बावजूद उन्होंने तहज़ीब के साथ कपढ़े पहने हुए थे। वहां का माहौल देख कर मुझे हद दर्जे तक आश्चर्य हो रहा था, क्योंकि मुस्लिम जगत में आज तक ऐसा अनुभव मुझे नहीं हुआ था। मेंरे पुराने अनुभव के अनुसार जहां अक्सर महिलाए ऐसे व्याख्यान में शरीक ही नहीं होती थी, वहीं अगर होती भी थी तो पूरी तरह से नकाब धारण किए हुए होती थी।
सबसे हैरत की बात तो यह थी कि इस आयोजन में अन्य धर्माविलंबी भी शामिल थे, बल्कि यह देख कर मेरे आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही कि मंच को श्री रजत मल्होत्रा नामक व्यक्ति संभाले हुए थे। हल्कि सी उद्घोषणा और लैपटॉप पर कुछ कमांड देने के बाद उन्होंने लेक्चर की कमान मौलाना वहीदुद्दीन को दे दी। आज का विषय था, सहनशीलता (सब्र) का महत्व।
उन्होने अपने व्याख्यान में अनेकों धार्मिक और सामाजिक उदाहरणों के ज़रिए बताया कि सारी कामयाबियों की कुंजी सहनशीलता है। जब कोई व्यक्ति सहनशीलता धारण करता है तो सारी प्राकृतिक शक्तियां उसकी सहायता करना शुरू कर देती है। उन्होंने बताया कि सब्र का मतलब होता है बर्दाश्त करना, कुछ लोग समझते हैं कि 'बर्दाश्त करना बुजदिली की बात है'। लेकिन यह नासमझी की बात है, सब्र असल में सबसे बड़ी ताकत है.
उनके व्याख्यान की एक-एक बात मोती की तरह है, सभी बातों के लिए मैं अपने ब्लॉग ‘प्रेम रस’ पर पूरा लेख प्रकाशित करूंगा।
व्याखान के बाद प्रश्न उत्तर का दौर शुरू हुआ, जिसमें श्री तारकेश्वर गिरी, मैंने तथा डॉ अनवर जमाल सहित बहुत से लोगो ने ना केवल कक्ष अपितु इंटरनेट के माध्यम से पूरे विश्व में से अंग्रेज़ी तथा हिंदी में प्रश्न किए। क्योंकि यह व्याख्यान हिंदी में था इसलिए मौलाना ने सभी उत्तर हिंदी में ही दिए।
व्याख्यान समाप्त होने के बाद हम लोगों ने वापिस निकलने से पहले थोड़ी देर श्री रजत मल्होत्रा के साथ भी बातचीत की। गिरी जी ने रास्ते में हमें पुराने किले के पास पड़ने वाले पौराणिक भैरों मंदिर के बारे में भी जानकारी दी, जिससे पता चलता है कि वह ऐतिहासिक ज्ञान में भी निपुण हैं। उन्होंने हमें लक्ष्मी नगर के पास वी. थ्री. एस. शौपिंग मॉल पर छोड़ दिया। क्योंकि उन्हे कुछ आवश्यक कार्य आ गया था, इसलिए वह हमारे साथ दोपहर के खाने में नहीं आ पाए। खाना खाने के उपरांत डॉ अयाज़ दरिया गंज के लिए तथा मास्टर अनवार हापुड़ के लिए निकल गए। वहीं डॉ अनवर जमाल कुछ कम्पयूटर की जानकारी चाहते थे इसलिए उन्होने कुछ समय और मेरे साथ व्यतीत किया।
मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान के लिए पर मेरे अगले लेख की प्रतीक्षा कीजिये या फिर http://www.cpsglobal.org/content/6th-june’2010-sunday-urdu-060510-1105pm पर चटका लगा कर सुनिए.
उनके व्याख्यान की एक-एक बात मोती की तरह है, सभी बातों के लिए मैं अपने ब्लॉग ‘प्रेम रस’ पर पूरा लेख प्रकाशित करूंगा।
व्याखान के बाद प्रश्न उत्तर का दौर शुरू हुआ, जिसमें श्री तारकेश्वर गिरी, मैंने तथा डॉ अनवर जमाल सहित बहुत से लोगो ने ना केवल कक्ष अपितु इंटरनेट के माध्यम से पूरे विश्व में से अंग्रेज़ी तथा हिंदी में प्रश्न किए। क्योंकि यह व्याख्यान हिंदी में था इसलिए मौलाना ने सभी उत्तर हिंदी में ही दिए।
व्याख्यान समाप्त होने के बाद हम लोगों ने वापिस निकलने से पहले थोड़ी देर श्री रजत मल्होत्रा के साथ भी बातचीत की। गिरी जी ने रास्ते में हमें पुराने किले के पास पड़ने वाले पौराणिक भैरों मंदिर के बारे में भी जानकारी दी, जिससे पता चलता है कि वह ऐतिहासिक ज्ञान में भी निपुण हैं। उन्होंने हमें लक्ष्मी नगर के पास वी. थ्री. एस. शौपिंग मॉल पर छोड़ दिया। क्योंकि उन्हे कुछ आवश्यक कार्य आ गया था, इसलिए वह हमारे साथ दोपहर के खाने में नहीं आ पाए। खाना खाने के उपरांत डॉ अयाज़ दरिया गंज के लिए तथा मास्टर अनवार हापुड़ के लिए निकल गए। वहीं डॉ अनवर जमाल कुछ कम्पयूटर की जानकारी चाहते थे इसलिए उन्होने कुछ समय और मेरे साथ व्यतीत किया।
मौलाना वहीदुद्दीन के व्याख्यान के लिए पर मेरे अगले लेख की प्रतीक्षा कीजिये या फिर http://www.cpsglobal.org/content/6th-june’2010-sunday-urdu-060510-1105pm पर चटका लगा कर सुनिए.
