आज पूरी दुनिया उपभोक्तावाद की दौड़ में अंधी होती जा रही है। इस दौड़ में आज इन्सान को यह भी देखने की फुरसत नहीं है कि ज़िंदगी कितनी सस्ती हो गई है। महानगरों की चकाचैंध में गरीबी और गरीबों के लिए तो जगह पहले भी नहीं थी, अब हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण रोज़गार का संतुलन बिगड़ा हुआ है। गावों तथा दूरदराज़ के शहरों में रोज़गार के अवसर सीमित होने के कारण अक्सर लोग बड़े शहरों की ओर रूख करते हैं। इससे एक ओर शहरी आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है, वहीं हालात यह हैं कि कई लोगों को सोते समय छत भी नसीब नहीं होती है। ऐसे में लोगो को खुला आसमान ही छत नज़र आता है और वह फुटपाथ को ही अपना बिस्तर बना लेते हैं। रात्रि में अक्सर यह लोग तेज़ी से निकलने वाले वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। शराब पी कर महंगी गाड़ियां में घूमने वाले लोगों का नशा रूतबा और पैसा और भी ज़यादा बढ़ा देता है और इस नशें में वह अपने वाहनों पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। अक्सर ट्रक डाइवर भी लापरवाही तथा नशे की हालत में फुटपाथ के पत्थर और उस पर सोये इंसानों में फर्क नहीं कर पाते हैं। वहीं दुर्घटनावश भी गाड़ियां फुटपाथ पर चढ़ जाती हैं, जिससे वहां सोए लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। आज कल ऐसी दुर्घटनाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में रात को चलने वाले मेट्रो रेल के कार्य से भी रात्रि दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है। अभी कुछ दिन पहले मुंडका की मेट्रो साईट पर एक ढंपर चालक को फुटपाथ पर सोते हुए मज़दूर नज़र ही नहीं आए थे और वह उनपर मिट्टी डाल कर चलता बना था, जिससे दो मज़दूरों की मृत्यू हो गई थी।
सरकार के द्वारा ऐसे लोगो के लिए किए गए सोने के इंतज़ाम ना के बराबर हैं, वहीं समाज सेवा में लगे एनजीओ को रूख भी इस समस्या की ओर से रूखा है। फटपाथ पर अक्सर रिक्शा माफिया का भी कब्ज़ा रहता है, वह लोग फुटपाथ को रिक्शा खड़ा करने की जगह में तबदील कर देते हैं। ऐसे में किराए पर रिक्शा चलाने वाले मज़दूर भी वहीं बसेरा बना लेते हैं। अक्सर लोग शराब पीकर भी नशे की हालत में फुटपाथ पर पड़े रहते हैं। ऐसे लोगो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होती भी है तो केवल खाना पूर्ती के लिए। सरकार का सबसे पहला कार्य तो यह होना चाहिए कि फुटपाथ पर सोने से लोगो को रोका जाए। इस तरह की दुर्घटना से बचने के लिए कानून का सख्ती से पालन होना आवश्यक है।
कुदरत ने जीवनरूपी जो वरदान दिया है, उसे ज़रा सी लापरवाही के कारण ज़ाया नहीं होना चाहिए। लोगों की जान बचाने के लिए इस विषय पर सुरक्षा ऐजेंसियों के साथ-साथ समाज को भी गम्भीरता से विचार करना होगा। एक तरफ सुरक्षा ऐजेंसियों को शिकायत आने का इंतज़ार किए बिना ही कदम उठाना चाहिए, वहीं समाज के द्वारा भी ऐसी दुर्घटनाओं से बचाव के लिए सुरक्षा ऐजेंसियों के साथ ताल-मेल बैठाना आवश्यक है।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में रात को चलने वाले मेट्रो रेल के कार्य से भी रात्रि दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है। अभी कुछ दिन पहले मुंडका की मेट्रो साईट पर एक ढंपर चालक को फुटपाथ पर सोते हुए मज़दूर नज़र ही नहीं आए थे और वह उनपर मिट्टी डाल कर चलता बना था, जिससे दो मज़दूरों की मृत्यू हो गई थी।
