दैनिक जागरण के नियमित स्तम्भ "फिर से" में: "खत्म होती संवेदनाएं"
आज समाज में संवेदनशीलता का अंत होता जा रहा है। लोग सड़क हादसों में पड़े-पड़े दम तोड़ देते हैं और कोई हाथ मदद के लिए नहीं उठता है। अकसर देखने में आया है कि गरीब लोग तो फिर भी मदद करने के लिए आ जाते हैं, परंतु अमीर तथा बड़े ओहदों पर बैठे लोग स्वयं अपनी मोटर गाडि़यों से दुर्घटना करने की बावजूद लोगो को तड़पते हुए छोड़ देते हैं। और इसकी ताजा मिसाल मुझे खुद देखने को मिली। एक इंसान बैंक से पैसे निकालकर अपने घर जा रहा था, लेकिन एक बेहद अहम पद पर बैठी शख्सियत ने कानून और मर्यादा को तार-तार कर दिया। किसी आम इंसान से तो फिर भी ऐसी उम्मीद की जा सकती है, कि वह कानून का पालन न करे, लेकिन संविधान की रक्षा करने वाले खुद ही कानून का मजाक बनाकर किसी को मौत के मुंह में धकेल दें तो इसे आप क्या कहेंगे?
बात मुरादाबाद की है जहां दिल्ली से तबादला हो कर आई एक न्यायाधीश साहिबा की सेंट्रो कार से बैंक से पैसे निकाल कर आ रहे इकराम गनी बुरी तरह घायल हो गए. इसे माननीय न्यायधीश की लापरवाही कहें या फिर अपने रुतबे के दंभ में कानून को ठेंगा दिखाने की बड़े लोगो की फितरत, जिसके चलते न्यायधीश साहिबा जिसका नाम रिची वालिया बताया जा रहा है, जिसने बिना यह देखे की कोई मोटर साईकिल सवार भी बराबर से गुजर रहा है अपनी सेंट्रो कार को सड़क के बीच में रोका और कार का दरवाज़ा खोल दिया। जिससे टकराकर इकराम गनी बीच सड़क में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए। उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई और सर की हड्डी मस्तिष्क में जा घुसी। इतना होने पर जब लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई और कानून की तथाकथित रक्षक को लगा की बात बिगड़ सकती है, तो आनन-फानन में उसे पास के सरकारी अस्पताल में भरती कराकर चलती बनी। किसी तरह घर वाले इकराम को लेकर साई अस्पताल पहुंचे तो रास्ते में पता चला की उसकी जेब में बैंक की रसीद तो है, लेकिन पैसे और बटुआ गायब है। कितने क्रूर होते हैं वह लोग जो ऐसी हालत में भी ऐसी घिनौनी हरकत करते हैं।
माननीय न्यायधीश साहिबा ने यह भी देखने की जरूरत नहीं समझी की रोज अपनी रोटी का जुगाड़ करने वाले उक्त मोटर साईकिल सवार के घर वाले आखिर कैसे इतने महंगे इलाज के लिए पैसे का जुगाड़ कर रहे हैं? चश्मदीदों के मुताबिक न्यायाधीश साहिबा ने हादसे और अस्पताल के बीच में ही फोन पर अपने ताल्लुक वालों को कॉल करके स्थिति संभालने की जिम्मेदारी दे दी थी और शायद इसी के चलते मुरादाबाद की पुलिस ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। शायद वह मामले को रफा-दफा करने की फिराक में है। वैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है?
- शाहनवाज सिद्दीकी
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आज समाज में संवेदनशीलता का अंत होता जा रहा है। लोग सड़क हादसों में पड़े-पड़े दम तोड़ देते हैं और कोई हाथ मदद के लिए नहीं उठता है। अकसर देखने में आया है कि गरीब लोग तो फिर भी मदद करने के लिए आ जाते हैं, परंतु अमीर तथा बड़े ओहदों पर बैठे लोग स्वयं अपनी मोटर गाडि़यों से दुर्घटना करने की बावजूद लोगो को तड़पते हुए छोड़ देते हैं। और इसकी ताजा मिसाल मुझे खुद देखने को मिली। एक इंसान बैंक से पैसे निकालकर अपने घर जा रहा था, लेकिन एक बेहद अहम पद पर बैठी शख्सियत ने कानून और मर्यादा को तार-तार कर दिया। किसी आम इंसान से तो फिर भी ऐसी उम्मीद की जा सकती है, कि वह कानून का पालन न करे, लेकिन संविधान की रक्षा करने वाले खुद ही कानून का मजाक बनाकर किसी को मौत के मुंह में धकेल दें तो इसे आप क्या कहेंगे?