Keywords:
Importance of Patience, दिल्ली ब्लॉगर मिलन, सब्र, सहनशीलता
सहनशीलता तो सफलता की नायाब कुंजी है। हमें नियमित इसका सेवन करना चाहिए। आपने मुझे जानकारी दी होती तो मैं भी अवश्य इस आयोजन में शरीक होता। खैर ... अगली दफा भूलिएगा मत बंधु।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और सार्थक प्रयास ,सहनशीलता मनुष्य का अनमोल खजाना है जिसे ये हरामी और भ्रष्ट नेता लूटकर इस देश को नरक बनाने पर तुले हैं .लेकिन जिसदिन ये जनता की सारी सहनशीलता को लूट लेंगे उस दिन इन भ्रष्टाचारियों का विनाश निश्चित है | बेहतरीन प्रयास और सार्थक प्रस्तुती |
ReplyDeleteमौलाना वहीदुद्दीन के अमन और प्यार के संदेशों का मैं बहुत पहले से मुरीद हूं...अगर वाकई सब्र या सहनशीलता को सब अपना मंत्र बना लें तो ये दुनिया रहने के लिए जन्नत न बन जाए...
ReplyDeleteआगे की कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार...
जय हिंद...
सारी कामयाबियों की कुंजी सहनशीलता है। बेहतरीन..
ReplyDeleteअविनाश जी मुझे स्वयं इस मिलन की जानकारी शनिवार देर रात्रि को मिल पाई. वर्ना मैं और साथियों को इसके लिए आमंत्रित करता. मैं मौलाना के बारे में बहुत अधिक जानता भी नहीं था. आपसी प्रेम और सहयोग बढ़ने तथा एक-दुसरे के धर्म के बारे में भ्रांतियों को समाप्त करने के लिए मैं हमेशा ही प्रयासरत रहता हूँ. अगर इनके बारे में जानकारी होती तो अधिक से अधिक लोगो को निमंत्रण देता. चलिए कोई बात नहीं, इनका व्याख्यान हर रविवार को 10.30 पर 1, निजामुद्दीन वेस्ट, दिल्ली में होता है, फिर किसी दिन का प्रोग्राम रख लेंगे.
ReplyDeleteबहुत खूब, इन प्रेम से मिलना एक अद्भुद अनुभव में और बातों के अलावा तुम्हारे प्रेम रस का भी कमाल है, हम भी साथ होते तो 'काम की बकवास' भी हो जाती
ReplyDeleteशानदार पेशकश ।
ReplyDeleteइस तरह के व्याख्यान कीमती जवाहरों से कहीं ज्यादा अहमियत रखते हैं.
ReplyDeleteAchha hai... milte rehna chahie, vaise yeh maulana vahiddin sahab hai kaun? bada nam suna hai...
ReplyDeleteआपलोगों के मिलन के बारे में पढकर अच्छा लगा .. सहनशीलता का महत्व तो है ही !!
ReplyDeleteKya Bat hai???
ReplyDeleteDelhi mei the to hame bhi bula lete. Ham bhi Delhi mei hi rehte hai.
निसंदेह एक ऐतिहासिक मिलन , कभी न कभी हम भी ज़रूर शामिल होंगे इसमें
ReplyDeleteमहक
uprokt sabhi blog bandhuwon se sahmat!!!
ReplyDelete"जब कोई व्यक्ति सहनशीलता धारण करता है तो सारी प्राकृतिक शक्तियां उसकी सहायता करना शुरू कर देती है।"
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
मौलाना वहीदुद्दीन जी का यह संदेश हम तक पहुंचाने के लिये।
आगे भी ऐसे ही सन्देश देते रहियेगा। अगले लेखों की प्रतीक्षा है।
प्रणाम
सही बात कही, सहनशीलता कामयाबी की पहली शर्त होती है।
ReplyDelete--------
करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
आप लोगों पर कितना प्रभाव पड़ा वहीदुद्दीन साहब के संबोधन का..
ReplyDelete@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteमित्र क्या प्रभाव देखना चाहते हो?
GOOD +1
ReplyDeleteMaulana ji ki vichar dhara shanti ki aur ishara karti hai. Maulana ji, Gandhi ji ke vicharo se sahmati rakhte hain.
ReplyDeleteमैं बचपन में मौलाना वहीदुद्दीन जी की पत्रिका "अल-रिसाला" पढ़ चुका हूँ.
ReplyDeleteऐसे आयोजनों में अधिकाधिक लोगों की भागीदारी होनी चाहिए और निजी जीवन में अनुसरण करना एक महान कदम होगा.
maafi chahungi par me is naam se pahli baar vakif hui..par jaan kar achha lga...
ReplyDeletedilli ka dil milan zindabad....
ReplyDeleteभाई तारकेश्वर गिरी जी ने अगली कडी दी है इस सिलसिले की, आज उनकी शादी की वर्षगांठ भी है
ReplyDeleteप्यार का संदेह -मौलाना वहिउदीन खान - तारकेश्वर गिरी -2
http://taarkeshwargiri.blogspot.com/2010/06/2.html
wah!!!
ReplyDeleteaapke blog ko padhkar lagta hai bahut badi hasti hain ye sahab..... :)
apke present karne ka dhang bhi bahut accha hai bhai.... mashallah!