सरकार के द्वारा ऐसे लोगो के लिए किए गए सोने के इंतज़ाम ना के बराबर हैं, वहीं समाज सेवा में लगे एनजीओ को रूख भी इस समस्या की ओर से रूखा है। फटपाथ पर अक्सर रिक्शा माफिया का भी कब्ज़ा रहता है, वह लोग फुटपाथ को रिक्शा खड़ा करने की जगह में तबदील कर देते हैं। ऐसे में किराए पर रिक्शा चलाने वाले मज़दूर भी वहीं बसेरा बना लेते हैं। अक्सर लोग शराब पीकर भी नशे की हालत में फुटपाथ पर पड़े रहते हैं। ऐसे लोगो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होती भी है तो केवल खाना पूर्ती के लिए। सरकार का सबसे पहला कार्य तो यह होना चाहिए कि फुटपाथ पर सोने से लोगो को रोका जाए। इस तरह की दुर्घटना से बचने के लिए कानून का सख्ती से पालन होना आवश्यक है।
कुदरत ने जीवनरूपी जो वरदान दिया है, उसे ज़रा सी लापरवाही के कारण ज़ाया नहीं होना चाहिए। लोगों की जान बचाने के लिए इस विषय पर सुरक्षा ऐजेंसियों के साथ-साथ समाज को भी गम्भीरता से विचार करना होगा। एक तरफ सुरक्षा ऐजेंसियों को शिकायत आने का इंतज़ार किए बिना ही कदम उठाना चाहिए, वहीं समाज के द्वारा भी ऐसी दुर्घटनाओं से बचाव के लिए सुरक्षा ऐजेंसियों के साथ ताल-मेल बैठाना आवश्यक है।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
Keywords:
accident, Foothpath, sleeping, दुर्घटनाएँ, फुटपाथ
इन भ्रष्ट मंत्रियों और इस गाँधी नेहरु परिवार ने इस देश को नरक बनाकर रख दिया है ,अब तो भगवान ही ऐसे कुकर्मियों से मुक्ति दिला सकते हैं इस देश और समाज को |
ReplyDeleteसमाज की सोच को सही दिशा देने से ही हालात बदलेँगे ।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद
ReplyDeleteसही दिशा देने से ही हालात बदलेँगे ।
ReplyDeleteha ye sach hao
ReplyDeleteशाहनवाज़ भाई बेशक जीवन कुदरत का वरदान है,
ReplyDeleteसरकार ने तो कानून बनाए है!
मगर कुछ लोग उन कानूनों का पालन नहीं करते
जिसकी कीमत कुछ मासूमो को चुकानी पड़ती है
इसके लिए जनता को जागना होगा!
इस को रोकने के लिए कानून का पालन करने की अवशाकता है!
फुटपाथ तो कुछ बच्चों का घर है .. मैनें देखा है.
ReplyDeleteये बच्चे यहीं जवान होते हैं और यहीं किसी दिन किसी पगलाए ट्रक के नीचे ...
झा जी, मेरा मानना है कि जो अपना साथ स्वयं नहीं देता, उसका साथ कोई नहीं देता है. वैसे भी भ्रष्टाचार स्वयं हम से शुरू होता है.
ReplyDeleteइस विषय पर मेरा लेख:
भ्रष्टचार की जड़
@ M VERMA ji.
ReplyDeleteपता नहीं हम कैसे ऐसे हालात पर चैन की नींद सो लेते हैं!
@ HAKEEM SAUD ANWAR KHAN ji, संजय भास्कर ji, sajid ji.
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा.....
समाज की सोच को सही दिशा देने से ही हालात बदलेँगे।
इसके लिए जनता को जागना होगा!
इस को रोकने के लिए कानून का पालन करने की अवशाकता है!
भाई हम ऐसे हालात पर कहाँ सोते हैं, हमें तो सुलाया जाता है
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteसलमान खान जैसे कितने ही कातिल ऐसी वारदातें करके खुले खूब रहे हैं. शाहनवाज जी गरीबों की सुनने वाला आज है कौन????
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेख! एक बहुत ही सार्थक पहल.
ReplyDeleteइंसानी जीवन की कुछ तो कद्र होनी चाहिए.
अच्छा विषय है, महानगरों में इस समस्या पर सभी को विचार करना चाहिए।
ReplyDeleteगंभीरता से विचार करने की आवश्यक्ता है इस विषय पर.
ReplyDeleteभाई जान लोगों को जागरूक आप की कोशिश तो अच्छी हैं लेकिन इस समस्या के लिए कठोर कानून की जरुरत है |
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