आज सुबह तकरीबन आठ बजे इकराम गनी ने अपने जीवन की आखिरी सांसे ली, अल्लाह उनको जन्नत नसीब करे। इकराम गनी के बारे में मैंने अपने लेख "आखिर संवेदनशीलता क्यों समाप्त हो रही है?" तथा "एक बेहोश व्यक्ति की जीवन के लिए जद्दोजहद" में बताया था।
वह पिछले दो महीने से बेहोश थे तथा पिछले एक महीने से दिल्ली के जी. बी. पन्त अस्पताल में ज़िन्दगी की जंग लड़ रहे थे। मुरादाबाद से दिल्ली लाने की बाद उन्हें बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया था, क्योंकि किसी भी सरकारी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया था। जब रिश्तेदारों के पास पैसों की तंगी आ गई और उनकी पत्नी और 3 छोटे-छोटे बच्चो पर 10 लाख रूपये इलाज में क़र्ज़ हो गया तो उनको एक छोटे अस्पताल (खदीजा नेशनल अस्पताल) में भर्ती करना पड़ा था। फिर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से रात-दिन एक करके उनको जी. बी. पन्त अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इतने दिनों में एक बार भी पुलिस का कोई कारिन्दा इनकी खैर-खबर के लिए नहीं आया। दर असल इनकी दुर्घटना एक न्यायधीश साहिबा की कार से हुई थी, इसलिए उसके रुतबे के दबाव के कारण पुलिस ने भी कोई कार्यवाही नहीं की। यहाँ तक कि मीडिया ने भी न्यायधीश साहिबा के रुतबे के कारण कुछ नहीं लिखा (दैनिक जागरण को छोड़कर, जिसने एक बार मुरादाबाद संस्करण में तथा दो बार राष्ट्रिय संस्करण में उनके बारे में लेख छपा था)।
दिल्ली से तबादला हो कर आई एक न्यायाधीश साहिबा की सेंट्रो कार से बैंक से पैसे निकाल कर आ रहे इकराम गनी बुरी तरह घायल हो गए थे। इसे माननीय न्यायधीश की लापरवाही कहें या फिर अपने रुतबे के दंभ में कानून को ठेंगा दिखाने की बड़े लोगो की फितरत, जिसके चलते न्यायधीश साहिबा ने बिना यह देखे की कोई मोटर साईकिल सवार भी बराबर से गुजर रहा है अपनी सेंट्रो कार को सड़क के बीच में रोका और कार का दरवाज़ा खोल दिया। जिससे टकराकर इकराम गनी बीच सड़क में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए थे। उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी और सर की हड्डी मस्तिष्क में जा घुसी थी। इतना होने पर जब लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई और कानून की तथाकथित रक्षक को लगा की बात बिगड़ सकती है, तो आनन-फानन में उसे पास के सरकारी अस्पताल के बहार छोड़ कर चलती बनी थी। इसके बाद उन्होंने कभी यह देखने की भी कोशिश नहीं की आखिर इतना महंगा इलाज इकराम गई की पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे कैसे करा रहे हैं।
इसे कुदरत की मार कहें या एक रुतबे के दंभ का परिणाम, इकराम गनी इन्साफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते ज़िन्दगी की जंग हार गए। आखिर उनकी पत्नी और बच्चे कैसे अपना भरण पोषण करेंगे और कैसे इतना बड़ा कर्जा उतरेंगे? क्या न्यायधीश साहिबा का कुछ फ़र्ज़ नहीं है? क्या यही इंसानियत है? क्या इकराम गनी को इन्साफ मिलेगा? या रुतबे और पैसे के आगे आज एक बार फिर इन्साफ हार जाएगा?