बात मुरादाबाद की है जहां दिल्ली से तबादला हो कर आई एक न्यायाधीश साहिबा की सेंट्रो कार से बैंक से पैसे निकाल कर आ रहे इकराम गनी बुरी तरह घायल हो गए. इसे माननीय न्यायधीश की लापरवाही कहें या फिर अपने रुतबे के दंभ में कानून को ठेंगा दिखाने की बड़े लोगो की फितरत, जिसके चलते न्यायधीश साहिबा जिसका नाम रिची वालिया बताया जा रहा है, जिसने बिना यह देखे की कोई मोटर साईकिल सवार भी बराबर से गुजर रहा है अपनी सेंट्रो कार को सड़क के बीच में रोका और कार का दरवाज़ा खोल दिया। जिससे टकराकर इकराम गनी बीच सड़क में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए। उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई और सर की हड्डी मस्तिष्क में जा घुसी। इतना होने पर जब लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई और कानून की तथाकथित रक्षक को लगा की बात बिगड़ सकती है, तो आनन-फानन में उसे पास के सरकारी अस्पताल में भरती कराकर चलती बनी। किसी तरह घर वाले इकराम को लेकर साई अस्पताल पहुंचे तो रास्ते में पता चला की उसकी जेब में बैंक की रसीद तो है, लेकिन पैसे और बटुआ गायब है। कितने क्रूर होते हैं वह लोग जो ऐसी हालत में भी ऐसी घिनौनी हरकत करते हैं।
माननीय न्यायधीश साहिबा ने यह भी देखने की जरूरत नहीं समझी की रोज अपनी रोटी का जुगाड़ करने वाले उक्त मोटर साईकिल सवार के घर वाले आखिर कैसे इतने महंगे इलाज के लिए पैसे का जुगाड़ कर रहे हैं? चश्मदीदों के मुताबिक न्यायाधीश साहिबा ने हादसे और अस्पताल के बीच में ही फोन पर अपने ताल्लुक वालों को कॉल करके स्थिति संभालने की जिम्मेदारी दे दी थी और शायद इसी के चलते मुरादाबाद की पुलिस ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। शायद वह मामले को रफा-दफा करने की फिराक में है। वैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है?
- शाहनवाज सिद्दीकी
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Keywords:
Dainik Jagran, Accident
आज समाज में संवेदनशीलता का अंत होता जा रहा है।
ReplyDeleteयही संवेदनशीलता इन्सान और जानवर की पहचान है जिसके खत्म होने पर इन्सान और जानवर में कोई फर्क नहीं रह जाता है ...
उम्दा प्रस्तुती एक बार फिर आपके सही सोच का परिचय करा रही है |
हमने आपके लेखनी और सोच के साथ -साथ आपके जमीनी कार्य को भी आपके सोच के साथ जोड़कर देखा जिसमे काफी समानता है और आप अपनी सोच के अनुसार व्यवहार भी करते हैं ,यह सबसे अच्छी बात है ,हम सब को भी एक इन्सान होने के नाते ऐसा ही करने का भरसक प्रयास करना चाहिए |
ReplyDeletesahi hai ji...sanvednaaye khatm si huyi jaati hai.....
ReplyDeletekunwar ji.
बिलकुल सही कहा -
ReplyDeleteवैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है?
बहुत संवेदनशील मुद्दा उठाया है आपने. आशा करता हूँ, अब इकराम जी की स्वास्थ ठीक होगा?
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
ReplyDeleteमेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteशाहनवाज़ जी बहुत बहुत मुबारक हो. आपका आलेख समसामयिक और सोचने को मजबूर करती है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा जी आपने
ReplyDeleteगरीब आदमी की आज सुनता ही कौन है
प्रणाम
"वैसे भी इस देश में गरीबों की सुनता कौन है?"
ReplyDelete@ जय कुमार झा जी, कुंवर जी, सुमित जी, संजय भास्कर जी, वर्मा जी, अंतर सोहिल जी और रश्मि जी.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.
अगर कोई भी इकराम गनी की मदद करना चाहे तो जी. बी. पन्त अस्पताल में जाकर उनके परिजनों से मिल सकता है अथवा मुझसे फोन नंबर लेकर बात कर सकता है.
ReplyDelete@ सुमित जी,
ReplyDeleteइकराम गनी जी की तबियत अभी भी ठीक नहीं है. वह अभी भी बेहोशी की अवस्था में है तथा जी. बी. पन्त अस्पताल में आई. सी. यू. में भर्ती हैं. और ऊपर से पुलिस ने भी जज जैसे रुतबे के दबाव में आकर कोई भी कदम नहीं उठाया है. हमारा प्रशासन और सरकारी तंत्र हमेशा से रुतबे वालो के सामने पंगु बन जाता है.
आदमी ही अगर आदमी का दर्द न समझे, बल्कि उसके दुःख काकारण बन जाये, तो लाहनत है .....
ReplyDeleteसंवेदना मर गईं तो मानव भी मर गया समझो......
अच्छा लेख लिखा भाई धन्यवाद !
इकराम साहब के हम सब की दुआए है वे जल्द ठीक होकर घर लौटेगेँ रही बात न्यायधीश साहिबा की तो लगता नही कि उनका कुछ बिगड़े क्योकि यहाँ अमीर गरीब के लिए अलग अलग कानून है
ReplyDeleteफिल्म- देशप्रेमी
ReplyDeleteगीत-महाकवि आनन्द बख्शी
संगीत- लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल
नफरत की लाठी तोड़ो
लालच का खंजर फेंको
जिद के पीछे मत दौड़ो
तुम देश के पंछी हो देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
देखो ये धरती.... हम सबकी माता है
सोचो, आपस में क्या अपना नाता है
हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन संभालेगा
कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा
दीवानों होश करो..... मेरे देश प्रेमियों आपस में प्रेम करो
मीठे पानी में ये जहर न तुम घोलो
जब भी बोलो, ये सोचके तुम बोलो
भर जाता है गहरा घाव, जो बनता है गोली से
पर वो घाव नहीं भरता, जो बना हो कड़वी बोली से
दो मीठे बोल कहो, मेरे देशप्रेमियों....
तोड़ो दीवारें ये चार दिशाओं की
रोको मत राहें, इन मस्त हवाओं की
पूरब-पश्चिम- उत्तर- दक्षिण का क्या मतलब है
इस माटी से पूछो, क्या भाषा क्या इसका मजहब है
फिर मुझसे बात करो
ब्लागप्रेमियों... आपस में प्रेम करो