वह पिछले दो महीने से बेहोश थे तथा पिछले एक महीने से दिल्ली के जी. बी. पन्त अस्पताल में ज़िन्दगी की जंग लड़ रहे थे। मुरादाबाद से दिल्ली लाने की बाद उन्हें बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया था, क्योंकि किसी भी सरकारी अस्पताल ने उन्हें भर्ती नहीं किया था। जब रिश्तेदारों के पास पैसों की तंगी आ गई और उनकी पत्नी और 3 छोटे-छोटे बच्चो पर 10 लाख रूपये इलाज में क़र्ज़ हो गया तो उनको एक छोटे अस्पताल (खदीजा नेशनल अस्पताल) में भर्ती करना पड़ा था। फिर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से रात-दिन एक करके उनको जी. बी. पन्त अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इतने दिनों में एक बार भी पुलिस का कोई कारिन्दा इनकी खैर-खबर के लिए नहीं आया। दर असल इनकी दुर्घटना एक न्यायधीश साहिबा की कार से हुई थी, इसलिए उसके रुतबे के दबाव के कारण पुलिस ने भी कोई कार्यवाही नहीं की। यहाँ तक कि मीडिया ने भी न्यायधीश साहिबा के रुतबे के कारण कुछ नहीं लिखा (दैनिक जागरण को छोड़कर, जिसने एक बार मुरादाबाद संस्करण में तथा दो बार राष्ट्रिय संस्करण में उनके बारे में लेख छपा था)।
दिल्ली से तबादला हो कर आई एक न्यायाधीश साहिबा की सेंट्रो कार से बैंक से पैसे निकाल कर आ रहे इकराम गनी बुरी तरह घायल हो गए थे। इसे माननीय न्यायधीश की लापरवाही कहें या फिर अपने रुतबे के दंभ में कानून को ठेंगा दिखाने की बड़े लोगो की फितरत, जिसके चलते न्यायधीश साहिबा ने बिना यह देखे की कोई मोटर साईकिल सवार भी बराबर से गुजर रहा है अपनी सेंट्रो कार को सड़क के बीच में रोका और कार का दरवाज़ा खोल दिया। जिससे टकराकर इकराम गनी बीच सड़क में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए थे। उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी और सर की हड्डी मस्तिष्क में जा घुसी थी। इतना होने पर जब लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई और कानून की तथाकथित रक्षक को लगा की बात बिगड़ सकती है, तो आनन-फानन में उसे पास के सरकारी अस्पताल के बहार छोड़ कर चलती बनी थी। इसके बाद उन्होंने कभी यह देखने की भी कोशिश नहीं की आखिर इतना महंगा इलाज इकराम गई की पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे कैसे करा रहे हैं।
इसे कुदरत की मार कहें या एक रुतबे के दंभ का परिणाम, इकराम गनी इन्साफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते ज़िन्दगी की जंग हार गए। आखिर उनकी पत्नी और बच्चे कैसे अपना भरण पोषण करेंगे और कैसे इतना बड़ा कर्जा उतरेंगे? क्या न्यायधीश साहिबा का कुछ फ़र्ज़ नहीं है? क्या यही इंसानियत है? क्या इकराम गनी को इन्साफ मिलेगा? या रुतबे और पैसे के आगे आज एक बार फिर इन्साफ हार जाएगा?
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आखिर संवेदनशीलता क्यों समाप्त हो रही है?
एक बेहोश व्यक्ति की जीवन के लिए जद्दोजहद
Keywords:
Ikram Ghani, दुर्घटनाएँ, संवेदनहीनता
एक रुतबे के दंभ का परिणाम, इकराम गनी इन्साफ की लड़ाई लड़ते-लड़ते ज़िन्दगी की जंग हार गए। आखिर उनकी पत्नी और बच्चे कैसे अपना भरण पोषण करेंगे और कैसे इतना बड़ा कर्जा उतरेंगे? क्या न्यायधीश साहिबा का कुछ फ़र्ज़ नहीं है? क्या यही इंसानियत है? क्या इकराम गनी को इन्साफ मिलेगा? या रुतबे और पैसे के आगे आज एक बार फिर इन्साफ हार जाएगा?
ReplyDeleteAllah Un ko Jannat Naseeb kare
ReplyDeleteअल्लाह उनको जन्नत नसीब करे।
ReplyDeleteShah ji, Aapke insaniyat se bharpur lekho ki ham sarahna bhi karte hai aur agar aapko kisi bhi tarah ki help ke avashyakta hai to ham puri tarah tayyar hai.
ReplyDeleteधीरे धीरे अपनी जड़ें जमाने वाला कारपोरेट कल्चर आम आदमी का जीना मुहाल कर रहा है. दिल्ली जैसे शहरों में गरीबी हटाने की बजाये गरीबों को ही हटाया जाने लगा है. और जो बच गए हैं वो इस पोजीशन में हैं. शापिंग माल्स खोलने वालों की नज़रों में छोटी दुकानें खटकीं तो कोर्ट से आदेश दिलवा दिया की आवासीय कालोनियों में दूकान खोलना अवैध है. किसी तरह गरीब को नज़रों के सामने से भगाना है, और नहीं भागता तो कार के नीचे कुचल देना है
ReplyDeleteइकराम गनी को मेरी श्रदांजलि, बहुत ही दुखद घटना है, जब न्याय करने वाले ही अन्याय पर उतर आएँगे तो इस देश का क्या हाल होगा!.
ReplyDeleteअल्लाह आप सब को सब्र अता फ़रमाए और मरहूम को जन्नतुलफ़िरदौस मे आला मुकाम अता फ़रमाए आमीन
ReplyDeleteबेहद दुःख और तकलीफ हो रही है ये खबर पढ़कर.....इकराम गनी जी को मेरी भी श्रदांजलि
ReplyDeleteइकराम गनी जी को मेरी भी श्रदांजलि
ReplyDeleteबेहद दुखद घटना, इकराम गनी जी को मेरी भी श्रधांजलि ,इश्वेर उनके बीवी बच्चों को हिम्मत दे और आर्थिक तौर पर मदद भी , बल्कि उन न्यायधीश साहिबा की ही ज़िम्मेदारी बनती है अब उनके परिवार का भरण-पोषण करने की
ReplyDeleteउनके घर का हाल मालुम करने की कोशिश करें ..परिवार में कौन है और कुछ काम करने के लिए मशीनें आदि देने में हम लोग कुछ मदद उनकी कर सकते हैं ! अगर हो सके तो मालुम करके बताएं !
ReplyDeleteशुभकामनायें !